जिला ऊना के दिवंगत साहित्यकार

By: Aug 7th, 2022 12:06 am

वीरेंद्र शर्मा ‘वीर’

मो.-7973307129

साहित्य की निगाह और पनाह में परिवेश की व्याख्या सदा हुई, फिर भी लेखन की उर्वरता को किसी भूखंड तक सीमित नहीं किया जा सकता। पर्वतीय राज्य हिमाचल की लेखन परंपराओं ने ऐसे संदर्भ पुष्ट किए हैं, जहां चंद्रधर शर्मा गुलेरी, यशपाल, निर्मल वर्मा या रस्किन बांड सरीखे साहित्यकारों ने साहित्य के कैनवास को बड़ा किया है, तो राहुल सांकृत्यायन ने सांस्कृतिक लेखन की पगडंडियों पर चलते हुए प्रदेश को राष्ट्र की विशालता से जोड़ दिया। हिमाचल में रचित या हिमाचल के लिए रचित साहित्य की खुशबू, तड़प और ऊर्जा को छूने की एक कोशिश वर्तमान शृंाखला में कर रहे हैं। उम्मीद है पूर्व की तरह यह सीरीज भी छात्रों-शोधार्थियों के लिए लाभकारी होगी…

-(पिछले अंक का शेष भाग)

डॉक्टर खुशीराम शर्मा

डॉक्टर खुशीराम शर्मा का जन्म तत्कालीन जिला कांगड़ा तथा वर्तमान में जिला ऊना के अम्ब में मां लक्ष्मी देवी की कोख से पंडिताई कर अपने घर का गुजारा चला रहे हरि दयाल शर्मा जी के घर 19 दिसंबर 1929 को हुआ। घर की माली हालत ठीक नहीं थी। इसलिए पिता चाहते थे कि बेटा खुशीराम उनके साथ खेतीबाड़ी में तथा पंडिताई में हाथ बंटाए, किंतु खुशीराम पढ़ लिखकर कुछ करना चाहते थे। इसलिए वह अपने पिता से नाराज होकर अपनी बड़ी बहन के पास सलोह भदसाली चले गए। पहले संस्कृत में आठवीं, फिर ज्ञानी की। उसके उपरांत प्रभाकर अच्छे नंबरों से पास की तथा उच्च शिक्षा हेतु महाराजा कपूरथला द्वारा गरीब बच्चों के लिए मुफ्त में शिक्षा हेतु चलाए गए कॉलेज में दाखिला ले लिया। श्रेणी में शास्त्री की परीक्षा पास की। इसके बाद सन् 1948 में नौकरी की तलाश में अमृतसर चले गए। यहां नौकरी के साथ-साथ उन्होंने ट्रिपल एमए किया। इसके बाद पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। वे जीवन भर कई संस्थाओं से जुड़े। हिमोत्कर्ष संस्था के संस्थापक सदस्यों में से एक रहे। यहीं पर खुशीराम जी को लिखने का शौक भी पड़ा। शुरू-शुरू में इन्होंने पंजाबी में कविताएं लिखी और बाद में संस्कृत से होते हुए हिंदी तथा हिमाचली पहाड़ी भाषा में साहित्य रचना की।

अनुवाद, शोध, कविता, आलेख, निबंध, कहानियां, उपन्यास आदि बहुत सी विधाओं में खूब साहित्य रचा। कांगड़े दी संस्कृति कनै लोक जीवन, कांगड़े दियां लोककथां (हिमाचली भाषा), सुरभारती कौतुकम् (संस्कृत), स्वामी पिंडी दास माहात्म्य (हिंदी), संत शिरोमणि श्री नामदेव चरितम् (संस्कृत) तथा उसका हिंदी अनुवाद, बिखरे मोती (संस्कृत, हिंदी तथा हिमाचली पहाड़ी भाषाओं में) काव्य संग्रह आदि उनकी पुस्तकें प्रकाशित हुईं। डॉक्टर खुशीराम शर्मा ने शेक्सपियर के उपन्यास ओथैलो का अनुवाद भी किया। सन 1975 में इंदिरा गांधी ने जब देश में आपातकाल लगाया तो पंडित जवाहरलाल नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी द्वारा की गई की गलतियों को लेकर नेहरू वंश दर्शन (संस्कृत महाकाव्य) लिखी, हालांकि विवाद के चलते यह पुस्तक उन्हें वापस लेनी पड़ गई। इसके अतिरिक्त नीति दियां कथां उपन्यास आदि पुस्तकें अप्रकाशित रह गई। उनके द्वारा रचित साहित्य के लिए हिमाचल अकादमी ने उन्हें पुरस्कृत भी किया। 11 अप्रैल 2015 को डॉक्टर खुशीराम शर्मा का स्वर्गवास हो गया।

