स्कूली छुट्टियों का सर्कस

By: Jun 22nd, 2022 12:05 am

हिमाचल का शिक्षा विभाग अगर सर्कस के करतब दिखाना भी शुरू कर दे, तो इसकी प्रासंगिकता बढ़ जाएगी। अपने अनेक फैसलों खास तौर पर वार्षिक छुट्टियों की घोषणा को लेकर यह विभाग सर्कस ही तो कर रहा है। सर्कस शो का अंतिम पहर और भी रोमांचक है जब घोषित शैड्यूल के मुताबिक 21 जून से शुरू हो रहे अवकाश को एक दिन के लिए आगे बढ़ा दिया जाता है। यानी जो बच्चे अपने नाना या दादा के पास निकल गए, उनसे विभाग यह कहता देखा गया कि एक दिन लौट आओ। जाहिर है 21 को योग दिवस रहा, तो छुट्टी की अनिवार्यता रद्द होनी चाहिए थी, लेकिन तब तक शिक्षा विभाग की हेकड़ी परवान चढ़ चुकी थी। हद तो यह कि ग्रीष्मकालीन छुट्टियों का फैसला करते विभाग ने अध्यापकों तक की नहीं सुनी और न ही अभिभावकों की चिंताओं को पढ़ने का प्रयास किया। लगातार खींचतान के बीच गर्मियों और बरसात के महीनों में यह विभाग अपनी लाचारी का सबूत देता हुआ यह साबित कर रहा है कि महकमा सिर्फ शिमला में बैठकर एक मठाधीश के मानिंद निर्देश पारित कर सकता है, सो कर दिया।

 अब छुट्टियां बिन बरसात के मौजे खोलकर बैठ जाएं या भरी बारिश में स्कूल पुनः खुलवा दें, इससे शिमला की फिजां को क्या फर्क पड़ता। इसी तरह गर्मियों में स्कूलों का समय परिवर्तित करने के तर्क सिर्फ सरकारी तनख्वाह के वितरण की तरह ही रहा, मजबूरियां दिखीं तो आनन-फानन में मौसम विभाग बनकर शिक्षा के आला अधिकारी शिमला में सूरज को देखकर ऊना की गर्मी को सफेद करने लगे। अब या तो हम यह मान लें कि शिक्षा विभाग का मौसम ज्ञान, मौसम विभाग से कहीं बेहतर है या यह जान लें कि इधर छुट्टियां घोषित हुईं और उधर मानसून ने भी सिर झुका के कबूल कर लिया।

 जाहिर तौर पर प्रदेश के हर सीजन की एक तय परंपरा है और अगर पिछले दस सालों की गर्मी-सर्दीको पढ़ लिया जाए तो वार्षिक अवकाश का कैलेंडर बन सकता है। बहुत पहले पीडब्ल्यू विभाग भी गफलत में था और इसलिए कभी टायरिंग बर्बाद होती थी, तो कभी बरसात में दरकते पहाड़ मार्ग अवरुद्ध कर देते थे, लेकिन अब इस दिशा में सुधार किया गया है। बरसात के मौसम में चप्पे-चप्पे पर जेसीबी मशीनों की उपलब्धता से यातायात की गारंटी मिलती है। क्या शिक्षा विभाग यह बता सकता है कि बाईस जून से अठाईस जुलाई तक के मानसून ब्रेक के तर्क क्या हैं। क्या 28 जुलाई के बाद का मौसम विभाग के नियंत्रण में रहेगा या बाईस जून से ही इतना बरस जाएगा कि जनजीवन अस्त-व्यस्त हो जाएगा। वर्षों से जुलाई व अगस्त महीनों की तासीर में स्कूली बच्चों को घर भेजा जाता रहा है, तो  अब यह सीमा रेखा बार-बार शिक्षा विभाग के मस्तिष्क में जूएं पैदा क्यों कर रही। अगर पंद्रह जुलाई से 31 अगस्त तक भी छुट्टियां रखी जाएं, तो मौसम की उग्रता का दायरा पकड़ में आ सकता है, लेकिन यहां तो शिमला में बैठे शिक्षा के पुरोहितों को यह भी पता नहीं कि चंबा से सिरमौर तक या निचले इलाकों के लिए बरसात का कहर होता क्या है। बेशक स्कूलों में पढ़ाई के लिए अधिकतम समय देने की गुंजाइश होनी चाहिए, लेकिन विभाग बर्फबारी, गर्मी और बरसात में उलझ कर रह गया है। आश्चर्य तो यह कि तमाम शिक्षक संघ व अभिभावक वर्ग जो सोचते हैं, उससे कहीं अलग विभाग का हाथी अपनी चाल चलना जानता है और यही इसकी सर्कस भी है।


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