धर्म के सही मायने

By: Jun 11th, 2022 12:20 am

बाबा हरदेव

गतांक से आगे…

वे किसी की निंदा करने के लिए ऐसे वचन नहीं कह रहे, बल्कि इनसान को समझाने का प्रयास कर रहे हैं कि इनसान तूने बहुत इल्म तो पढ़ लिया, लेकिन तूने अपने आप को नहीं पढ़ा। इल्म के अनुसार कर्म न कमाया। कभी तूने अपने में देखा ही नहीं कि तेरे मन की क्या अवस्था है? पढ़ा तो है कि कोई जाति-पाति नहीं है, हरि को भजै सौ हरि का होई। लेकिन कह रहा है कि मै क्या जाति-पाति से निकल सकता हूं?

मैंने तो यह मान्यता माननी ही है। भगवान राम अगर शबरी को अपना रहे हैं, तो वह लीला तो मैं लिख भी लूंगा, दिखा भी दूंगा, चर्चा भी कर दूंगा लेकिन भला किसी को अछूत मानने से कैसे दूर रह सकता हूं? यही विडंबना है। अपने आप से ही धोखा किए जा रहा हूं। महापुरुषों, संतजनों, भक्तजनों को इसीलिए यह सब कहने की आवश्यकता पड़ी। बुल्लेशाह जी भी गली-गली इसीलिए ये आवाजें देते रहे कि तू एक-दूसरे को दूर करने वाली दीवारों को गिरा दे। उन सभी का एक ही कथन है कि राम और रहीम एक ही हैं। इन महात्माओं ने जो संदेश शास्त्रों में दिए हैं, हमने उनको हमेशा कानों से सुना, मन से नहीं सुना। हमारी जो जीवन की यात्रा है, इसे किस प्रकार तय कर रहे हैं और क्या देन दे रहे हैं,वह आज सबके सामने है। यहां यही याद दिलाने की कोशिश की जा रही है कि हमने महात्माओं के वचन पढ़ने भी हैं, श्रद्धा से पढ़ाने भी हैं, सुनने भी हैं और सुनाने भी हैं, लेकिन पूर्णता तभी होगी जब जो काम करने के लिए उन्होंने कहा है, वो काम हम करेंगे।

 असलियत अगर हमारे हिस्से में न आई तो हम कंगाल ही रहेंगे और कंगाल ही चले जाएंगे। महात्माओं के मन में परोपकार की भावना रहती है और वे यही चाहते हैं कि सभी इनसान इस दौलत से मालामाल हो जाएं। इस लोक की यात्रा को भी सुखद बना लें और परलोक भी सुहेला कर लें। महात्मा चाहे कहीं भी पैदा हुए हों, सबने इस एक प्रभु-परमात्मा से नाता जोड़ने की ही बात कही है कि हे इनसान तू इसके साथ जुड़ जा। इनसान तू जिससे बिछड़ा हुआ है इसके साथ जुड़ जा। अज्ञानता के कारण ही इनसान परमात्मा से दूर है। इनसान इसीलिए ये भेद कर रहा है। नामों के बंधन में उलझकर रह गया है। यही अज्ञानता है।

यही अज्ञानता का अंधकार है। वियोग और दूरी है जिसके कारण यह राम को जुदा और अल्लाह को जुदा मान रहा है। इस एक के साथ जुड़ जाएगा तो तेरी सारी भ्रातियां दूर हो जाएंगी और तू जान जाएगा कि वाकई परम सत्ता एक है। एक परमपिता का बोध करने की बात ही कही जा रही है। परमात्मा को सात आसमानों के ऊपर नहीं बताया जा रहा, निकट बताया जा रहा है। निकट जरूर है लेकिन सूझा नहीं रहा है। इसीलिए ऐसा है जैसे मोतियाबिंद  किसी की आंख के सामने आ जाए तो करीब वाली वस्तु भी कोसों दूर लगने लगती है। महापुरुषों, गुरु, पीर-पैगंबरों ने यही इनसान को संदेश दिया कि प्रभु-परमात्मा, अकालपुरुष के साथ अपना नाता जोड़ ले ताकि ये तेरी सारी भ्रांतियां जाती रहें।


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