डॉक्टर मनोहर लाल

डॉक्टर मनोहर लाल का जन्म जिला ऊना के गांव बड़ेट डाकघर धर्मशाला महंता में श्री भगतराम जी के घर 20 सितंबर 1948 को हुआ। शुरुआती पढ़ाई गांव में करने के बाद उच्च शिक्षा हेतु उन्हें प्रदेश से बाहर जाना पड़ा। तत्पश्चात दिल्ली के श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स में हिंदी विभाग में प्रवक्ता के रूप में कार्य किया। डॉक्टर मनोहर लाल शर्मा हिंदी के प्रतिष्ठित विद्वान हुए हैं। लगातार लेखन कार्य में रत रहने वाले डॉक्टर मनोहर लाल की पुस्तकों की अगर बात की जाए तो घनानंद कवित (प्रथम शतक), माटी मेरे गांव की, भेड़ का मुंडन संस्कार, मेरी मकान मालकिनें (हास्य व्यंग्य), अमलतास की छांव में (ललित निबंध), देश सेवा की उम्र (हास्य व्यंग्य) तथा हिमाचल के ब्रज कवि आदि पुस्तकों के मूल लेखक हैं। इसके अतिरिक्त संपादन लेखन में अमृतवाणी, गुलेरी साहित्यालोक, गुलेरी रचना लोक, गुलेरी रचनावली बृहद संस्करण, पुरानी हिंदी और शेष रचनाएं, दोहा सूक्ति सरोवर, चंद्रकांता प्रसिद्ध हैं। अगर सहयोगी संपादन की बात की जाए तो अमृतवाणी, मेघमाला तथा बाल साहित्य में शेख सादी की कहानियां, स्वामी दयानंद की कहानियां, महात्मा गांधी की कहानियां आदि पुस्तकों के संपादक रहे हैं।

हिमाचल पाठमाला, हिम भारती, भारत भारती, हिंदी-3 आदि स्कूलों के पाठ्य पुस्तकों के रचयिता, प्रौढ़ साहित्य की अगर बात की जाए तो ‘सेवा के सौ काम’ तथा ‘जीने का सही ढंग’ (प्रेरक बोध कथाएं), शोध एवं आलोचना के क्षेत्र में चंद्रशेखर बाजपाई का काव्य तथा घनानंद के काव्य में अप्रस्तुत योजना, हिंदी की लगभग समस्त पत्र-पत्रिकाओं में लगातार लेख, निबंध, कहानियां, कविताएं, पुस्तक समीक्षाएं आदि प्रकाशित होती रहीं। हिमाचल अकादमी तथा भाषा संस्कृति विभाग हिमाचल प्रदेश द्वारा आयोजित समारोह एवं लेखक गोष्ठियों में लगातार भाग लेते रहे। हिमाचल अकादमी के वर्ष 1977 में सदस्य भी बने। गुलेरी साहित्य के विशेषज्ञ डॉक्टर मनोहर लाल को गुलेरी साहित्यालोक के लिए वर्ष 1986 में हिमाचल राज्य सरकार द्वारा चंद्रधर शर्मा गुलेरी सम्मान से सम्मानित किया गया। 10 जनवरी 1997 को उन्होंने यह नश्वर शरीर त्याग दिया।

