हमीरपुर के सुप्रसिद्ध दिवंगत साहित्यकार

By: Jun 19th, 2022 12:05 am

साहित्य की निगाह और पनाह में परिवेश की व्याख्या सदा हुई, फिर भी लेखन की उर्वरता को किसी भूखंड तक सीमित नहीं किया जा सकता। पर्वतीय राज्य हिमाचल की लेखन परंपराओं ने ऐसे संदर्भ पुष्ट किए हैं, जहां चंद्रधर शर्मा गुलेरी, यशपाल, निर्मल वर्मा या रस्किन बांड सरीखे साहित्यकारों ने साहित्य के कैनवास को बड़ा किया है, तो राहुल सांकृत्यायन ने सांस्कृतिक लेखन की पगडंडियों पर चलते हुए प्रदेश को राष्ट्र की विशालता से जोड़ दिया। हिमाचल में रचित या हिमाचल के लिए रचित साहित्य की खुशबू, तड़प और ऊर्जा को छूने की एक कोशिश वर्तमान शृंाखला में कर रहे हैं। उम्मीद है पूर्व की तरह यह सीरीज भी छात्रों-शोधार्थियों के लिए लाभकारी होगी…

अतिथि संपादक,  डा. सुशील कुमार फुल्ल

मो.-9418080088

हिमाचल रचित साहित्य -19

विमर्श के बिंदु

  1. साहित्य सृजन की पृष्ठभूमि में हिमाचल
  2. ब्रिटिश काल में शिमला ने पैदा किया साहित्य
  3. रस्किन बांड के संदर्भों में कसौली ने लिखा
  4. लेखक गृहों में रचा गया साहित्य
  5. हिमाचल की यादों में रचे-बसे लेखक-साहित्यकार
  6. हिमाचल पहुंचे लेखक यात्री
  7. अतीत के पन्नों में हिमाचल का उल्लेख
  8. हिमाचल से जुड़े नामी साहित्यकार
  9. यशपाल के साहित्य में हिमाचल के रिश्ते
  10. लालटीन की छत से निर्मल वर्मा की यादें
  11. चंद्रधर शर्मा गुलेरी की विरासत में

वीरेंद्र शर्मा ‘वीर’, मो.-7973307129

-(पिछले अंक का शेष भाग)

डीएन कौल ‘नदौणी’

डीएन कौल ‘नदौणी’ का जन्म जिला हमीरपुर के नादौन निवासी जगन्नाथ कौल के घर 25 अप्रैल 1922 को हुआ। इनकी रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं तथा इनके गीतों, भजनों, कविताओं का लगातार आकाशवाणी शिमला से प्रसारण होता रहा। हालांकि यह अपने लिखे को पुस्तक का आकार देने में असमर्थ रहे। 21 अक्टूबर 1989 को वे इस संसार को छोड़ कर चले गए।

श्रीमती कृष्णा शर्मा

श्रीमती कृष्णा शर्मा का जन्म 6 अप्रैल 1935 को गांव जलगरूपा जिला हमीरपुर में हुआ। उनके द्वारा रचित लोक साहित्य पर आधारित लेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे तथा शैक्षणिक कार्यक्रमों के अंतर्गत आकाशवाणी से वार्ताएं भी प्रसारित होती रहीं। 4 जनवरी 1984 को उनका देहावसान हो गया।

श्रीमती कमला वर्मा ‘कमल’

श्रीमती कमला वर्मा ‘कमल’ का जन्म मिल्खी राम कपूर सराफ के घर 28 सितंबर 1939 को हुआ। इनका अधिकतर लेखन हिंदी, पहाड़ी तथा पंजाबी में है। कविता, कहानी, आलेख, नाटक, रूपक, झलकियां विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं। आकाशवाणी से भी इनकी वार्ताएं प्रसारित हुईं। एशियन पेसिफिक हू इज हू में भी इनका जीवन वृत्त प्रकाशित किया गया। 24 मार्च 2010 को वे इस नश्वर शरीर को छोड़कर परमधाम को चली गईं।

