हिमाचल में अंग्रेजी भाषा में साहित्य सृजन

By: Sep 25th, 2022 12:08 am

साहित्य की निगाह और पनाह में परिवेश की व्याख्या सदा हुई, फिर भी लेखन की उर्वरता को किसी भूखंड तक सीमित नहीं किया जा सकता। पर्वतीय राज्य हिमाचल की लेखन परंपराओं ने ऐसे संदर्भ पुष्ट किए हैं, जहां चंद्रधर शर्मा गुलेरी, यशपाल, निर्मल वर्मा या रस्किन बांड सरीखे साहित्यकारों ने साहित्य के कैनवास को बड़ा किया है, तो राहुल सांकृत्यायन ने सांस्कृतिक लेखन की पगडंडियों पर चलते हुए प्रदेश को राष्ट्र की विशालता से जोड़ दिया। हिमाचल में रचित या हिमाचल के लिए रचित साहित्य की खुशबू, तड़प और ऊर्जा को छूने की एक कोशिश वर्तमान शृंाखला में कर रहे हैं। उम्मीद है पूर्व की तरह यह सीरीज भी छात्रों-शोधार्थियों के लिए लाभकारी होगी…

डा. कुंवर दिनेश सिंह

मो.-9418626090

भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद के कालखंड में अंग्रेजी का वर्चस्व यथावत बना रहा, प्रत्युत गत कुछ दशकों में भूमंडलीकरण और वैश्वीकरण के बढऩे से वरञ्च अंग्रेजी भाषा में रोजग़ार क्षमता एवं नियोजनीयता की दृष्टि से भी और अधिक बढ़ा है। स्कूली स्तर पर ही अंग्रेजी माध्यम से पठन-पाठन को काफी बल मिला है और अंग्रेजी में सृजनात्मक लेखन को भी पर्याप्त स्थान मिला है। हिमाचल प्रदेश जैसे पर्वतीय क्षेत्र में अंग्रेजी का अध्ययन एवं साहित्य सृजन देश के महानगरीय परिवेश के समकक्ष स्तरीय और ग्रहणीय है, इसमें कतई संशय नहीं है। हिमाचल से संबंधित अंग्रेजी भाषा के कुछ कवियों-कथाकारों को देश-विदेश में सराहना मिली है और साहित्य की तथाकथित मुख्यधारा में भी यथोचित स्थान दिया गया है।

हिमाचली अंग्रेजी साहित्यकार विविध विधाओं में सृजनरत हैं। कविता, कहानी, उपन्यास, निबंध, जीवनी, साहित्यालोचना, संस्मरण, पत्रकारिता तथा इतिहास लेखन इत्यादि विधाओं में हिमाचली साहित्य सर्जकों ने अद्भुत सृजनात्मकता, कलात्मकता एवं प्रयोगधर्मिता का परिचय दिया है। इस पहाड़ी राज्य में अंग्रेजी में कविता लेखन वास्तव में बीसवीं शताबदी के अस्सी के दशक में प्रारंभ हुआ। के. एन. शर्मा, पी. सी. के. प्रेम, डी. सी. चम्बियाल, हेट्टी प्रिम, कैलाश आहलुवालिया, सुरेश सी. जरयाल, कृष्ण गोपाल, ललित मोहन शर्मा, कंवर दिनेश सिंह, एस. सी. पराशर, वीरेंद्र परमार और सुमन सच्चर अंग्रेजी भाषा में लिखने वाले हिमाचल के कुछ प्रसिद्ध कवि हैं। यह सूची संपूर्ण नहीं है क्योंकि भाषा और काव्य मुहावरों पर एक मज़बूत पकड़ के साथ अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए कवियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। ये कवि निश्चित रूप से पहाड़ी जनमानस को अभिव्यक्ति देते हैं और क्षेत्रीय जीवन की समग्रता में बात करते हैं और निश्चित रूप से भारतीय काव्य धारा के साथ अपनी पहचान बनाते हैं। के. एन. शर्मा ने कविताओं के तीन संकलन प्रकाशित किए हैं : एंशिएन्ट ऑर्चर्ड, सॉन्ग ऑफ लाइफ और दि व्हिफ। उनकी कविता में कुछ-कुछ विद्रोह का स्वर मुखर हुआ है और कभी-कभी वे उपदेश देते भी दिखाई देते हैं।