राणा शमशेर सिंह

ऊना जिला में लंबे समय तक साहित्य की मशाल उठाए रखने वाले राणा शमशेर सिंह का जन्म ऊना जिला मुख्यालय से 8 किलोमीटर दूर ऊना-नंगल सडक़ मार्ग पर गांव बडहाला निवासी श्री मंदिर सिंह के घर श्रीमती मुखत्यार देवी की कोख से 7 नवंबर 1946 को हुआ और प्रारंभिक शिक्षा ननिहाल में तत्कालीन राजकीय मिडिल स्कूल कलोल, जिला बिलासपुर में हुई और मैट्रिक राजकीय उच्च विद्यालय झंडूत्ता, बिलासपुर से पास की। तत्पश्चात बीएससी डीएवी कॉलेज जालंधर से, बीएड गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ एजुकेशन धर्मशाला से पास की। प्रयाग संगीत समिति इलाहाबाद से शास्त्रीय संगीत में डिप्लोमा (कंठ संगीत) में प्राप्त किया। पत्रकारिता महाविद्यालय नई दिल्ली से पत्रकारिता का कोर्स पूरा किया और भारतीय आर्य विद्या परिषद अजमेर से ‘विद्यावाचस्पति’ की उपाधि प्राप्त की। अगर साहित्य की बात की जाए तो राणा शमशेर सिंह ने पहली कविता सातवीं कक्षा में लिखी थी। तदोपरांत कई लघु नाटक लिखे और उनका सफल मंचन भी किया।

-(शेष भाग निचले कॉलम में)

हिमाचल रचित साहित्य -26

विमर्श के बिंदु

अतिथि संपादक

डा. सुशील कुमार फुल्ल

मो.-9418080088

1. साहित्य सृजन की पृष्ठभूमि में हिमाचल
2. ब्रिटिश काल में शिमला ने पैदा किया साहित्य
3. रस्किन बांड के संदर्भों में कसौली ने लिखा
4. लेखक गृहों में रचा गया साहित्य
5. हिमाचल की यादों में रचे-बसे लेखक-साहित्यकार
6. हिमाचल पहुंचे लेखक यात्री
7. हिमाचल में रचित अंग्रेजी साहित्य
8. हिमाचल से जुड़े नामी साहित्यकार
9. यशपाल के साहित्य में हिमाचल के रिश्ते
10. हिमाचल में रचित पंजाबी साहित्य
11. चंद्रधर शर्मा गुलेरी की विरासत में

ऊना के दिवंगत साहित्यकारों को नमन

-(ऊपरी कॉलम का शेष भाग)

पेट्रोमैक्स की रोशनी में रात को रामलीला तथा अन्य नाटकों का मंचन स्कूल स्टेज से ही किया जाता था तथा उनसे होने वाली सारी आय स्कूल के विकास कार्यों में दान कर दी जाती। हाई स्कूल में हस्तलिखित द्विभाषी (हिंदी, अंग्रेजी) स्कूल मैगजीन निकाली जिसका संपादन व लेखन स्वयं किया। अनेक पत्र-पत्रिकाओं जैसे हिमप्रस्थ, हिमशिक्षा, हिमाचल प्रदेश स्कूल बोर्ड पत्रिका, हिमोत्कर्ष नीति आदि में लेख, कहानियां और कविताएं प्रकाशित हुईं। साक्षरता पर लिखे गए नाटक ‘यमदूतों की हड़ताल’ का ऊना जिला की 112 पंचायतों में सफल मंचन हुआ। राणा शमशेर सिंह ने प्रदेश में साक्षरता अभियान के अंतर्गत जिला समन्वयक व जिला सचिव के रूप में सेवाएं दी और इसी दौरान साक्षरता गीतों की एक पुस्तक का संपादन व लेखन किया तथा एक पत्रिका ‘अक्षर साधना’ का 2 वर्ष तक संपादन किया। रोटरी डिस्टिक 3070 के एक प्रकल्प रोटरी विलेज कोर की एक द्विभाषी (हिंदी-अंग्रेजी) पत्रिका ‘ग्राम्य सेवा’ का 2 वर्ष तक संपादन व लेखन कार्य किया।