दुनी चंद शर्मा

दुनी चंद शर्मा का जन्म गांव बडा घर लगबंदी जिला हमीरपुर निवासी पंडित रामदयाल शर्मा के घर 10 मार्च 1926 को हुआ। हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी में बराबर लेखन करते रहे। ‘कांगड़ा के लोकगीत’ उर्दू भाषा में तथा ‘पहाड़ी लोकगीत’ पहाड़ी भाषा में प्रकाशित हुए। इसके अतिरिक्त लघु कथाएं, निबंध, हास्य-व्यंग्य तथा लोक गीतों पर आधारित आलेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे। विश्व भर में विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों के तुलनात्मक अध्ययन में भी इनका उल्लेखनीय कार्य रहा। 24 दिसंबर 2021 में 95 वर्ष की उम्र में उनका देहांत हुआ।

प्रेम पखरोलवी

साहित्यकार, पत्रकार, अधिकारी तथा राजनेता रहे प्रेम पखरोलवी का जन्म पंडित फतेह चंद शर्मा के घर 16 सितंबर 1935 को गांव पखरोल, डाकघर सेरा, जिला हमीरपुर में हुआ। सन् 1955 से 1981 तक लोक संपर्क अधिकारी के रूप में कार्य करने के उपरांत सेवानिवृत्त हुए। पहली कहानी पाकिस्तान और भारत के रिश्तों पर आधारित लिखी, जिसे ऑल इंडिया लिटरेरी काउंसिल द्वारा पुरस्कृत भी किया गया। कहानी, ललित निबंध, व्यंग्य लेखन इनका क्षेत्र रहा।

शिमला से प्रकाशित नवनीत भारती का संपादन भी किया तथा कुछ समय नेशनल हेराल्ड के लिए पत्रकारिता भी की।  हिमाचल का जनजीवन तथा आस्थाएं, बूंद समानी समुंदर में, चिंतन अनुचिंतन, लकीरों के घिराव में तथा मेरे प्रिय ललित निबंध इनकी प्रसिद्ध पुस्तकें हैं। ये बहुत सी सामाजिक संस्थाओं से जुड़े रहे। सन् 1985 से 1990 तक नादौन विधानसभा का विधायक के रूप में प्रतिनिधित्व भी किया। 6 दिसंबर 2011 को इनका देहांत हुआ।

पवन पखरोलवी

पवन पखरोलवी का जन्म 5 मार्च 1949 को गांव पखरोल, डाकघर सेरा, जिला हमीरपुर में हुआ। पठन-पाठन तथा लेखन का शौक बचपन से ही रहा। पहली रचना जन प्रदीप मिशन 1970 में छपी। इसके उपरांत हिमप्रस्थ, कई सांझा संकलनों तथा अनेकों पत्र-पत्रिकाओं में इनकी रचनाएं प्रकाशित होती रहीं। पहाड़ी भाषा में लेखन के लिए दिए गए इनके योगदान हेतु हिमाचल सरकार ने इन्हें सम्मानित भी किया।

साल 1969 से लेकर पहले लोक संपर्क अधिकारी, फिर सन् 2007 तक जिला लोक संपर्क अधिकारी के रूप में सेवाएं देने के बाद सेवानिवृत्त हुए। इनका बहुत साहित्य अभी तक अप्रकाशित है जिसे इनके सुपुत्र प्रकाशित करवाने लगे हैं। 13 जून 2020 को इनका देहांत हुआ।

गुलशन नदौणवी

गुलशन नदौणवी पुराना बस स्टैंड नादौन के निवासी थे। अब उनके परिवार में से यहां कोई भी नहीं रहता। वे अपने समय के हिमाचल प्रदेश के मकबूल शायरों में से एक थे। बहुत सी पत्र-पत्रिकाओं, रसालों में इनकी ग़ज़लें प्रकाशित हुईं। इनके मित्र तथा ग़ज़ल विधा छात्र डीडी गुलज़ार ने इनकी ग़ज़लों का एक संग्रह ‘बहारे गुलशन’ के नाम से सन् 2009 में हिमाचल कला संस्कृति भाषा अकादमी में प्रकाशन हेतु जमा करवाया था। उसी में उनका जीवन वृत्त भी लिखा गया था, जो कितने वर्ष बीत जाने के बावजूद न प्रकाशित हो सका और न ही उस पांडुलिपि का अब अता-पता है।