आज के समाज में नैतिकता और प्राचीन जीवन मूल्यों का ह्रास कवि को चिंतित करता है। गढ़ (पालमपुर) में जन्मे पी. सी. के. प्रेम के अंग्रेजी में प्रकाशित काव्य संग्रहों में चर्चित हैं : अमंग दि शैडोज़, अनिग्माज़ ऑफ आइडेंटिटी, दोज़ डिस्टेंट होराज़ंज, दि बर्मुडा ट्राईंगल्ज़ और ओरेकल्ज़ ऑफ दि लास्ट डैकेड। इनके अतिरिक्त पी. सी. के. प्रेम द्वारा संपादित काव्य संकलन भी प्रकाशित हुए हैं। इनकी कविताएं जीवन के विविध अनुभवों, विडंबनाओं और विरोधाभासों का मार्मिक चित्रण करती हैं।

हिमाचल प्रदेश के बजरोल में जन्मे डी. सी. चम्बियाल के सात कविता संग्रह प्रकाशित हुए हैं : ब्रोकन इमेजिज़, कार्गोज़ ऑफ दि ब्लीडिंग हाट्र्स एंड अदर पोएम्स, परसेप्शन, जायरेटिंग हॉक्स एंड सिंकिंग रोड्स, बिफोर दि पैटल्ज़ अनफोल्ड, प्रॉमिसिंग एज एंड अदर पोएम्स तथा मेलो टोन्ज। उनकी अधिकांश कविताओं का उद्देश्य जीवन की विभिन्न दुविधाओं और द्वंद्वों को समझना और सुलझाना है। सुलह (पालमपुर) से संबंध रखने वाले कवि सुरेश सी. जरयाल के पांच काव्य संग्रह प्रकाशित हैं : चेंजिंग फेसिज, रेवरीज़ इन सॉलिट्यूड, फ़्लायट्स टू इमॉर्टेलिटी, क्वैस्ट ऑफ पोएसी तथा फाइनर वॉयसिस। जरयाल ने अपनी कविताओं में समसामयिक मुद्दों को बेहद संवेदनशीलता के साथ उठाया है। कृष्ण गोपाल ने कविताओं के केवल दो संग्रह निकाले हैं जो विषयगत दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं। इनकी कविता में यथार्थवादी आयाम देखे जा सकते हैं। ‘दि लाइव सेंसर’ इनका चर्चित कविता संग्रह है। एक अत्यधिक प्रतिभाशाली महिला कवि, हेट्टी प्रिम, अपने काव्य में दीनहीन, दु:खी, शोषित एवं उत्पीडि़त लोगों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील दीख पड़ती हैं। इसके साथ ही महिलाओं से जुड़े मुद्दे भी इनकी चिंता के विषय हैं। ‘शिफ़्िटंग शैडोज़’ इनका चर्चित कविता संग्रह है। नगरोटा बगवां से संबंध रखने वाले कवि, लाजपत नागपाल का एक कविता संग्रह चर्चा में आया है जिसका शीर्षक है ‘ट्वायलाइट’। उनकी छोटी कविताएं दार्शनिक एवं आध्यात्मिक विचारों से परिपूर्ण हैं। डाड (कांगड़ा) से संबंधित कवि, वीरेंद्र परमार जीवन की वास्तविकताओं पर लिखते हैं। उनके प्रकाशित काव्य संग्रह हैं : सैंडी शोजऱ्, कोलाज ऑफ क्वायट्यूड, इन्विजि़बल शोजऱ्, दि वॉयस डिवायन और विदिन एंड विदाउट। कैलाश आहलुवालिया के दो कविता संग्रह प्रकाशित हैं : सी.शैल्ज़ और ओ दि ऐन्टहिल मैन।