हिमोत्कर्ष साहित्य संस्कृति एवं जन कल्याण परिषद की पत्रिका ‘हिमोत्कर्ष’ का 2 वर्ष तक संपादन किया तथा प्रवेशांक 1975 से लेकर 2001 तक लेखन कार्य किया। इनकी कविताओं का प्रसारण आकाशवाणी के धर्मशाला केंद्र से होता रहा। प्रथम काव्य संग्रह ‘किस-किस से अभिमन्यु लड़े’ 2007 में प्रकाशित हुआ। एक मित्र संत की जीवनी पर आधारित ‘पूज्यपाद स्वामी सोम गिरी जी महाराज’ सन 2008 में प्रकाशित हुई। ऊना की लोक संस्कृति पर कार्य करने की योजना के अनुसार प्रथम पुस्तक ‘ऊना लोक दर्पण’ 2012 में प्रकाशित हुई और शेष 2 भाग आगे अभी लिखने थे जो कि अधूरे रह गए। लगभग 30 वर्षों की तपस्या के फलस्वरूप एक पुस्तक सन 2019 में ‘नेताजी सुभाष चंद्र बोस : काव्यांजलि’ प्रकाशित हुई, जिसमें उनके द्वारा नेता जी का संपूर्ण जीवन काव्य रूप में वर्णित करने का प्रयास किया। एक अन्य काव्य संग्रह ‘कंटक-पथ’ अप्रकाशित है। वर्तमान में हिमाचल कला और संस्कृति भाषा अकादमी के सदस्य भी थे। इनका स्वर्गवास 7 अप्रैल 2022 को हुआ।

विनोद लखनपाल

हिमाचल प्रदेश के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के संयुक्त निदेशक पद से सेवानिवृत्त विनोद लखनपाल का जन्म 20 अगस्त 1938 को उनके ननिहाल में हुआ। उनके पिता बलदेव मित्र बिजली भी विख्यात क्रांतिकारी एवं लेखक रहे हैं। देश की कई प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में इनकी कहानियां, कविताएं एवं लेख लगातार प्रकाशित होते रहे। अपने जीवन के शुरुआती वर्षों में विनोद लखनपाल भले ही नास्तिक नहीं थे, किंतु पूरी तरह आस्तिक भी नहीं। बावजूद इसके जब एक बार लगन लगी तो आचार्य डॉक्टर चंद्र भूषण मिश्र एक श्लोक पर व्याख्या हेतु गहन शोध किया और एक के बाद एक 4 पुस्तकें लिख डालीं। शीर्षक थे ‘प्रश्नोत्तर मणिरत्न माला’, ‘मानस प्रसाद केवट अनुराग’, ‘विभीषण शरणागति’ तथा ‘राम स्नेही भरत’। इसके अतिरिक्त ‘ऊना जनपद : एक परिचय’ (जिला प्रशासन के लिए संपूर्ण जानकारी लिए पुस्तक) लिखीं।