शंकर दास ‘कमर’ ध्यानपुरी

विजय नगर कॉलोनी हमीरपुर निवासी शंकर दास ‘कमर’ ध्यानपुरी का जन्म सन् 1910 में लाहौर में हुआ था। उन्होंने सूचना जनसंपर्क अधिकारी के रूप में पहले अमृतसर, फिर कांगड़ा, हमीरपुर, ऊना आदि में नौकरी की। अपने समय के वे अच्छे हॉकी तथा कुश्ती खिलाड़ी थे। 1937 में पंजाब हॉकी टीम के सदस्य रहे तथा विख्यात पहलवान दारा सिंह के साथ इनकी खूब दोस्ती रही। इसके साथ ही साथ वह अच्छे शायर भी थे। शायरों में प्रोफेसर पीएन शर्मा, मनोहर सागर पालमपुरी, डॉक्टर शबाब ललित, बक्शी राम मुसाफिर इनके अच्छे दोस्त थे। इनकी रचनाएं अमृतसर से प्रकाशित होने वाली पत्रिका दिहात सुधार में सन् 1938 में प्रकाशित होना शुरू हो गईं। उर्दू तथा शाहमुखी में रचित हालांकि उनकी ग़ज़ल तथा कविताएं अपने समय की समस्त पत्र-पत्रिकाओं तथा समाचार पत्रों में प्रकाशित होती रहीं। हालांकि उनकी अपनी कोई पुस्तक प्रकाशित नहीं हो सकी। 1950-51 से लेकर 1957 तक वे धर्मशाला से प्रकाशित होने वाले साप्ताहिक समाचार पत्र ललकार के उप संपादक भी रहे। इनका देहांत अक्टूबर 1988 में हमीरपुर में हुआ।

-(शेष भाग निचले कॉलम में)

हमीरपुर के दिवंगत साहित्यकारों को नमन

-(ऊपरी कॉलम का शेष भाग)

भूदेव दीक्षित

शास्त्री भूदेव दीक्षित का जन्म हमीरपुर जिला की तहसील सुजानपुर टीहरा के ब्रह्मपुरी मोहल्ला में 12 मार्च 1926 को  पंडित श्रुति प्रकाश शर्मा के घर हुआ। संस्कृत, हिंदी तथा पहाड़ी भाषाओं में लेखन के साथ-साथ संगीत में भी बराबर हस्तक्षेप रखने वाले भूदेव दीक्षित ने करीब 12 से 14 पुस्तकों की रचना की जिनमें पहाड़ी अलंकार चंद्रिका, राग चंद्रिका, अलंकार मार्तंड, महाराजा संसार चंद कटोच तथा संस्कृत श्लोकों का लेखन मुख्य रहा।

ठाकुर राम सिंह

गौरवशाली अतीत को विश्व के सामने लाने वाले इतिहास पुरुष ठाकुर राम सिंह का जन्म गांव झंडवी, तहसील भोरंज, जिला हमीरपुर में ठाकुर भाग सिंह के घर मां नियातु देवी की कोख से 15 फरवरी 1915 को हुआ। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में जीवन पर्यंत अनेकानेक कर्त्तव्यों का निर्वहन करते हुए उन्होंने अनेक आयामों को छुआ। वे अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना की प्रेरणा थे। उन्होंने आरएसएस की इतिहास संकलन समिति ‘इतिहास संकलन शाखा’ का नेतृत्व किया। उन्हें 1988 में अखिल भारतीय इतिहास संकल्प योजना का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी दी गई थी। उन्होंने आरएसएस के अनुभवी प्रचारक मोरोपंत पिंगले के मार्गदर्शन में इस काम की शुरुआत की, जिनकी इस परियोजना को स्थापित करने में प्रमुख भूमिका थी।

ठाकुर राम सिंह जी को बिना रुके घंटों सटीक तथ्यों सहित बात रखने की महारत हासिल थी। उन्होंने इतिहास संकलन के उद्देश्य के लिए कई इतिहासकारों, विद्वानों और वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को प्रेरित किया और शीघ्र ही देश के विभिन्न हिस्सों में काम का विस्तार किया। वे कई विद्वानों, इतिहासकारों और बुद्धिजीवियों को योजना से जोड़ने में सफल रहे। उन्होंने वैवस्वत मन्वन्तर में मानव निर्माण, सामाजिक व्यवस्था, भारत पर सिकंदर के आक्रमण और जम्मू क्षेत्र में डोगरा योद्धाओं द्वारा उनकी हत्या, महाराजा संसार चंद कटोच और कई अन्य महत्वपूर्ण विषयों पर हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर में चार राष्ट्रीय सेमिनार आयोजित किए। यह ठाकुर राम सिंह की प्रेरणा और अखिल भारतीय इतिहास संकल्प योजना के प्रयासों के कारण है कि हमीरपुर जिले के नेरी में ठाकुर जगदेव चंद स्मृति शोध संस्थान का गठन किया गया।

