अमृत महोत्सव और हिंदी का विकास

By: Sep 12th, 2022 7:28 pm

समाचार पत्र, पत्रिकाएं, आकाशवाणी, दूरदर्शन, कम्प्यूटर, इंटरनेट और सोशल मीडिया पर हिंदी ने अपना वर्चस्व कायम किया है। नई तकनीक के आविष्कारों में टाइप रोमन अंग्रेजी में किया जाता है और प्राप्त हो जाता है देवनागरी में। नई प्रौद्योगिकी में हिंदी में अभिव्यक्ति की सभी सुविधाएं आरकूट, फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम, ब्लॉग, स्पॉट आदि उपलब्ध हैं। हिंदी ई-लर्निंग, अनुवाद ई-लर्निंग, आनलाइन ई-महाशब्दकोश, हिंदी स्कैनर, ई-पत्रिका, ई-पुस्तकालय, हिंदी में बोलकर टाइप करना आदि, आदि हिंदी के नवीनतम ई-टूल्स हैं। यहां तक कि भारत का माइक्रो ब्लॉगिंग और सोशल मीडिया प्लेटफार्म भारतीय भाषाओं में बातचीत का मुख्य मंच बन गया है। नि:संदेह हिंदी आज अंतरराष्ट्रीय गौरव प्राप्त भाषा है। जब भारतवर्ष आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है तो ऐसे में हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाए जाने पर दृढ़ संकल्प होकर विचार करना अनिवार्यता होनी चाहिए…

भारतवर्ष को स्वतंत्रता की सांस लेते हुए 75 वर्ष हो गए हैं। अत: स्वतंत्रता दिवस को अमृत महोत्सव के रूप में मनाने वाला भारत राष्ट्र दिनोंदिन सफलता के, प्रगति के नित नए आयाम हासिल कर रहा है। जिसका राष्ट्र चिह्न है, राष्ट्र ध्वज है, राष्ट्र गान है, राष्ट्रीय प्रतीक है, वहां विडम्बना ही है कि आज भी राष्ट्र भाषा का मुद्दा विवादग्रस्त है। किसी भी राष्ट्र की सभ्यता और संस्कृति के विकास में उसकी भाषा का विशेष योगदान होता है भाषा और संस्कृति का अटूट संबंध होता है क्योंकि भाषा ही संस्कृति की संवाहक होती है। प्रत्येक भाषा का एक इतिहास होता है जो उस देश एवं देशवासियों के सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक इतिहास से जुड़ा होता है। संस्कृत भाषा भारत की सबसे प्राचीन भाषा है जिसे आर्य भाषा या देवभाषा भी कहा जाता है। हिंदी इसी की उत्तराधिकारिणी मानी जाती है। हिंदी भाषा का इतिहास लगभग एक हजार वर्ष पुराना माना गया है। परंतु हिंदी में सर्वव्यापकता, प्रचुर साहित्य रचना, बनाबट की दृष्टि से सरलए वैज्ञानिकता और सब प्रकार के भावों को प्रकट करने की सामथ्र्य आदि गुणों के कारण ही 14 सितम्बर 1949 को इसे राजभाषा का दर्जा दिया गया। साथ ही संविधान में राजभाषा के संबंध में धारा 343 से 351 तक की व्यवस्था की गई।