इसके बाद वर्षों के शोध के उपरांत भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के लोमहर्षक इतिहास से संबंधित साहित्य भेजते हुए एक माला में पिरो कर जो महत्वपूर्ण दस्तावेज एक पुस्तक के रूप में उन्होंने समाज के हाथों में सौंपा उसका नाम था ‘भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष 1757 से 1947 प्रमुख घटनाएं एवं विद्रोह’। यह अवश्य ही सभी के लिए ज्ञानवर्धक एवं पठनीय पुस्तक है। 12 जनवरी 2014 को देहलां स्थित आश्रय नामक सामाजिक संस्था में विवेकानंद जयंती के उपलक्ष्य पर आयोजित विचार गोष्ठी में अपना अध्यक्षीय भाषण देते समय हृदय गति रुकने से आकस्मिक निधन हो गया। इसके अतिरिक्त ऊना जिला में जिन लेखकों ने साहित्य के क्षेत्र में अपनी थोड़ी बहुत भी उपस्थिति दर्ज करवाई है, उनके नाम हैं : ऊना के पास के गांव के मदन जेजवीं जिनकी पंजाबी, पहाड़ी और हिंदी में कविताएं काफी सराही जाती रहीं और ऊना में लंबे समय तक मंच की शान रहे। हालांकि इनके द्वारा रचित साहित्य डायरियों में ही है। ऊना से ही एसके सदाना एक ऐसे लेखक हुए जो कि लंबे समय तक हिंदी तथा पंजाबी में वीर रस में कविताएं लिखते रहे। वे जब भी किसी मंच पर कविता पाठ करते तो महफिल में जोश भर जाता। इन्हीं की तरह ऊना के ही अन्य वीर रस के एक कवि गुरकीरत सिंह भी हुए जो स्थानीय कवि सम्मेलनों में मंचों की शान थे।

किंतु इनकी भी रचनाएं अधिक प्रकाशित न हो सकीं। इसके अतिरिक्त संस्कृत कॉलेज डोभी में बतौर प्राचार्य अपनी सेवाएं देने वाले डा. भक्त वत्सल यूं तो संस्कृत के प्रखर वक्ता के रूप में जाने जाते हैं, परंतु संस्कृत व हिंदी में कविता, आलेख भी इनके विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे और सराहे गए। जिला ऊना के साहित्यकारों में डॉक्टर बंसल का नाम भी बड़ी इज्जत के साथ लिया जाता है। जिला ऊना के करियाला गांव की गीता सरोच ने हिंदी तथा पंजाबी कविता में अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाया। वे पुस्तक भी प्रकाशित करवाना चाहती थी, किंतु मात्र तीन-चार महीने की गंभीर बीमारी के बाद उनका देहांत हो गया और उनकी यह योजना अधूरी रह गई। जिला ऊना के त्यूड़ी गांव निवासी डा. देशराज डोगरा हिंदी तथा संस्कृत में कविता लेखन के लिए जाने जाते हैं। उनकी रचनाएं कई पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हिमोत्कर्ष के संस्थापक कुंवर हरि सिंह के चालीस वर्षों तक विभिन्न विषयों पर लिखे स्तंभ आलेख भी काफी सराहे गए। इसके अतिरिक्त इनकी तीन या चार कहानियां तथा फुटकर रचनाएं भी मिलती हैं, हालांकि कुंवर हरि सिंह जी की रचनाएं पुस्तक आकार नहीं ले सकीं। इनकी रचनाएं समाज, धर्म तथा स्थानीय स्तर की अन्य पत्र-पत्रिकाओं तथा दैनिक समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होती रही हैं। पेशे से आंखों के डॉक्टर ऊना निवासी एचके गोयल का भी साहित्यिक मंचों में काफी दखल रहा है। स्थानीय स्तर पर इनकी रचनाएं भी प्रकाशित होती रही, किंतु वे भी कोई पुस्तक नहीं प्रकाशित करवा सके।

-वीरेंद्र शर्मा ‘वीर’