राम सिंह इसके संस्थापक संरक्षक थे। ठाकुर जगदेव चंद स्मृति शोध संस्थान द्वारा अपनी पत्रिका इतिहास दिवाकर में उनके द्वारा लिखित कुछ आलेखों पर आधारित उन्हीं को समर्पित विशेषांक समर्पित किया गया। इसके अतिरिक्त इनके द्वारा लिखी गई चिट्ठियों को पावन पत्राचार नामक पुस्तक में संकलित किया गया है। कहीं-कहीं उनकी कुछ फुटकर रचनाएं भी मिलती हैं। 6 नवंबर 2011 को इन्होंने 95 वर्ष की उम्र में अंतिम सांस ली।

लश्करी राम राठौर

पूर्व विधायक, समाजसेवी, चिकित्सक एवं लेखक लश्करी राम राठौर का जन्म 1940 के आसपास टौण देवी के पास छोटे से गांव में हुआ। इनकी फुटकर रचनाएं तथा हिमाचल प्रदेश के रीति-रिवाजों, पूजा पद्धति, धर्म संस्कृति पर गवेषणात्मक निबंध तथा परंपराओं पर आधारित आलेख अवश्य ही मिलते हैं। इनमें से अधिकतर अप्रकाशित हैं। 16 अगस्त 2001 को 60 वर्ष की उम्र में उनका देहांत हो गया।

गिरधारी लाल वर्मा

कवि, गीतकार गिरधारी लाल वर्मा का जन्म हमीरपुर में 15 सितंबर 1948 को हुआ। बचपन से ही उन्हें संगीत का शौक था और उन्होंने अपना सारा जीवन ही संगीत को समर्पित कर दिया। उन्होंने स्थानीय कंपनियों के सहयोग से लेकर टी सीरीज के साथ बीसियों कैसेट निकाले। वर्षों तक आकाशवाणी पर उनके गीत प्रसारित होते रहे। अपने जीवन काल में उन्होंने कम से कम 300 गाने लिखे जो बहुत हिट हुए। इसके अतिरिक्त कुछ कविताएं अभी अप्रकाशित हैं। 3 अप्रैल 2019 को दिल का दौरा पड़ने से उनका देहांत हो गया।

बालक राम शर्मा

बालक राम शर्मा का जन्म पंडित चेतराम शर्मा के घर सन् 1919 में हमीरपुर जिला के महल में हुआ। कहा जाता है कि लोक कथाओं, इतिहास तथा लोक कलाओं पर उनकी याददाश्त गजब की थी। आशु कवि के तौर पर चलते-चलते छोटे-छोटे विषयों पर कविताएं लिख देते थे। उनकी रचनाएं काफी समय तक पंजाब केसरी तथा अन्य पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं। देश विभाजन विभीषिका पर उनका लिखा सन् 1947 में धारावाहिक आलेख ‘शताब्दी एक्सप्रेस’ बहुत मशहूर हुआ। इसके अतिरिक्त 1905 के कांगड़ा भूकंप तथा महाराजा संसार चंद कटोच की सैनिक चौकी महल ‘गढ़’ बारे भी विस्तृत आलेख लिखा था। उनका सारा साहित्य बिना किसी संभाल के लगभग विलुप्त हो गया। 15 फरवरी 2003 को उनका देहांत हो गया।

इन सबके अतिरिक्त साहित्य में योगदान के लिए जिनका नाम आगे आता है, वह नाम है जाहू निवासी डीडी चमन तथा भगत राम कड़ोता। इसके अतिरिक्त हमीरपुर निवासी आशु कवि कालिदास तथा प्रभु राम, उखली निवासी मनोहर लाल शर्मा, बड़ा निवासी धनीराम तथा बिझड़ी के पास के एक अनाम कवि शामिल हैं। इनके अतिरिक्त अपनी शायरी के लिए मौजूदा पाकिस्तान के पेशावर, लाहौर, कराची तक विख्यात उस्ताद शायर लाला जगन्नाथ कमाल जिनके नाम पर राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला (बाल) नादौन स्थापित है, की भी यह साहित्य कर्म भूमि रही है।

