मौसम के समीकरण में पर्यटन के अवसर

अटल टनल बनने से पहले यही स्नो कटर रोहतांग और कोकसर तक सड़क पर गिरी लगभग दो मंजिला बर्फ की तहों को साफ करते थे। शिमला, मनाली, किन्नौर, लाहुल और स्पीति जैसी जगहों पर सर्दियों में स्नो मैनेजमेंट के लिए अति आधुनिक उपकरणों का प्रयोग करना होगा ताकि बर्फबारी से हो रही मुश्किलों को आसान किया जा सके। पर्यटन विभाग के लिए देश एवं विदेश से आने वाले पर्यटकों के लिए ‘स्नो टूरिज्म’ के लिए नई योजनाएं बनाई जा सकती हैं। हालांकि लाहुल-स्पीति में इस बार शरदकालीन खेलों का आयोजन किया गया, जो बहुत ही स्वागत योग्य कदम है। कुफरी, सोलंग के अलावा भी स्नो स्कीईंग के लिए नए स्लोप्स खोजने होंगे। वहां पर रोपवे ट्रॉली की व्यवस्था और स्कीयर्स के लिए अच्छे कॉटेज और मनोरंजन की सुविधाओं का विकास किया जा सकता है, जो प्रदेश के खजाने में अच्छी आय प्रदान कर सकता है…
मीलों फैले पहाड़ और बर्फ की सफेद चादरें, किसी कवि की कल्पना का हिस्सा नहीं, सच्चाई है हिमालय की। पिछले एक वर्ष में पूरे विश्व में काफी जलवायु परिवर्तन हुआ है जो चिंता का विषय है। वर्ष के सभी मौसम अपने चरम पर पहुंचने लगे हैं। गर्मी, बरसात और सर्दियों ने खासकर पूरे विश्व को अपनी पकड़ में ले लिया है। गर्मियों में असहनीय गर्मी, देश के कई हिस्सों में सूखा या सूखे जैसी स्थिति, बरसात में बाढ़, सुनामी और लाखों लोगों का बेघर हो जाना। भारत में बिहार, असम और कई अन्य राज्यों में पिछले साल इतनी बरसात हुई कि लोगों का जीना दूभर हो गया। मुंबई में पिछले दो सालों में अनुपात से अधिक बारिश हुई। पहाड़ में पिछले एक साल में इतने भूस्खलन हुए कि पहाड़, सड़कें और घर जमीन में मिल गए। वर्षा का यह प्रकोप हिमाचल, उत्तराखंड और पूर्व के कुछ राज्यों में देखने को मिला। यही क्रम सर्दियों में भी जारी है। अनुपात से ज्यादा हिमपात ने यह सिद्ध कर दिया है कि पर्यावरण के साथ सब कुछ ठीक नहीं है। जिस तीव्रता से ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रही है और पर्यावरण में कार्बन उत्सर्जन हो रहा है, वह दिन दूर नहीं जब हिमालय के अधिकतर ग्लेशियर पिघलने लगेंगे। एक असंतुलन की स्थिति आ जाएगी। हाल ही में हुआ हिमपात, हो सकता है फलदार पौधों के लिए लाभकारी हो, लेकिन अधिक बर्फबारी इन्हें नुक्सान भी पहुंचा सकती है।
पहाड़ पर लगता है हर मौसम का समीकरण बदल गया है। इस सबके लिए हम भी कहीं न कहीं जिम्मेदार हैं। पहाड़ों की कटाई, उनमें से सुरंगों का निर्माण, जंगलों का कटान, नए पौधों का न लगाना, पहाड़ पर सड़कों के जाल और नदियों से बालू-पत्थर उठाना और नदी किनारे अतिक्रमण, यह सब मिलकर पहाड़ का जीवन और प्रकृति को खोखला करने के लिए काफी हैं। प्रदेश में पिछले साल हुए भूस्खलनों ने यह साबित कर दिया था कि प्रदेश की पहाड़ी श्रंृखला के साथ सब कुछ ठीक नहीं है। जैसे ही अधिक हिमपात होता है, प्रदेश के ऊंचाई वाले इलाके देश के दूसरे हिस्सों से कट जाते हैं। यातायात ठप हो जाता है। अधिक हिमपात