पुस्तक समीक्षा

कहानियों की खुशबू फैलाती किताब

हिमाचल के उभरते कहानीकारों की कहानियों से सुसज्जित संग्रह ‘खुशबू खिलते फूलों की’ प्रकाशित हुआ है। डा. विजय कुमार पुरी इसके संपादक तथा डा. जितेंद्र कुमार सह संपादक हैं। इस संग्रह में 18 कहानीकारों की कहानियों में सामाजिक सरोकार, पारिवारिक जीवन के उतार-चढ़ाव, पर्यावरण संरक्षण एवं चिंता, बच्चों का विदेशों में नौकरी का मोह और मां-बाप की व्यथा, राजनीति और व्यवस्था का दंश, नशाखोरी से टूटता समाज, कोरोना काल में भविष्य के लिए चिंतित चेतना आदि कई पहलू दृष्टिगोचर हुए हैं। ‘खुशबू खिलते फूलों की’ कहानी संग्रह में प्रतिष्ठित, नवांकुर और प्रथम बार कहानी लिखने वाले लेखकों ने सचमुच साहित्यिक वातावरण को अपनी लेखनी की महक से सराबोर किया है। खिलते फूलों की खुशबू युग-युगांतर तक पाठकों को सुवासित करती रहेगी। 268 पृष्ठों की यह किताब निखिल पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स, आगरा से प्रकाशित है जिसकी कीमत 500 रुपए है। संपादकीय में डा. विजय कुमार पुरी ने किताब के रचना के उद्देश्य की ओर इशारा किया है। कहानीकारों के विस्तृत परिचय भी प्रकाशित किए गए हैं जिससे उनके बारे में विस्तार से जानने का मौका उपलब्ध होता है।

डा. राजीव पत्थरिया की मरब्बा व खबर की खबर, दिलीप वसिष्ठ की कत्र्तव्य और भावना तथा समान असमान, विनोद ध्रब्याल राही की अज्ञातवास तथा जन्नत की ओर, एस. अतुल अंशुमाली की हम शाखें तथा टिफिन, काव्य वर्षा की जरूरत व अंकल, डा. नीरज पखरोलवी की सजा व गुलामी, बचन सिंह घटवाल की ये कैसी बेबसी तथा मां, मुझे मत मारो, सोनिया दत्त पखरोलवी की दु:ख की चादर व सपना, डा. जयकरण की आभास व मुआवजा तथा प्रताप पराशर की तबादला व जमना कहानियां इस संग्रह की खुशबू बनी हैं। इसी तरह डा. अनिल मासूम की हार की जीत तथा एक और वापसी, राकेश पत्थरिया की देवता का सेवादार व अजनबी चेहरे, छविंदर कुमार की दर्जी रामलाल व पछतावा, कुमारी आशना वर्मा की संघर्ष व पराया धन, डा. नीतू कुमारी की लडक़ी व लॉकडाउन, कश्मीर सिंह की लौट आओ न तथा तनाव का खिंचाव, डा. जितेंद्र कुमार की लॉकडाउन में विवाह व नशा तथा डा. विजय कुमार पुरी की अलविदा व स्मार्टफोन कहानियां भी पाठकों का मनोरंजन करती हैं। हर कहानी किसी न किसी उद्देश्य को लेकर लिखी गई है। कहानियां आकार में ज्यादा बड़ी नहीं हैं। समाज में इधर-उधर जो घट रहा है, वही कहानियों का विषय बन गया है। ज्यादातर कहानियां सामाजिक विषयों को लेकर रची गई हैं। राकेश पत्थरिया की कहानी ‘देवता का सेवादार’ में पात्र ‘देवता’ और ‘चौकीदार’ के माध्यम से आस्था और मानवता का द्वन्द्वात्मक चित्रण प्रस्तुत हुआ है। एस. अतुल अंशमाली की कहानी ‘हम शाखें’ अपने पात्रों के माध्यम से आधुनिक पारिवारिक संस्कारों को तो कुरेदती ही है, परंतु साथ ही व्यवस्था से खिलवाड़ करते राजनेताओं पर भी कटाक्ष करती है।

