कहीं कमजोर न हो जाए शिव सेना…
लोकतंत्र में यह कोई हैरत की बात नहीं कि कोई किसी भी राजनीतिक पार्टी का छोटा-बड़ा राजनेता पार्टी बदलता है, जब किसी राजनेता को अपनी मौजूदा पार्टी की हाईकमान की नीतियां गलत लगे तो वो पार्टी बदलने में पूर्ण रूप से स्वतंत्र होता है। लेकिन जब कोई वर्षों तक पार्टी में रहा हो और जो पार्टी का खास चेहरा हो, वो पार्टी को छोड़ दे तो वो उस पार्टी के लिए खतरे की घंटी मानी जा सकती है। महाराष्ट्र में राजनीति में जो भूचाल आया या लाया गया, वो लोकतंत्र को कमजोर करने वाला तो है ही, साथ ही यह राजनीति में बढ़ते स्वार्थ को भी दर्शाता है। शिवसेना का भविष्य भी पंजाब के अकाली दल जैसा न हो। जब कोई अपना गलत रास्ते पर चले तो उसे समझाने की कोशिश करनी चाहिए, न कि उससे नाता ही तोड़कर उसका साथ छोड़ देना चाहिए।
-राजेश कुमार चौहान, सुजानपुर टीहरा
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