क्योंकि प्राकृतिक आपदा है तो इस पर मानवीय नियंत्रण रख पाना कठिन ही नहीं, असंभव है। लेकिन हिमपात के बाद जनजीवन को सुचारू रूप से चलाने का प्रयास करना हमारी जिम्मेदारी है, सरकार का दायित्व है। विश्व के बहुत से देशों में बर्फबारी होती है, लेकिन वहां आधुनिक मशीनों द्वारा बर्फ को शीघ्र अति शीघ्र हटाने का प्रयास किया जाता है ताकि जनजीवन कम प्रभावित हो। हिमाचल में ऊंचाई वाले क्षेत्रों में जहां भी सड़कों का काम और रखरखाव बीआरओ के अंतर्गत आता है, वहां पर उत्तम श्रेणी के स्नो कटर्स काम में लगे रहते हैं। अटल टनल बनने से पहले यही स्नो कटर रोहतांग और कोकसर तक सड़क पर गिरी लगभग दो मंजिला बर्फ की तहों को साफ करते थे। शिमला, मनाली, किन्नौर, लाहुल और स्पीति जैसी जगहों पर सर्दियों में स्नो मैनेजमेंट के लिए अति आधुनिक उपकरणों का प्रयोग करना होगा ताकि बर्फबारी से हो रही मुश्किलों को आसान किया जा सके। पर्यटन विभाग के लिए देश एवं विदेश से आने वाले पर्यटकों के लिए ‘स्नो टूरिज्म’ के लिए नई योजनाएं बनाई जा सकती हैं। हालांकि लाहुल-स्पीति में इस बार शरदकालीन खेलों का आयोजन किया गया, जो बहुत ही स्वागत योग्य कदम है। कुफरी, सोलंग के अलावा भी स्नो स्कीइंग के लिए नए स्लोप्स खोजने होंगे।
वहां पर रोपवे ट्रॉली की व्यवस्था और स्कीयर्स के लिए अच्छे कॉटेज और मनोरंजन की सुविधाओं का विकास किया जा सकता है, जो प्रदेश के खजाने में अच्छी आय प्रदान कर सकता है। स्की रिसॉर्ट्स बनाने होंगे, जिनमें स्थानीय लोगों को रोजगार दिया जा सके। सरकार यह काम किसी निजी संस्थान को न देकर स्वयं करे तो प्रदेश में पर्यटन को एक नई दिशा मिलेगी। यूरोप के बहुत से देश शरदकालीन खेलों से चल रहे पर्यटन से अपने आर्थिक हालात को संभाले हुए हैं। हालांकि पिछले दो सालों में विश्व पर्यटन पर बहुत प्रभाव पड़ा है, लेकिन जैसे ही विश्व कोरोना विषाणु से मुक्ति पाएगा, विश्व पर्यटन फिर से अपने पांव पर खड़ा हो जाएगा। हिमाचल प्रदेश की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए यहां विभिन्न क्षेत्रों में पर्यटन की प्रबल संभावनाएं मौजूद हैं, चाहे वह ट्रैकिंग हो, पर्वतारोहण हो, स्वास्थ्य पर्यटन हो, योग हो, साधना केंद्र हों, स्कीइंग हो, वाटर स्पोर्ट्स हो, हैंग ग्लाइडिंग हो या राफ्टिंग हो। इन सब क्षेत्रों को सही तरीके से पर्यटन के लिए विकसित करने की आवश्यकता है। मौसम बदलते हैं, लेकिन मौसमों के अनुसार हमें प्रदेश की प्रगति के लिए निरंतर बदलने की जरूरत है। यह सब कर पाना मुश्किल नहीं है। यह भी जरूरी है कि पर्यटन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण स्थलों की प्राकृतिक सुंदरता को यथावत कायम रखा जाए। वास्तव में पर्यटक होटल में ठहरने के लिए नहीं आता है, वह प्रकृति के दर्शन करना चाहता है, अतः प्रदेश के प्राकृतिक सौंदर्य को बरकरार रखना प्रदेश सरकार की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। तभी पर्यटन फलेगा-फूलेगा।
रमेश पठानिया
स्वतंत्र लेखक