-वीरेंद्र शर्मा ‘वीर’

यशपाल की छवियों से मुखातिब डा. कौशिक

साहित्य के क्षेत्र में यशपाल का नाम अपने अक्स के इतने हुजूम खड़े कर देता है कि समीक्षक भी उनके व्यक्तित्व के आईनों में खुद को तराशता हुआ नित नए रास्तों पर लेखकीय विधाओं के स़फर पर निकल सकता है। यशपाल का लिखा हुआ हर शब्द समय की संरचना की ऐसी इकाई है जो कभी कहानी के भीतर तो कभी उपन्यास की धरती पर आजादी के संघर्ष, सामाजिक क्षमताओं के चित्रण या प्रगतिशील चेतना के फलक पर अपनी वैचारिक दृष्टि का विस्तार करता है। यशपाल के बहुरंगी साहित्य में नाट्य सृजन, निबंध साहित्य, संस्मरण या यात्रा वृत्तांत से गुजरते लम्हों से इस बार डा. हेमराज कौशिक साक्षात्कार करवा रहे हैं। हिमाचल कला संस्कृति भाषा अकादमी के सौजन्य और डा. हेमराज की साधना, शोध और सूक्ष्म विश्लेषणों से भरपूर संग्रह ‘क्रांतिकारी साहित्यकार-यशपाल’ लघु गं्रथ के रूप में सामने आया है। पुस्तक के भीतर कई बिंदु ऐसे भी हैं जहां यशपाल में डा. कौशिक या डा. कौशिक में यशपाल समाहित हो जाते हैं। लेखक यशपाल के भीतर किस्सागोई खोजते हैं, तो उनके भीतर के द्वंद्वों को पकड़ लेते हैं।

बीच में वह यशपाल की कृतियों के शाश्वत दर्शन को परोसते हुए चिंतन का धरातल खड़ा कर देते हैं, ‘मनुष्य से बड़ा है- केवल उसका अपना विश्वास और स्वयं उसका ही रचा हुआ विधान। अपने विश्वास और विधान के सम्मुख ही मनुष्य विवशता अनुभव करता है और स्वयं ही उसे बदल भी देता है।’ लेखक यशपाल के करीब गांधीवाद का मुआयना करता है, तो राम राज्य के आदर्श में शासन प्रणाली के प्रति उनकी अस्वीकार्यता और आलोचना का जिक्र करते ‘रामराज्य की पुडि़या’ निबंध को पूरी तरह खंगाल देते हैं। इसी तरह यशपाल इंग्लैंड-अमरीका के पूंजीवादी प्रजातंत्र को भारत के लिए क्यों अनुपयुक्त मानते हैं, इसका सटीक विश्लेषण कौशिक करते हैं। डा. कौशिक इस पुस्तक में यशपाल के चिंतन के साहित्यिक संदर्भों को खंगालते हुए लिखते हैं, ‘यशपाल की साहित्य और कला संबंधी धारणाओं की अभिव्यक्ति उनके सृजनात्मक साहित्य में तो हुई ही है, इसके अतिरिक्त वैचारिक धरातल पर उनके निबंध साहित्य में कला तथा साहित्य विषयक उनका चिंतन मुखर हुआ है। उनके निबंधों में ‘साहित्य का प्रयोजन’, साहित्य का स्वरूप, साहित्य का उद्देश्य, साहित्य की कल्पना, भाषा का प्रश्न, साहित्य आदर्शवादी हो या यथार्थवादी, आदि अनेक साहित्यिक विषयों पर तार्किक दृष्टि से विचार किया गया है।’ ‘क्रांतिकारी साहित्यकार-यशपाल’ दरअसल किताब की शक्ल में यशपाल के व्यक्तित्व और कृतित्व को समग्रता से रूपांतरित करने का ऐसा श्रम है, जो कई भ्रम मिटाता है, जिज्ञासा पैदा करता है, यशपाल की विभिन्न छवियों के भीतर से उनके यथार्थ को छूता है, उनके आलोच्य पक्ष में से जीवन की अनुभूतियों और उस कालखंड की परिस्थितियों में बनते-बिगड़ते प्रभाव के दायरों को समेटता है। यहां यशपाल खुद अपनी किसी कहानी, उपन्यास, निबंध, नाट्य सृजन, यात्रा वृत्तांत, डायरी या पत्रों के पात्र बनकर मुखातिब हैं और आज भी समाज और राष्ट्र के चिंतन में अपनी मौजूदगी दर्ज करते हैं।