देश में एकता व अखंडता कायम रहे, इसलिए हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने के लिए बुद्धिजीवी, समाज सुधारक, विचारक गत शताब्दियों से संघर्षरत रहे हैं। जिनमें सक्रिय योगदान देने वालों में पंडित मदनमोहन मालवीय, बालगंगाधर तिलक, लाला लाजपतराय, विपिनचंद्र पाल, राजाराम मोहन राय, महात्मा गांधी, राजेन्द्र प्रसाद, काका कालेलकर, पुरुषोत्तम दास टंडन, सेठ गोबिन्द दास आदि का नाम अविस्मरणीय है। वर्तमान समय में वैश्विक स्तर पर हिंदी को एक प्रकार से मान्यता प्राप्त हो चुकी है। हिन्दी विश्व के एक सौ से अधिक विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जाती है। विश्व में हिंदी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में तीसरे स्थान पर है। इतना ही नहीं, आज हिंदी सूचना प्रौद्योगिकी की भाषा बन गई है। समाचार पत्र, पत्रिकाएं, आकाशवाणी, दूरदर्शन, कम्प्यूटर, इन्टरनेट और सोशल मीडिया पर हिंदी ने अपना वर्चस्व कायम किया है। नई तकनीक के आविष्कारों में टाइप रोमन अंग्रेजी में किया जाता है और प्राप्त हो जाता है देवनागरी में। नई प्रौद्योगिकी में हिंदी में अभिव्यक्ति की सभी सुविधाएं आरकूट, फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम, ब्लाग, स्पाट आदि उपलब्ध हैं। हिंदी इ लर्निंग, अनुवाद इ लर्निंग, आनलाइन ई महाशब्दकोश, हिंदी स्कैनर, ई पत्रिका पुस्तकालय, हिंदी में बोलकर टाइप करना आदि आदि हिंदी के नवीनतम ई टूल्स हैं। यहां तक कि भारत का माइक्रो ब्लॉगिंग और सोशल मीडिया प्लेटफार्म भारतीय भाषाओं में बातचीत का मुख्य मंच बन गया है।

नि:संदेह हिंदी आज अंतरराष्ट्रीय गौरव प्राप्त भाषा है। महात्मा गांधी जी के अनुसार ‘हिंदी का प्रश्न मेरे लिए देश की आजादी का प्रश्न है। हिंदी भाषा केवल एक राजभाषा नहीं है, यह संपूर्ण देश की संस्कृति के रूप में पल्लवित और पुष्पित भाषा है।’ जब भारतवर्ष आजादी की ऊर्जा का, नए संकल्पों का, आत्मनिर्भरता का अमृत महोत्सव मना रहा है तो ऐसे में भारतीय संस्कृति की संप्रभुता, एकता एवं अखंडता को सुरक्षित रखने और लोकतांत्रिक व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाए जाने पर भी दृढ़ संकल्प लेकर विचार करना अनिवार्यता होनी चाहिए, विकल्प नहीं। यह दुख की बात है कि भारतीय लोग ही हिंदी बोलने में शर्म महसूस करते हैं। दक्षिण भारत तथा कई अन्य जगहों पर हिंदी का विरोध किया जाता है, जबकि अंग्रेजी को लोग शान से बोलते हैं। पूरे देश में अंग्रेजी माध्यम के स्कूल चल रहे हैं जहां हिंदी में बात करना भी निषेध है। अगर कोई बच्चा गलती से भी हिंदी बोलता है, तो उसे दंडित किया जाता है। मां-बाप भी इस बात पर जोर देते हैं कि उनके बच्चे अंग्रेजी को सीखें। उन्हें हिंदी बोलनी चाहे न आए, पर अंग्रेजी सीखने पर ज्यादा जोर रहता है। हिंदी के विकास में कबीरदास, प्रेमचंद, सूरदास, तुलसीदास, महादेवी वर्मा, जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला तथा सुमित्रानंदन पंत का काफी योगदान रहा है। आज भी कई लेखक हिंदी के विकास में ईमानदारी से जुटे हुए हैं, परंतु दुख यह है कि हम भारतीय ही हिंदी बोलने में शर्म महसूस करते हैं, जबकि अंग्रेजी बोलने में हमें गर्व महसूस होता है। हिंदी राष्ट्र के गौरव का प्रतीक है, यह कोई क्षेत्रीय या साधारण भाषा नहीं हैं। यह एक विकसित और समृद्ध भाषा है। हिंदी का अपना व्यापक शब्द भंडार है। हिंदी भाषा व्यक्ति को एक नई पहचान देती है। पश्चिम के कई लोग भारतीय संस्कृति और भाषा को गर्व के साथ अपना रहे हैं, किंतु भारत में इसका अध्ययन घटता जा रहा है, जबकि अंग्रेजी सीखने व बोलने वालों की संख्या काफी अधिक है। हिंदी दिवस पर हर भारतीय को शपथ लेनी चाहिए कि वह शान से हिंदी को सीखेगा तथा बोलेगा भी। हमारे देश में अब अंगे्रेजी की अनिवार्यता भी खत्म कर देनी चाहिए। हिंदी दिवस की सभी को शुभकामनाएं।

प्रियंवदा

स्वतंत्र लेखिका


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