इनकी कविताएं जीवन के विविध अनुभवों को उकेरती हैं। अधिकांशत: इनके काव्य में ग्रामीण और नगरीय परिवेश का द्वन्द्व देखा जा सकता है, हालांकि ये प्रमुख रूप से ग्रामीण संवेदना के कवि हैं। बी. के. डोहरू की कविताओं में जीवन, प्रेम, भावनाएं और विचार प्रमुख रूप से स्वनित हुए हैं। उनकी कविताएं पाठकों को उदात्त चिंतन की ओर ले जाती हैं। उनके तीन काव्य संग्रह प्रकाशित हैं : म्यूजि़ंग्ज़, प्लंजिज़ तथा रोज़ ऑन फायर। ललित एम. शर्मा ने मानवीय संबंधों तथा बदलते जीवन मूल्यों को अपने काव्य में विषय बनाया है। उनके चर्चित काव्य संग्रह हैं : दि ब्राउन ट्री तथा मैन विद अ हॉर्न। उनकी भाषा सरल है और दृष्टि विश्लेषणात्मक है। सुमन सच्चर का एक कविता संग्रह प्रकाशित हुआ है, फ्लायट्स इन वैक्यूम। वे समकालीन व्यवस्था और मानवीय सरोकारों पर कटाक्ष करते दीख पड़ते हैं। एस. सी. पराशर की कविताओं में जीवन, प्रकृति एवं अध्यात्म प्रमुख विषय हैं। शक्ति सिंह चंदेल का एक कविता संग्रह प्रकाशित है : बियॉन्ड दि क्लाउड्ज़ (2007), जिसकी कुछ कविताएं अंग्रेज़ी दैनिक दि ट्रिब्यून में भी छप चुकी हैं। कलात्मकता, सौंदर्यबोध और नैतिक दृष्टिकोण के साथ प्रकृति और मनुष्य जीवन के मध्य सामंजस्य बिठाने का प्रयास करती चंदेल की कविताएं प्रभावी हैं।

-(शेष भाग निचले कॉलम में)

अतिथि संपादक

डा. सुशील कुमार फुल्ल

हिमाचल रचित साहित्य -32

मो.-9418080088

विमर्श के बिंदु

1. साहित्य सृजन की पृष्ठभूमि में हिमाचल
2. ब्रिटिश काल में शिमला ने पैदा किया साहित्य
3. रस्किन बांड के संदर्भों में कसौली ने लिखा
4. लेखक गृहों में रचा गया साहित्य
5. हिमाचल की यादों में रचे-बसे लेखक-साहित्यकार
6. हिमाचल पहुंचे लेखक यात्री
7. हिमाचल में रचित अंग्रेजी साहित्य
8. हिमाचल से जुड़े नामी साहित्यकार
9. यशपाल के साहित्य में हिमाचल के रिश्ते
10. हिमाचल में रचित पंजाबी साहित्य
11. चंद्रधर शर्मा गुलेरी की विरासत में

हिमाचल में रचित अंग्रेजी साहित्य

-(ऊपरी कॉलम का शेष भाग)

पी. सी. के. प्रेम के शब्दों में, शिमला निवासी कवि-कथाकार-समीक्षक एवं अनुवादक तथा अंग्रेजी के प्राध्यापक डा. कुंवर दिनेश सिंह ‘शब्दों की अद्भुत मितव्ययिता वाले भावपूर्ण कवि हैं।’ अंग्रेजी भाषा में इनके ग्यारह काव्य संग्रह प्रकाशित हैं : रेवरीज़ इन्सेसेन्ट, इम्प्लोज़न्ज़, एसाइड्ज़, थिन्किंग अलाउड, थियोफेनी, हाऊस अरेस्ट, थॉरोफेयर (गज़़ल्ज़), दि टियजऱ् ऑफ फ्ऱॉस्ट (हाइकु पोएम्ज़), प्रॉस्पेक्ट हिल : शिमला पोएम्ज़, दि फ्ऱॉस्टेड ग्लास तथा इपिसल्ज़ : पोएम्ज़ ऑफ लव एंड लॉन्गिंग। कविता संग्रह हाऊस अरेस्ट (2000) के लिए इन्हें हिमाचल प्रदेश साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाज़ा जा चुका है।

