कांग्रेस में आत्मशुद्धि

By: Jun 24th, 2022 12:05 am

सिरमौर में कांग्रेस के नक्षत्र जिस खुर्दबीन से देखे गए, वहां पार्टी ने खुद को सहेजा जरूर है। दरअसल पार्टी की बाहरी व आंतरिक कार्ययोजना अगर एक तरह का संदेश देने में सक्षम होगी, तो किसी भी चुनौती में मलाल नहीं होगा। कम से कम सिरमौर के लटके-झटकों में फंसी कांग्रेस ने सामने देखने की कोशिश तो की, लेकिन अंदर के विस्फोट रुके हैं- बारूद निरस्त नहीं हुआ। जिला कार्यकारिणी का भंग होना कम से कम नई कांग्रेस का नया आगाज साबित करता है और फैसले की तहों में निर्णायक होने का जज्बा दिखाई देने लगा है। सवाल यह जरूर उठेगा कि ऐसे फैसले के केंद्र में पार्टी अध्यक्ष सशक्त हुईं या जिस तरह नई परिपाटी में कार्यकारी अध्यक्ष दर्ज हुए, उसके कारण टीम एफर्ट ताकतवर हुआ। जो भी हो, सिरमौर के धधकते मंजर पर हाथ डालकर पार्टी ने सभी के लिए नसीहतें तो जोड़ ही लीं और इनसे केवल अजय बहादुर सिंह या हर्षवर्धन के बीच नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश की नज़ीर में सबक जुड़ सकता है। तस्वीर का दूसरा पहलू उन आशंकाओं या अफवाहों में तसदीक होता रहता है, जहां मीडिया अभिव्यक्ति में कुछ नेता संदिग्ध दिखाई देते हैं।

 कहना न होगा कि कांग्रेस को केवल एक चुनाव नहीं लड़ना, बल्कि हर दिन और हर तैयारी में खुद को साबित भी करना होगा। यह नित नए मुद्दों की लंबी फेहरिस्त में निरंतरता बनाए रखने तथा स्थानीय, जिलावार, प्रादेशिक से राष्ट्रीय मसलों पर स्वतंत्र राय रखने से होगा। पिछले कुछ समय से पार्टी अध्यक्ष ने हिमाचल की विकास गाथा में स्वर्गीय वीरभद्र सिंह के योगदान का जिक्र करके जो बढ़त हासिल की है, उसकी तुलना हर विधानसभा क्षेत्र से जिलावार उल्लेख तक होगी, तो विपक्ष की भूमिका आशावादी होगी। जाहिर तौर पर मुद्दों की बिसात पर एडि़यां रगड़ रही आम आदमी पार्टी, अपने नन्हे कदमों से बड़ी मंजिलें फतह करना चाहती है, लेकिन यहां भी राजनीतिक इतिहास का पक्ष कांग्रेस को अपना मनोबल बढ़ाने में मदद कर सकता है, बशर्ते पार्टी हर कथ्य और तथ्य को रेखांकित करे। बेशक कुछ नेता अब सरकार से सीधे प्रश्न पूछ रहे हैं, लेकिन पार्टी एक साथ कितने पूछेगी, इसका अलग तरह का दबाव रहेगा। पार्टी को फिर से विजन रखना है और इस बार वीरभद्र सिंह की अनुपस्थिति में मिल कर रखना है।

 यह मुकाबला डबल इंजन की मुनादी से है और भाजपा के बढ़ते समर्थकों की आबादी से है। यह मुकाबला कांग्रेस के अपने भीतर से भी इस दृष्टि से है कि पार्टी किस तरह अपने अपशगुन, अभिशाप और अधिनायकवाद मिटा पाती है। अनुशासनात्मक कार्रवाइयों की दरकार के बावजूद ये एकतरफा न हो जाएं या कहीं यह संदेश पैदा न हो जाए कि पार्टी चंद नेताओं की पैतृक संपत्ति बनकर चल रही है। दरअसल वर्तमान सरकार के साथ जो मुकाबिल रहे हैं, उन नेताओं को अहमियत मिलनी चाहिए और जो वरिष्ठता के आधार पर पार्टी में रहे हैं, उनको सम्मान मिलना चाहिए। कांग्रेस को अपने भीतर से गुम होने का खतरा भाजपा के वर्तमान युग से रहा है या कई कंेद्रीय नेताओं ने खुद को अभी तक ऐसे दौर के काबिल नहीं बनाया है। जिस तरह राजनीति की चिडि़यां उड़ाई जा रही हैं या जिस तरह के झटकों में पार्टियों के समीकरण बदल रहे हैं, उसे देखते हुए कांग्रेस को अपने कई पुराने पेड़ों की छांव में खड़ा होना पड़ेगा या कम से कम यह प्रयत्न करना होगा कि कहीं टहनियां ही तोड़कर नुकसान न पहुंचे। सिरमौर में अपने ही पेड़ की शाखाओं पर बैठे लोग, इसे काट रहे थे। सही समय पर इन्हें उतार तो दिया, लेकिन पिछले कुछ समय से यह पार्टी अपने ही कारणों से अपना नुक्सान कर रही है। हिमाचल कांग्रेस को पंजाब-उत्तराखंड से सबक लेते हुए त्वरित फैसलों से आत्मशुद्धि करनी होगी। कम से कम सिरमौर प्रकरण में यह होती हुई दिखाई दी।


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