तीन बार में तैयार रेशम कीट पौध

बिलासपुर में महिलाओं के लिए बना आय का साधन, 400 किसान कर रहे काम
निजी संवाददाता-बम्म
जिला बिलासपुर में महिलाओं के लिए रेशम कीट पालन व्यवसाय स्वरोजगार से आय का साधन बन गया है। खास बात यह है कि साल में अब दो नहीं बल्कि तीन बार रेशमकीट की पौध तैयार हो सकेगी। वैसे तो साल में रेशम कीट पालन के दो सीजन होते हैं लेकिन मार्च माह की बसंत ऋतु में भी जिला बिलासपुर में अधिकांश किसानों ने कीट पालन करना शुरू कर दिया है। इससे किसानों को काम के साथ-साथ अच्छी आमदनी भी हो जाती है। रेशम कीट पालन केंद्र रांगड़ू लद्दा व हटवाड़ में इस कार्य में महिलाएं बढ़-चढ़कर भाग ले रही हैं। इस व्यवसाय में मराहना, घंडालवीं, हंबोट, पंतेहड़ा, बम्म, सलाओ, कोट, हटवाड़, मैहरी काथला, लद्दा, तलवाड़ा, पटेर, कुठेड़ा व भलस्वाय आदि पंचायतों के लगभग 400 किसान इस कार्य को अपना रहे हैं।

क्षेत्र की सुनीता देवी, वीना देवी, मनजीत, कर्मी, कुशमलता, कमला देवी, रीना, अनारकली, रोशनी, विद्या, नीना, निर्मला देवी, ममता, बबिता, मनोरमा देवी, कमलेश, नीलम, वंदना, सरोज, मीना कुमारी, शैलजा, सीमा, शकुंतला, सरिता देवी, आशा देवी आदि ने बताया कि रेशम कीट पालन विभाग की ओर से रेशम कीट बीज मुफ्त में उपलब्ध करवाया जा रहा है। जिसकी छोटी सी कीमत 40, 50 रुपए बिक्री के समय ली जाएगी। 25 दिन का समय इन्हें तैयार करने के लिए लग जाता है। इसके लिए विभाग की नर्सरी से शहतूत पत्ते भी उपलब्ध करवाए जा रहे हैं, लेकिन उत्पादन रेशम कोकून की मई जून में समय पर बिक्री न हो पाने से उन्हें नुकसान झेलना पड़ता है। किसानों ने विभाग से सुविधाओं के लिए उचित प्रबंध करने की मांग की है। इस बारे में रेशम कीट पालन केंद्र लद्दा व रांगड़ू प्रभारी बृज लाल ने बताया कि किसानों को हर सुविधा को समय पर व घरद्वार उपलब्ध करवाने की पूरी व्यवस्था की जा रही है, ताकि सभी योजनाओं का लाभ कीट पालकों को मिल सके। अब मार्च माह में रेशम कीट पालन का कार्य शुरू हो जाएगा।