अंग्रेज़ी में इनके क्षणिका संग्रह थिंकिंग अलाउड (1999) के विषय में सुप्रसिद्ध कवि-फिल्मकार गुलज़ार लिखते हैं, ‘कविता जितनी छोटी होती है, उतना ही अधिक समय लगता है उसमें डूब पाने में और मैंने तो काफी समय लगा डाला इस किताब का रसपान करने में।’ इस संग्रह के विषय में सुप्रसिद्ध पंजाबी कवयित्री अमृता प्रीतम लिखती हैं, ‘ये कविताएं ख़ामोशी की आवाज़ें हैं, ठीक वैसे ही जैसे पानी में उठने वाली तरंगें।’ हिमाचल प्रदेश से अंग्रेज़ी में कथा-साहित्य का सृजन करने वालों में पीसीके प्रेम, सुशील कुमार फुल्ल, के. आर. भारती, सुमित राज वशिष्ठ, मीनाक्षी चौधरी और कंवर दिनेश सिंह चर्चित नाम हैं। पीसीके प्रेम के अंग्रेजी में कथा साहित्य में सात उपन्यास और दो कहानी संग्रह प्रकाशित हैं। पीसीके प्रेम की कहानियों में मानव जीवन को बारीकी से समझने के लिए एक दार्शनिक आधार मिलता है। इनका उपन्यास ‘अ हैन्सम मैन’ (2001) इनकी चर्चित कृति है। सुशील कुमार फुल्ल हिंदी में कहानी लेखन के लिए जाने जाते हैं, लेकिन सन् 1983 में अंग्रेजी में ‘दि नेकेड वोमन’ शीर्षक से इनका एक उपन्यास भी प्रकाशित हुआ है, जो दीनहीन, झुग्गियों में रहने वालों की मार्मिक कहानी है। सुमित राज वशिष्ठ के दो कहानी संग्रह शिमला बाज़ार (2010) व शिमला टेल्ज़ (2013) और एक उपन्यास ‘टी शॉप एट नारकंडा’ चर्चित हैं। लोकप्रिय साहित्य की विधा में रचित मीनाक्षी चौधरी के तीन कहानी संग्रह चर्चित हैं : ग़ोस्ट स्टोरीज़ ऑफ शिमला हिल्ज़ (2005), मोर ग़ोस्ट स्टोरीज़ ऑफ शिमला हिल्ज़ (2012) तथा लव स्टोरीज़ ऑफ शिमला हिल्ज़ (2012) जिनका ग्रन्थन अंग्रेजी कथाकार रस्किन बॉन्ड से प्रेरित लगता है। के. आर. भारती की व्यंग्य और कटाक्ष लिए हुए लघु कहानियों का संग्रह दि लॉयल्टी ऑफ दि लॉक एण्ड अदर स्टोरीज़ (2020) प्रकाशित है जिसकी कुछ रचनाएं अंग्रेजी दैनिक दि ट्रिब्यून के सम्पादकीय पृष्ठ के मध्य-स्तम्भ में भी प्रकाशित हुई हैं।

अंग्रेजी में सूक्ष्म-कहानी की विधा में वर्ष 2021 में प्रकाशित कंवर दिनेश सिंह का कहानी संग्रह ‘विद इन मिनिट्स’ कहानी के क्षेत्र में एक नूतन प्रयोग है। इस संग्रह में कुल 45 कहानियां हैं जिनमें मानव समाज बहुवर्णी पात्रों और दैनिक जीवन के विविध पहलुओं को कलात्मक ढंग से और मनोवैज्ञानिक एवं दार्शनिक दृष्टिकोण के साथ उजागर किया गया है।

