ऊंट दूल्हा, गधा पुरोहित

By: Jun 21st, 2022 12:02 am

ऊँट दूल्हा है और गधा पुरोहित। पथ अग्नि भरा है और अग्निवीर बने बाराती आँखों पर पट्टी बाँधे चल रहे हैं। लेकिन आप इन्हें अंधभक्त की संज्ञा न दें। हो सकता है, आपको यह पक्षपात लगे। पर आप इनकी भक्ति और निष्ठा पर क़तई सन्देह न करें। यह वही जमात है जो सदियों से सत्ता की चाकरी करती आई है। जो सदा अवतार की कल्पना में खोई अपने कष्टों के निवारण के लिए राजा को भगवान के रूप में देखती आई है। फिर जिस बारात में ऊँट दूल्हा हो और गधा पुरोहित, वहाँ कहने के बावजूद अंधभक्त गधे पर बैठने वाले नहीं। आप चाहें तो कोशिश कर के देख लें। समझाने के बावजूद अंधभक्त आँखों से पट्टी नहीं खोलेंगे और भेड़ों की तरह झुँड बना कर गड्ढे में गिरते रहेंगे। जब ऊँट कुछ बोलने के लिए अपना मुँह खोलता है तो गधे उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक ‘सुर मिले मेरा तुम्हारा’ अलापने लगते हैं। बाराती ताल देते हैं। सदियों से दरबारों की यही संस्कृति रही है। सुर में सुर न मिलाने वाला अर्बन नक्सली हो सकता है या देशद्रोही। उसे दरबार से उठा कर बाहर फैंक दिया जाता है। अपने गले में बिल्ली बाँधे ऊँट चाहे कुछ भी अनर्गल बोलता रहे, गधे पुरोहित कर्म निभाते रहेंगे और अंधभक्त सिर हिलाते हुए पुष्प वर्षा करते रहेंगे। दरबार से किसी योजना का उद्घोष होता है और तमाम मंत्री बधाइयाँ देते हुए नज़र आते हैं कि ऐसी योजना न कभी आई थी और न कभी आएगी।

 आज तक ऐसा अभूतपूर्व क़दम किसी ने नहीं उठाया। जय हो। कुछ बोलने या विरोध करने पर अंधभक्त लोगों का सिर फोड़ते नज़र आते हैं। लेकिन जहाँ बड़ों का ठिकाना नहीं, वहाँ छोटों को क्या कहा जा सकता है। यह केवल विश्व गुरू देश में ही संभव है कि कई योजनाओं की साँस निकल जाने के बावजूद बिना किसी आरम्भिक परीक्षण के धड़ाधड़ योजनाएं लागू की जाएं और वापिस लेने की घोषणा उस तरह करनी पड़े, जैसे हवा में थूकने के बाद कोई उसे पुनः अन्दर खींचने की कोशिश करता है। संभवतः थूक कर चाटना इसे ही कहते हों। ऊँट कभी यह नहीं सोचता कि ओठों से निकली जो कोठों पर चढ़ जाती है, वह बात कभी वापिस नहीं आती। भू-अधिग्रहण, नोटबंदी, सीएए, कृषि कानून वग़ैरह क्या पहले ही कम थे जो वे अग्निपथ पर चलने लगे। पर वे वीर ही क्या जो अग्निपथ पर जलते हुए अंगारों पर क़दम न रखें।  लेकिन इन वीरों का चार साल बाद क्या होगा इसकी चिंता चार साल बाद करेंगे। अगर कुछ न हुआ तो पकौड़े तलने और चाय को प्रधानमंत्री पहले ही राष्ट्रीय रोज़गार घोषित कर चुके हैं। बारिशों में यूँ भी लोग पकौड़े ज़्यादा खाते हैं और चाय तो हमारा अघोषित राष्ट्रीय पेय है ही।

 हो सकता है कि आज से ठीक पाँच साल बाद आप किसी ठेले पर लगा हुआ बोर्ड पढ़ रहे हों, ‘भूतपूर्व अग्निवीर टी स्टाल’, ‘भूतपूर्व अग्निवीर शू स्टोर’ या ‘भूतपूर्व अग्निवीर चिकन शॉप’। अगर यह भी करने की इच्छा न हो तो किसी कारख़ाने. मॉल या कोठी पर चौकीदारी तो की ही जा सकती है। हाँ, युवाओं से इतनी विनती ज़रूर है कि संयम बनाए रखें और अग्निपथ योजना के विरोध में भूल कर भी किसी राष्ट्रीय सम्पत्ति को आग के हवाले न करें। ऐसा होने पर उसे बेचने में दिक्कत आ सकती है। अंधभक्तों की भक्ति देखिए कि अग्निवीर योजना को लेकर इतने उत्साहित हैं कि इसे मोदी का मास्टर स्ट्रोक नहीं, महा मास्टर स्ट्रोक बता रहे हैं। उनका मानना है कि अभी वामपंथी और देश विरोधी इसे समझ नहीं पा रहे हैं। जब समझेंगे तो इसका विरोध छोड़ देंगे। दूसरी ओर डिजिटलवीर लोगों को बता रहे हैं कि हिंदू जब इस योजना को समझ जाएंगे तो सौ फीसदी इसके समर्थन में आ जाएंगे। अग्निवीर योजना से भारत और सनातन तथा अजेय बनेगा। लेकिन सवाल उठता है कि क्या भारत इस योजना से पहले सनातन नहीं था।

पी. ए. सिद्धार्थ

लेखक ऋषिकेश से हैं


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