बंद करो सर्वे की सियासत

By: May 10th, 2022 12:05 am

अब विश्व के आश्चर्य ताजमहल का नंबर है। ऐतिहासिक कुतुबमीनार पर भी विवाद छिड़ चुका है और अदालत के विचाराधीन है। भारत की स्वतंत्रता के प्रतीक ‘लालकिला’ में भी खुदाई और सर्वे की मांग उभर सकती है। आगरा की खूबसूरत इमारत ‘फतेहपुर सीकरी’ पर भी अतिवादी सवाल कर सकते हैं। देश की सबसे प्राचीन और भव्य ‘मक्का मस्जिद’ तेलंगाना के हैदराबाद में है। उसके संपूर्ण सर्वेक्षण की मांग जोर पकड़ सकती है। दरअसल जिस कालखंड के किस्से हमारे सामने आ रहे हैं, वह मध्यकालीन मुग़ल सल्तनत का दौर था। मुहम्मद गौरी, गज़नवी, सुल्तान शाह, शाहजहां और औरंगज़ेब सरीखे बादशाह आक्रांताओं ने हमारे असंख्य मंदिरों को ध्वस्त किया, उन्हें लूटा, मंदिरों के पुनर्निर्माण कराने वाले राजा-महाराजा भी इतिहास ने देखे हैं अथवा मुस्जिदों को चिनवाया गया। वह हिंदू संस्कृति और मुग़ल आतताइयों के दरमियान अस्तित्व के टकराव का भी दौर था। आगरा का ‘ताजमहल’ विश्व के अद्भुत आश्चर्यों में एक है। वह आज भारत की सांस्कृतिक पहचान और विश्व-धरोहर है। उसे मुग़ल बादशाह शाहजहां ने बनवाया था अथवा उसकी मूल पहचान ‘तेजोमहालय’, आदि शिवलिंग के मंदिर, की है, इस पर इतिहासकार ढेरों किताबें लिख चुके हैं। सर्वमान्य तथ्य शाहजहां से जुड़ा है। फिल्में भी बनाई गई हैं। किताबों के निष्कर्ष परस्पर विरोधाभासी भी हैं। मौजूदा सच यह है कि ‘ताजमहल’ भारत की पहचान और उसका पर्याय है। दुनिया के राष्ट्राध्यक्ष भारत के प्रवास पर आते हैं, तो ‘ताजमहल’ का सौंदर्य देखने जरूर जाते हैं। वह बेपनाह मुहब्बत की मिसाल भी है। यदि हम भारतीय ही ‘ताजमहल’ का सच कुरेदते रहेंगे और सवाल, सर्वे का शोर मचाते रहेंगे, तो दुनिया हमारी खिल्ली उड़ाएगी।

 हम ‘सांस्कृतिक भस्मासुर’ करार दिए जा सकते हैं। हम मान लेते हैं कि काशी की ज्ञानवापी मस्जिद के तहखाने और ताजमहल के बंद 22 कमरों में ‘आदि शिवलिंग’ मौजूद हो सकते हैं। उन्हें ‘ज्योतिर्लिंग’ भी माना जा रहा है। कुतुबमीनार के परिसर में भी महादेव, गणेश आदि हिंदू देवताओं के खंडित भित्ति-चित्र और प्रतिमाएं मिली हैं। ऐसा दावा किया जा रहा है। यदि ऐतिहासिक अतीत को कुरेदा जाएगा, तो जख्म ही मिलेंगे। अवशेषों को देखकर आक्रोश भी भड़क सकता है और अवसाद भी महसूस कर सकते हैं। अतीत को इतिहास के हवाले क्यों नहीं छोड़ा जा सकता? अतीत याद दिलाया जाता रहेगा, तो प्रतिशोध की भावना भी पैदा होती रहेगी।

 उससे क्या हासिल किया जा सकता है? ताजमहल के सौंदर्य को निहारने हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई और यहूदी तक जाते रहे हैं, फिर उसे मुग़ल आक्रांताओं की लूटपाट, खून-खराबे से जोड़ कर क्यों देखा जा रहा है? आज ज्ञानवापी, मथुरा की कृष्ण जन्मभूमि, ताजमहल, कुतुबमीनार से लेकर हज़रतबल दरगाह तक कोई भी ऐतिहासिक स्मारक स्वरूपा इमारत ‘विशुद्ध भारतीय’ है। उसका अतीत कुछ भी रहा हो। इस मुद्दे को सिर्फ एक कट्टरपंथी सोच का तबका ही ‘हवा’ देता रहा है और मंदिर-मस्जिद के विभाजनकारी हालात बनते रहे हैं। ऐसी इमारतों का सम्मान करना चाहिए और विश्व के पर्यटकों के लिए उन्हें सार्वजनिक कर देना चाहिए। देश को राजस्व भी मिलेगा। दरअसल यह हमारी नियति है कि मंदिर-मस्जिद वालों को साथ-साथ ही रहना है। यही विविधता भारतीय है। यह देश भी सभी का है। देश की गली-गली, मुहल्ले-दर-मुहल्ले में मंदिर मौजूद हैं। सनातनी हिंदू उन्हें ही आस्थामय, श्रद्धेय और सुंदर बनाएं। दरअसल अयोध्या का विवाद कुछ भिन्न था। सर्वोच्च अदालत ने उसका समाधान निकाल दिया। तनाव समाप्त हुआ। इसी तरह काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर के जरिए ‘महादेव की नगरी’ का परिसंस्कार किया जा चुका है। अब मज़हबी टकराव यहीं समाप्त हो जाने चाहिए। सर्वे की सियासत भी बंद हो।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App