शिंदे सेना की बग़ावत

By: Jun 23rd, 2022 12:05 am

शिवसेना में शिवसैनिकों ने ही बग़ावत की है। इतने व्यापक स्तर पर यह पहला विद्रोह है। इस राजनीतिक बग़ावत की पूरी संभावनाएं थीं। महाविकास अघाड़ी के शिल्पकार नेता एवं एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को आगाह किया था कि मंत्री और विधायक इस कदर चिंता और गुस्से में हैं कि वे विद्रोह कर सकते हैं, लिहाजा मुख्यमंत्री अपनी पार्टी और गठबंधन के नेताओं से सहज मुलाकातें करना शुरू करें, लेकिन न जाने क्यों ठाकरे ने इस चेतावनी पर कोई ध्यान नहीं दिया। दरअसल यह विद्रोह होना ही था, क्योंकि शिवसेना के ये निर्वाचित नेता, जनादेश के बाद से ही, भाजपा के साथ सरकार बनाने के पक्षधर थे। ये नेता कांग्रेस के धुर विरोधी माने जाते रहे हैं, लिहाजा उद्धव ठाकरे ने सत्ता की खातिर कांग्रेस और एनसीपी के साथ जो गठबंधन किया था, उसके वे कट्टर विरोधी थे, लेकिन पार्टी अनुशासन के मद्देनजर अढाई साल तक घुटते रहे, खामोश रहे। भाजपा गठबंधन के समय भी ठाकरे की दलील थी कि दोनों दलों का मुख्यमंत्री अढाई साल तक शासन करे। हालांकि भाजपा को 106 और शिवसेना को 55 सीटें मिली थीं। बहुत बड़ा फासला था। उद्धव ने गठबंधन और जनादेश की पीठ में खंजर घोंपने का काम किया और मुख्यमंत्री बन बैठे। अब शिवसेना के सबसे कद्दावर नेता और 35-37 बागियों का नेतृत्व करने वाले एकनाथ शिंदे ने फोन पर मुख्यमंत्री ठाकरे से बात करते हुए साफ दलील दी है चूंकि आप अढाई साल तक मुख्यमंत्री रह चुके हैं, लिहाजा अब भाजपा के साथ समझौता कर सरकार बनाई जाए। इसके अलावा हमारी कोई और शर्त नहीं है। ठाकरे इस दलील को नकार चुके हैं। बग़ावत कायम है। विद्रोही नेताओं को सूरत से असम में गुवाहाटी के ‘रेडीसन ब्लू’ होटल में शिफ्ट कर दिया गया है। असम में भी भाजपा की सरकार है, जाहिर है कि भाजपा मदद कर रही है। हमें तो उसी की रणनीति लगती है। उद्धव सरकार गिर जाएगी या गिरते-गिरते बच जाएगी अथवा विधानसभा भंग करने की सिफारिश की जाएगी, ये तमाम भविष्य के सवाल हैं, लेकिन शिवसेना के सामने, स्थापना के 56 साल बाद, अस्तित्व का इतना गंभीर संकट उभर आया है। विद्रोह और बग़ावत का बीज वपन हो चुका है। यदि सरकार किसी भी तरह बच जाती है, तो शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे की हिंदुत्व वाली विरासत और भाजपा के साथ नैसर्गिक गठबंधन और समर्पित शिवसैनिकों सरीखे सवाल और दावे यथावत बने रहेंगे।

वैसे भी हम ठाकरे सरकार को ‘असंवैधानिक’ और ‘जुगाड़’ वाली मानते हैं, क्योंकि न तो महाविकास अघाड़ी को साझा जनादेश मिला था और न ही विधायकों के बहुमत ने ठाकरे को मुख्यमंत्री चुना था। घोषित चुनावी जनादेश भाजपा-शिवसेना गठबंधन को हासिल हुआ था। संविधान में ऐसे प्रावधान न जाने क्यों हैं कि कोई भी दल खुले बाज़ार में गठबंधन की सौदागरी कर ले और सरकार बना ले। जिस दल को सबसे ज्यादा जनादेश मिला है, उसे सरकार बनाने का कोई अवसर भी न मिले, यह कैसा लोकतंत्र है? ठाकरे ने तो विधायक का चुनाव तक नहीं जीता। वह पिछले दरवाजे से विधान परिषद में पहुंचे थे। संविधान में 100 से अधिक संशोधन किए जा चुके हैं, तो इस संदर्भ में भी संशोधन जरूरी लगता है। बहरहाल यह शिकायत तो शरद पवार सरीखे नेता की भी रही है कि मुख्यमंत्री ठाकरे शिवसेना और गठबंधन के विधायकों तक के लिए भी उपलब्ध नहीं हैं। शिंदे को 35-37 सेना विधायकों और 7 निर्दलीय सदस्यों का समर्थन हासिल है। उन्होंने ग्रुप फोटो का वीडियो भी जारी किया है। विधायकों की टूट जारी है, तो शीर्ष स्तर पर बैठकें भी की गई हैं। संजय राउत ने ट्वीट लिखकर सार्वजनिक किया है कि विधानसभा भंग किए जाने की ओर है। कैबिनेट के फैसले से पहले उन्हें यह जानकारी कैसे और क्यों है? यह राज्यपाल का विशेषाधिकार है कि वह इस सिफारिश को स्वीकार करें अथवा न करें। बागी खेमा भी राज्यपाल को ज्ञापन भेज सकता है कि वह असली शिवसेना हैं, क्योंकि विधायकों का बहुमत उनके पक्ष में है। भाजपा की दलील क्या होगी, यह भी देखना महत्त्वपूर्ण होगा। कुल मिलाकर ठाकरे यह राजनीतिक बाजी हार चुके हैं।


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