गाली के सहारे कांग्रेस

By: Jun 22nd, 2022 12:02 am

कांग्रेस ने पहली बार प्रधानमंत्री मोदी को गाली नहीं दी है। यह बदजुबानी ही नहीं, बददुआ भी है। गाली देने का सिलसिला 2007 में शुरू हुआ था, जब मोदी के प्रधानमंत्री बनने की संभावनाएं दूर-दूर तक नहीं थीं। अलबत्ता वह गुजरात के मुख्यमंत्री जरूर थे। 2007 चुनाव-वर्ष था। विधानसभा के चुनाव होने थे। गोधरा कांड को एक अंतराल बीत चुका था। सर्वोच्च अदालत की निगरानी में विशेष जांच दल गोधरा सांप्रदायिक हादसे के कारणों और हत्यारी इकाइयों की जांच कर रहा था। जांच दल ने मुख्यमंत्री मोदी से भी घंटों पूछताछ की थी। उस माहौल में  यूपीए-कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सार्वजनिक मंच से मुख्यमंत्री को ‘मौत का सौदागर’ कहा था। चुनाव वहीं से करवट बदल गया। भाजपा को अपेक्षा से अधिक जनादेश हासिल हुआ। मई, 2014 में नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री चुने गए। उससे पहले चुनाव प्रचार के दौरान और प्रधानमंत्री बनने के बावजूद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर उन्हें ‘चायवाला’ कहकर संबोधित करते रहे। चलो, यह कुछ हद तक मर्यादित संबोधन था, क्योंकि मोदी ने बचपन में चाय बेची थी। मणिशंकर ने पाकिस्तान में जाकर भारत के प्रधानमंत्री की खुली निंदा की और सरकार गिराने में मदद की गुहार की।

बेचारा, दिवालिया पाकिस्तान क्या कर सकता था? लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के प्रति नफरत, उन्हें दांत पीस-पीस कर कोसना और भद्दी, अश्लील, अमर्यादित गालियां देने का सिलसिला जारी रहा। सत्ता के आठ साल पूरे करने के बाद भी मोदी सरकार ‘हिमालय’ की तरह अडिग, अचल और स्थिर है, बेशक प्रियंका गांधी कुछ भी आह्वान करती रहें। लेकिन कांग्रेस राजनीतिक तौर पर ‘हाशिए की पार्टी’ बन गई है। सिर्फ राजस्थान, छत्तीसगढ़ में ही उसके दो मुख्यमंत्री हैं। महाराष्ट्र और झारखंड की सरकारों में कांग्रेस ‘पिछलग्गू’ है। लोकसभा के 545 सदस्यों में कांग्रेस के 53 सांसद ही हैं। पार्टी के हिस्से ‘नेता प्रतिपक्ष’ का ओहदा भी नहीं आया। दरअसल भारत समग्रता में एक लोकतांत्रिक देश है, लेकिन लोकतंत्र के मायने गालियां देना ही नहीं होते। अमर्यादित भाषा और आचरण स्वीकार्य नहीं हैं, लेकिन कांग्रेस के ‘सत्याग्रही मंच’ से प्रधानमंत्री मोदी के लिए अभिशप्त बोल बोलना लोकतांत्रिक राजनीति नहीं है। पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय ने प्रधानमंत्री के लिए कामना की है कि वह ‘हिटलर की मौत’ मरेंगे। मोदी को यह याद रखना चाहिए। महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में एक और कांग्रेसी नेता ने प्रधानमंत्री की ऐसी मौत की कामना की है, जिसे हम लिख नहीं सकते। हमारी नैतिकता सर्वोपरि है, हमारा मूल्य है। सवाल यह है कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में हिटलर जैसे तानाशाह की कल्पना कैसे की जा सकती है? मोदी किस आधार पर ‘तानाशाह’ करार दिए जा सकते हैं? अभी ‘अग्निपथ’ योजना का हिंसक विरोध करते हुए देश के कई राज्यों में भीड़ ने रेलगाडि़यों को जला-फूंक कर 1000 करोड़ रुपए के करीब का नुकसान रेलवे का किया है। क्या ‘तानाशाही’ के दौरान ऐसा किया जा सकता है? क्या अब लोकतांत्रिक भारत में यही राजनीतिक संस्कृति बची है? क्या गालियों के सहारे ही कांग्रेस सियासत करेगी और कामयाब होना चाहेगी?

 कांग्रेसी नेताओं ने विभिन्न मंचों से प्रधानमंत्री मोदी के लिए ‘राक्षस’, ‘यमराज’, ‘सांप’, ‘बिच्छू’, ‘तेली’, ‘कातिल’, ‘खून की दलाली’, ‘मौत की खेती’ सरीखे अपशब्दों का इस्तेमाल किया है। वे कांग्रेसी सरकारों में मंत्री भी रहे हैं और सालों तक संसद में भी रहे हैं, लेकिन वे नहीं जानते कि देश के निर्वाचित प्रधानमंत्री के लिए किन शब्दों का प्रयोग किया जाए। वे भारत की गरिमा और वैश्विक छवि के प्रति भी चिंतित नहीं हैं। वे मोदी से नफरत करते हैं और मोदी लगातार कांग्रेस को पराजित करते हुए हाशिए तक धकेल चुके हैं। हमें याद आ रहा है कि उप्र में सपा नेता इमरान मसूद ने बयान दिया था कि वह मोदी की बोटी-बोटी काट देंगे। राहुल गांधी को उस नेता में संभावनाएं दिखीं और उसे कांग्रेस में शामिल कर लिया। किस संस्कृति के सहारे चलना चाहती है कांग्रेस? भाजपा ने अनुमान दिया है कि कांग्रेस करीब 80 बार प्रधानमंत्री मोदी को गाली दे चुकी है, लेकिन उनमें से किसी भी नेता के प्रति प्रतिशोध की भावना से कार्रवाई नहीं की गई। कांग्रेस तो ऐसे मोदी-विरोधी नेताओं की भीड़ जमा करना चाहती है, लिहाजा कार्रवाई क्यों करेगी? बहरहाल कांग्रेस अपनी नियति खुद तय कर रही है। कोई क्या कर सकता है? लोकतंत्र में विपक्ष का काम हालांकि सरकार की जनविरोधी नीतियों का विरोध करना होता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि सत्ता पक्ष के नेता को गालियां ही दी जाएं। वास्तव में जितनी गालियां कांग्रेस मोदी को देगी, मोदी उतने ही मजबूत होते जाएंगे। इसलिए कांग्रेस को चाहिए कि वह तथ्यों के आधार पर सरकार की नीतियों की आलोचना करे। तभी लोकतंत्र मजबूत होगा।


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