श्रावण पूर्णिमा : कर्म शुद्धि के लिए उपक्रम का अवसर

By: Aug 6th, 2022 12:29 am

श्रावणी पूर्णिमा का हिंदू धर्म में बड़ा ही महत्त्व है। यह श्रावण मास की पूर्णिमा है जिसमें ब्राह्मण वर्ग अपनी कर्म शुद्धि के लिए उपक्रम करते हैं। ग्रंथों में इस दिन किए गए तप और दान का महत्त्व उल्लेखित है। इस दिन रक्षाबंधन का पवित्र त्योहार मनाया जाता है। इसके साथ ही श्रावणी उपक्रम, श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को आरंभ होता है। श्रावणी पूर्णिमा के दिन यज्ञोपवीत के पूजन तथा उपनयन संस्कार का भी विधान है…

महत्त्व

हिंदू धर्म में सावन माह की पूर्णिमा बहुत ही पवित्र व शुभ दिन माना जाता है। सावन पूर्णिमा की तिथि धार्मिक दृष्टि के साथ ही साथ व्यावहारिक रूप से भी बहुत ही महत्त्व रखती है। इस माह को भगवान शिव की पूजा-उपासना का महीना माना जाता है। सावन में हर दिन भगवान शिव की विशेष पूजा करने का विधान है। इस प्रकार की गई पूजा से भगवान शिव शीघ्र ही प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं। इस माह की पूर्णिमा तिथि इस मास का अंतिम दिन माना जाता है। अत: इस दिन शिव पूजा व जल अभिषेक से पूरे माह की शिव भक्ति का पुण्य प्राप्त होता है। प्राचीन काल में आज के दिन ब्राह्मण अपने यजमानों को रक्षा का धागा अर्थात राखी बांधते थे और साधु-संत एक ही जगह पर चार मास रुक कर अध्ययन-मनन और पठन-पाठन प्रारंभ करते थे। ऋषि-मुनि और साधु-संन्यासी तपोवनों से आकर गांवों व नगरों के समीप रहने लगते थे और एक ही स्थान पर चार मास तक रहकर जनता में धर्म का प्रचार (चातुर्मास) करते थे। इस प्रक्रिया को श्रावणी उपक्रम कहा जाता है। श्रावण पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी पूर्ण कलाओं के साथ होता है, अत: इस दिन पूजा-उपासना करने से चंद्रदोष से मुक्ति मिलती है। श्रावणी पूर्णिमा का दिन दान, पुण्य के लिए महत्त्वपूर्ण है। इसीलिए इस दिन स्नान के बाद गाय आदि को चारा खिलाना, चींटियों, मछलियों आदि को दाना खिलाना चाहिए। इस दिन गोदान का बहुत महत्त्व ग्रंथों में बतलाया गया है। श्रावणी पर्व के दिन जनेऊ पहनने वाला हर धर्मावलंबी मन, वचन और कर्म की पवित्रता का संकल्प लेकर जनेऊ बदलता है। इस दिन ब्राह्मणों को यथाशक्ति दान देना और भोजन कराया जाना चाहिए। इस दिन भगवान विष्णु और लक्ष्मी की पूजा का विधान है।

व्रत व पूजा विधि

श्रावण मास की पूर्णिमा पर वैसे तो विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न पर्वों के अनुसार पूजा विधियां भी भिन्न होती हैं। लेकिन चूंकि इस दिन रक्षासूत्र बांधने या बंधवाने की परंपरा है तो उसके लिए लाल या पीले रेशमी वस्त्र में सरसों, अक्षत रखकर उसे लाल धागे (मौली या कच्चा सूत हो तो बेहतर) में बांधकर पानी से सींचकर तांबे के बर्तन में रखें। भगवान विष्णु, भगवान शिव सहित देवी-देवताओं, कुलदेवताओं की पूजा कर ब्राह्मण से अपने हाथ पर पोटली का रक्षासूत्र बंधवाना चाहिए। तत्पश्चात ब्राह्मण देवता को भोजन करवाकर दान-दक्षिणा देकर उन्हें संतुष्ट करना चाहिए। साथ ही इस दिन वेदों का अध्ययन करने की परंपरा भी है। इस पूर्णिमा को देव, ऋषि, पितर आदि के लिए तर्पण भी करना चाहिए। मान्यता है कि विधि-विधान से यदि पूर्णिमा व्रत का पालन किया जाए तो वर्ष भर वैदिक कर्म न करने की भूल भी माफ हो जाती है। मान्यता यह भी है कि वर्ष भर के व्रतों के समान फल श्रावणी पूर्णिमा के व्रत से मिलता है।


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