डर लगे तो गाना गा!

By: Jun 16th, 2022 12:02 am

बेशक साहिब, यह एक बहुत पुराना देसी फिल्मी गाना है कि ‘डर लगे तो गाना गा’। यह एक भूतिया अंधेरी फिल्म थी, जिसमें अनजाने अनचाहे भूतों से डरते हुए एक आदम की हवेली में नायक और उसका हंसोड़ साथ टूटी-फूटी सीढि़यों पर गिरते-पड़ते हैं। लगता है अभी भी कोई भूत प्रगट हुआ के हुआ और वे इस अनहोनी से कांपते हुए अपना डर भगाने के लिए गाना गाते हैं, ‘डर लगे तो गाना गा।’ अब यहां कोई फिल्म सैट तो है नहीं, लेकिन लगता है कि आज पूरा देश ही जैसे भूतिया हवेली बन गया। कई मास हो गए, कोरोना नाम का भूत और उसका दत्तक पुत्र आतंक, तनाव और दहशत कभी यहां और कभी वहां सिर उठा लेते हैं। इसकी महामारी का भय इतना बढ़ गया कि अब पूर्ण अपूर्णबंदी झेलती राहों पर सहम कर चलते हुए कोई भी गाना गाकर काम नहीं चलता। वैसे भी इस माहौल में अपनी आवाज़ इतनी कर्कश लगती है कि लगता है कि जैसे थर्रा कर बैठ गई। अब बेसूरी हो रही इस आवाज़ से परेशान होकर आपने कहीं खांस दिया, कहीं छींक दिया तो शुरू से आपसे ईर्ष्या रखने वाला पड़ोसी नागरिक धर्म निभाने पर उतर आएगा।

कोरोना मरीज़ों की टोह में लगे सकराकी करिंदों को बता आएगा कि अपने मोहल्ले में कोरोना का कोई संदिग्ध मरीज़ है। इसे पकड़ कर ले जाइए और हमें इस मर्ज का सामूहिक दंश झेलने से बचाइए। कोरोना निपुणों ने बताया कि आजकल देश  में लक्षणहीन मरीज़ों की भरमार हो रही है। बीमारी से घबरा कर दवाओं के बाज़ार में जाओ तो पता चलता है कि अभी तक हर डरा देने वाली बीमारी की न तो कोई दवा और न ही कोई टीका एकदम से निकल पाता है। भय के दमघोंटू वातावरण में ही दवा बिकेगी। अभी से टीकों के दाम बढ़ गए तो सोने-चांदी के तस्कर क्या करेंगे? अभी से उनकी थैलियों का आकार कम होने लगा है। खैर आपको हम अपने मर्ज का हाल बताते शेयर मंडियों के भाव क्या समझाएं। मास्क, दस्ताने पहन कर हम अस्पताल के परिसर में पहुंचे तो हमें सामाजिक अंतर रखने को कहा गया। यहां हमें मरीज़ों की चीखो पुकार और शल्य क्रिया के लिए ले जाते हुए मरीज़ों की ट्रालियां नज़र आती थीं, आज परिसर सूना सूना है।

 कुछ कोनों में चंद मास्कधारी चहलकदमी करते नज़र आए। पता लगा ये नए कोरोना वेरिएंट के संदिग्ध हैं। एक दूसरे से सामाजिक अंतर रखते हुए कुछ चहलकदमी कर रहे हैं। हम भी अपने चहलकदमी करते रूप की कल्पना कर रहे थे। लेकिन पड़ोसी धांसू था, सीधा हमें डाक्टर के पास ले गया। डाक्टर ने पीछे हट कर हमारा मुआइना किया, फिर उदासी के साथ बोला, फिर एक लक्षणहीन मरीज़ ले आए। हमें लगा मरीज़ का लक्षणहीन होने से बड़ा कोई और अपराध क्या है? हम बेदम होकर खांसते रहते तो शायद वह भयावह वातावरण बन जाता कि जिसके लिए फिल्म कहती थी, ‘डर लगे तो गाना गा।’ अब गाना कैसे गाते? डाक्टर बोले, देखिए महोदय, आपकी नाक से स्वैन ले लिया है। पाजि़टिव, नैगेटिव की खबर जांच से होगी। अभी लक्षणहीन हैं। अपने घर लौट जाइए। एक कमरे में बंद होकर दो सप्ताह रहिए। हरारत महसूस हो तो पैरासिटामोल खाइए। हमारे साफ छूट जाने से लगा पड़ोसी निराश हो गया। वह अभी से सामाजिक अंतर रखते हुए इस मौका-ए-वारदात से गायब होना चाहता है। हम अकेले वापस लौटे। देखा और भी कई लोग वापस लौट रहे थे। अब घरों में दो सप्ताह का कारावास ही इनकी नियति है। ठीक घोषित होने पर अपने शरीर को रोग-प्रतिरोधक क्षमता या एंटी बाडी दान कर सकेंगे। लौटते हुए पता चला कि मरीज़ों में मरने वाले तो सौ में से महज दो होते हैं, लेकिन शेष इसके बावजूद अपना डर भगाने के लिए गाना भी नहीं गा पाते।

सुरेश सेठ

sethsuresh25U@gmail.com


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