साहित्यिक समीक्षा के जिस रूप में पुस्तक सिंहावलोकन करती है, उससे साहित्य के अध्ययन व शोध की परंपराएं पुष्ट होती हैं, साथ ही यशपाल को समझने में एक निष्पक्ष विवेचन भी सामने आता है। उदाहरण के लिए 1946 में आया ‘पार्टी कामरेड’ उपन्यास अपने भीतर अत्यधिक राजनीति को समेटे हुए भी जिस तरह कांग्रेस का मूल्यांकन करता है, वह आज भी भारत के सियासी परिदृश्य के लिए मार्गदर्शन हो सकता है। किताब में यशपाल के संदर्भों को अति महीन भाव से जोड़ते हुए लेखक डा. हेमराज कौशिक खुद को छुपा लेते हैं या यूं कहें कि वह पाठक को यशपाल से रूबरू कराते हुए इतना समीप ले आते हैं कि किताब स्वयं ही अपनी समीक्षा कर देती है। यशपाल के व्यक्तित्व के बीच गूंजते साहित्य की धाराओं को पकड़ने की कृति के रूप में यह संग्रह कामयाब माना जा सकता है।

यशपाल के जीवन का पहाड़ीपन और उनके शौर्य का हिमाचल दिखाते हुए लेखक भावुकता के साथ कई पन्ने बटोरता है, जहां उनकी कहानियां बैजनाथ, धर्मशाला, कांगड़ा व अन्य क्षेत्रों से नाता जोड़ती हैं। वह अपनी पत्नी को पत्र मे लिखते हैं, ‘प्रिय! मैं पहाड़ी हूं। परंतु मेरा पहाड़ मुझसे छूट गया है। वह मेरा संुदर पहाड़, जो पृथ्वी से ऊंचा, स्वर्ग के समीप प्रकृति की शोभा की शान है, वह पहाड़, मेरा धन मुझसे छूट गया।’ यशपाल के प्रथम कहानी संग्रह ‘पिंजरे की उड़ान’ से लेकर उनके देहांत के बाद आए संग्रह ‘लैम्प शैड’ तक लेखक केवल कहानियों की ही समीक्षा नहीं कर रहा, बल्कि यह तर्क भी पैदा करता है कि यशपाल की कहानियों में मार्क्सवादी धारा की पूर्णता खारिज होती है। यशपाल के चार दशकों के औपन्यासिक सृजन में देश की वैचारिकता व सियासी विचारधारा के बीच मंडराते सफर के बावजूद यह पुस्तक यशपाल के पक्ष में कहती है, ‘यशपाल मूलतः मध्यवर्गीय जीवन को चित्रित करने वाले कथाकार हैं। वह अपने संपूर्ण साहित्य में मध्यमवर्गीय जीवन की क्षमताओं और कमजोरियों को साथ-साथ चित्रित करते हुए चलते हैं। पुस्तक अपने रूप-स्वरूप और विषय के आधार पर साहित्य के भीतर और बाहर के यशपाल की रचनात्मक प्रतिभा और मौलिक चिंतन को प्रमाणित करते हुए, कई टिप्पणियों, संदर्भों और प्रकाशनों का मंथन करती है। दरअसल साहित्यिक परिवेश में यशपाल के भीतर की क्रांति को खोजते शब्द यहां भावनात्मक रूप में प्रवाहित होते हैं, तो मूल्यांकन की विषय वस्तु में लेखक कहीं गहरे में उतर कर, उस भाव-परिदृश्य और परिस्थितियों को छान कर फिर से स्थापित कर देता है, जिनमें यशपाल के साहित्य का उद्भव अपनी परिपक्वता तक समीचीन हो जाता है।

-निर्मल असो

पुस्तक का नाम : क्रांतिकारी साहित्यकार-यशपाल

लेखक : डा. हेमराज कौशिक

प्रकाशक : हिमाचल कला संस्कृति भाषा अकादमी

मूल्य : 330 रुपए


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