कांग्रेसी उदय में सुक्खू

By: May 21st, 2022 12:06 am

हिमाचल प्रदेश चुनाव प्रचार समिति के अध्यक्ष सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने हमीरपुर दुर्ग की नाकेबंदी शुरू करते हुए, भाजपा को सुरक्षा कवच पहनाने का बिगुल फूंका है। राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी के असमंजस से कहीं अलग हिमाचल कांग्रेस यह साबित करने में उतरी रही है कि प्रदेश की सियासी जरूरतें उसके अस्तित्व से जुड़ती हैं। यह उस समय हो रहा है जब पड़ोसी राज्य पंजाब में सुनील जाखड़ सरीखे नेता पार्टी से कुपित होकर अलग मार्ग अख्तियार कर रहे हैं या गुजरात के चुुनावी परिदृश्य से हार्दिक पटेल जैसे युवा कांग्रेस से पल्ला झाड़ रहे हैं। हिमाचल में भी कांग्रेस से कुछ नेताओं को छीनने के लिए भाजपा व आम आदमी पार्टी का मंतव्य व मकसद साफ है, तो ऐसे वक्त में पार्टी के भीतर मनोबल, विश्वास और अनुशासन की दरकार दिखाई देती है। ऐसे में मुकेश अग्रिहोत्री के बाद सुखविंद्र सुक्खू ने भी बता दिया कि कांग्रेस को जिस जुबान की जरूरत है, वह पार्टी के पास है। सुक्खू पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के वर्तमान में भाजपा की उदासीनता का जिक्र करते हुए यहां तक कह देते हैं कि इस नेता के आसपास पार्टी ने हाशिए खड़े कर दिए हैं।

कांग्रेस इस तरह भाजपा के चुनावी मजमून की परतें खोलना चाहती है और कहीं न कहीं ऐसे बयान से हमीरपुर की संवेदना जुड़ जाती है। नई कार्यकारिणी के साथ कांग्रेस के चुनावी उदय में सुक्खू का प्रभाव दिखाई दे रहा है, लेकिन सारे तामझाम में यह भी स्पष्ट होने लगा है कि पार्टी हर जिला की संवेदना को जनता के साथ जोड़ रही है और इस तरह क्षेत्रीय क्षत्रपों की आजमाइश में चुनाव को साधने की मशीनरी तैयार होने लगी है। पहले ही मुकेश अग्रिहोत्री ने ऊना की राजनीतिक जमीन को तपा दिया है, तो अब हमीरपुर के खाके में सुक्खू का जोरदार पर्दापण दिखाई दे रहा है। मंडी की सांसद प्रतिभा सिंह के मार्फत वीरभद्र सिंह की विरासत का वजन बढ़ाने का संकल्प सामने आ रहा है, लेकिन यहां ठाकुर कौल सिंह के धरातल का भी सवाल है। चंबा में हर्ष महाजन का फलक उम्मीदों से भर रहा है, तो सिरमौर में हर्षबद्र्धन व विनय कुमार की युगलबंदी पर ताल ठोंकी जा रही है। हालांकि कांगड़ा से पवन काजल को महत्त्वपूर्ण ओहदा देते हुए अन्य पिछड़ा वर्ग में कांग्रेस अपनी सेहत ठीक कर रही है, लेकिन इस फेहरिस्त में कुछ वरिष्ठ नेता खामोश दिखाई दे रहे हैं। अन्य जिलों की अपेक्षा कांगड़ा में पार्टी का नेतृत्व अभी कोई स्पष्टता धारण नहीं कर रहा है। आश्चर्य यह कि कांगड़ा में पार्टी को जहां बड़ा दांव खेलना था, वहां अपनी कसरतों में फंस कर रह गई है। इस तरह आरंभिक जोश की नई परिपाटी स्थापित करने में कहीं संगठनात्मक दोष सामने आ रहा है। फिलहाल पार्टी की सक्रियता शिमला, ऊना व हमीरपुर के दुर्गों में सियासी गणित बना रही है। कुछ हद तक बिलासपुर में राम लाल ठाकुर ने भी कमर कसी है, लेकिन सुरेश चंदेल का सही इस्तेमाल नहीं होता है, तो कुछ सियासी चश्मों का पानी व्यर्थ हो जाएगा। ऊर्जा के साथ कांग्रेस की स्फूर्ति का मसला भी रहा है, लेकिन हमीरपुर में सुक्खू ने कुछ ऐसा प्रहार किया है जिससे भाजपा को अपने जवाब ढूंढने पड़ेंगे। ऐसे में कांग्रेस के हर नेता को जिलावार मुद्दों की शिनाख्त, जनता की संवेदना और सरकार की खामियों पर आक्रामक होना होगा। पार्टी के भीतर सुधीर शर्मा जैसे पूर्व मंत्रियों की खामोशी का रहस्य अगर नहीं टूटा तो अभियानों का अभिप्राय सिमट जाएगा। कांग्रेस किसी एक बड़े नेता के पीछे पूर्ण नहीं होगी, बल्कि जिलावार नेताओं की आक्रामकता से राज्य में अपनी स्थिति सुदृढ़ कर पाएगी। केंद्रीय नेतृत्व के लिए भी यह जरूरी है कि गुजरात से कहीं अधिक हिमाचल पर केंद्रित हो वरना जिस तरह उत्तर प्रदेश में जोर आजमाइश करने के चक्कर में उत्तराखंड के समीकरण बिगाड़े, वही हालत यहां भी हो सकती है। नेताओं की नगरी बनने के बजाय नगरों के नेताओं को राज्य के लिए जोड़ा जाए।

 


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