विनोद ध्रब्याल ‘राही’ की रोचक कहानी ‘अज्ञातवास’ में 21 वर्ष बाद अपने गांव लौटते नायक ‘प्रकाश’ की मनोस्थिति का विश्लेषणात्मक चित्रण प्रस्तुत हुआ है। बचन सिंह घटवाल की कहानी ‘ये कैसी बेबसी’, अंशुमाली की ‘टिफिन’, छविंदर कुमार की ‘दर्जी रामलाल’, प्रताप पराशर की ‘जमना’, राकेश पत्थरिया की ‘अजनबी चेहरे’, विनोद ध्रब्याल की ‘अज्ञातवास’ भावनाप्रधान कहानियों की श्रेणी में आती हैं। डा. जयकरण की कहानी ‘मुआवजा’ सिमटते जंगल एवं घटते वन्य प्राणियों के प्रति पाठक-मन में संवेदनात्मक चिंता का भाव जगाते हुए असंतुलित पर्यावरण के प्रति सचेत करने में कामयाब रही है। कश्मीर सिंह की कहानी ‘लौट आओ न’ हिमाचल के प्राकृतिक किंतु कठिन पहाड़ी जनजीवन एवं रोजमर्रा की जरूरतों से अवगत कराती है। डा. नीतू कुमारी की कहानी ‘लडक़ी’ आदर्शवादिता की स्लेट पर लिखी इबारत का आभास कराती है। डा. नीरज पखरोलवी की संवेदनात्मक कहानी ‘सजा’ में आदर्श अध्यापक के जुझारूपन को बिंबित किया गया है। डा. राजीव पत्थरिया की कहानी ‘मरब्बा’ के कथ्य में बिजली उत्पादन के लिए डैम, फिर डैम में 10 गांवों के ग्रामीणों की जमीन का समा जाना, परिणामत: विस्थापन की दर्दनाक दास्तान है। इस संग्रह में संकलित अन्य कहानियां भी रोचक हैं। आशा है यह किताब पाठकों को पसंद आएगी।

-फीचर डेस्क

किताब के आकार में किस्से-कहानियां

हिमाचल में प्रचलित किस्से और कहानियां इस पीढ़ी के साथ-साथ भावी पीढ़ी तक भी पहुंचें, इस लक्ष्य से प्रेरित होकर लेखक रविंद्र सिंह ठाकुर एक पुस्तक ‘दादी मां की कहानियां और किस्से’ लेकर आए हैं। आज नानी-दादी की कहानियां व किस्से बीते युग की बातें होकर रह गए हैं। ऐसा ही परिवर्तन यदि तेजी से होता रहा तो यह सब इतिहास के पन्नों में समाहित होकर विलुप्त हो जाएगा। ऐसी कहानियों एवं किस्सों की कोई गितनी और सीमा नहीं है। कोई अभी पढ़े या न पढ़े, यह सब पुस्तक के रूप में कहीं तो सुरक्षित रह ही जाएंगे।

यह अनुभव है जो जीने का मार्ग प्रशस्त करते हैं। रविंद्र सिंह ठाकुर द्वारा लिखित यह किताब एक सराहनीय प्रयास है। दुर्गा पेपर कन्वर्टर्ज प्रकाशन, शिमला द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक की कीमत 270 रुपए है। 116 पृष्ठों की इस पुस्तक में 22 कहानियां एवं किस्से प्रकाशित किए गए हैं। साथ ही इसमें 20 पख्याने यानी कहावतें भी दी गई हैं। दुधारू पशुओं की देखभाल के लिए भी एक अध्याय जोड़ा गया है। पशुओं के देसी घरेलू इलाज भी दिए गए हैं। साथ में प्रकाशित चित्र किताब को रोचक बनाते हैं। हर किस्से के साथ हिंदी व अंग्रेजी में प्रेरणादायी विचार भी प्रकाशित किए गए हैं। किस्से व कहानियां पढकऱ न केवल बच्चे मनोरंजन कर सकते हैं, बल्कि परिपक्व लोग भी मनोरंजन के साथ-साथ कोई न कोई सीख ले सकते हैं। किस्से और कहानियां आकार में छोटी हैं तथा पाठक इन्हें निरंतरता के साथ पढ़ता है। किस्सों में लयात्मकता है। यह किताब पाठकों का मनोरंजन करने में सफल होगी, ऐसी आशा है। इससे पहले भी लेखक की कई किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। ‘कुनिहार निवासी स्वतंत्रता सेनानी बाबू कांशी राम’ और ‘मास्टर गौरी शंकर’ जी पर दो पुस्तकें, ‘मैं और मेरी एसएसबी’ तथा ‘अपरिवर्तनीय क्षण’ आदि पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।

-फीचर डेस्क


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App