आशा शर्मा कृत उनके पिता सत्यानन्द स्टोक्स की जीवनी ‘ऐन अमेरीकन इन गांधीज़ इण्डिया : दि बायोग्राफी ऑफ सत्यानन्द स्टोक्स’ (1999) एक रोचक ग्रन्थ है। शक्ति सिंह चन्देल द्वारा सम्पादित पुस्तक ‘शेर जंग : दि वॉरिअर सन ऑफ इण्डिया’ (2012) सिरमौर जि़ला से स्वतन्त्रता सेनानी शेर जंग की जीवनी और संस्मरणों पर केन्द्रित 18 लेखों का महत्त्वपूर्ण संकलन है। हिमाचल प्रदेश से अंग्रेज़ी में गद्य लेखन में भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वाले अमरीकी मूल के लेखक एवं समाज सुधारक सत्यानन्द स्टोक्स (1882-1946) का नाम उल्लेखनीय है जिनकी स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भारत में तीन महत्त्वपूर्ण गद्य कृतियां प्रकाशित हुईं : नेशनल सेल्फरिअलाइज़ेशन एण्ड अदर एसेज़ (1977), दि इण्डिया ऑफ माय ड्रीम्ज़ : सेमुअल स्टोक्सिज़ चैलेन्ज टू क्रिश्चन मिशनरीज़ (1995) तथा सत्यकाम : मैन ऑफ ट्रू डिज़ायर (1998)।

सिरमौर से शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के साथी स्वतन्त्रता सेनानी, शेर जंग की तीन पुस्तकें चर्चित हैं :ट्रीस्ट विद टायगजऱ् (1967), रैम्बलिंग्ज़ इन टायगरलैण्ड (1979) तथा प्रिजऩ डेय्ज़ : रिकलेक्शन्ज़ एण्ड रिफ़्लेक्शन्ज़ (1991)। हिमाचल प्रदेश के प्रथम मुख्यमन्त्री डा. यशवन्त सिंह परमार की पुस्तक ‘पॉलीएण्ड्री इन दि हिमालयाज़’ (1975) हिमाचल के जनजातीय समाज और सांस्कृतिक परिवेश को समझने के लिए एक उपयोगी ग्रन्थ है। मूलत: कांगड़ा से संबंध रखने वाले विश्वख्यात इतिहासकार, बिपन चन्द्र ने इतिहास और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन व स्वातंत्र्योत्तर राष्ट्रीय राजनीति एवं आर्थिकी जैसे विषयों पर अकादमिक एवं शोधपरक दृष्टि से दर्जनों पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें प्रमुख हैं : इण्डियन नेशनल मूवमेंट (1988), इण्डियाज़ स्ट्रगल फॉर इंडिपेंडेंस (1857-1947), हिस्टरी ऑफ मॉडर्न इण्डिया (1990) तथा दि मेकिंग ऑफ मॉडर्न इण्डिया (2000)।

हिमाचल प्रदेश के इतिहास लेखन में मियां गोवर्धन सिंह का नाम सबसे पहले आता है, जिनकी पुस्तकें हिस्टरी ऑफ हिमाचल प्रदेश (प्रथम प्रकाशन वर्ष, 1932) तथा हिमाचल प्रदेश : हिस्टरी, कल्चर एण्ड इकॉनमी (1992) न केवल हिमाचल के इतिहास का सटीक एवं विश्वसनीय प्रलेखन करती हैं, अपितु उनके बाद के इतिहासकारों का मार्गदर्शन भी करती हैं। इनके साथ ही मनजीत सिंह आहलुवालिया की दो पुस्तकें हिस्टरी ऑफ हिमाचल प्रदेश (1988) तथा सोशल, कल्चरल एण्ड इकनॉमिक हिस्टरी ऑफ हिमाचल प्रदेश (1998) भी महत्त्वपूर्ण ग्रंथ हैं।

-डा. कुंवर दिनेश सिंह

-(शेष भाग अगले अंक में)

रचना संसार की आग में तपा ‘आग’ उपन्यास

अपने रचना संसार से ‘आग’ लेकर चंद्ररेखा ढडवाल, सामाजिक ताने-बाने से औरत के वजूद को खींचती हुई, कई समानांतर रेखाएं बना देती हैं। यह ‘आग’ कहीं कोरी सी, कहीं दबी सी और कहीं रिश्तों की आंच पर तपी हुई, यह आभास नहीं होने देती कि इससे जलने का कोई खतरा है या यह तुरंत जलने को आतुर है। उपन्यास ‘आग’ अपनी संबोधन कला के साथ आखिर तक पाठकों से वार्तालाप करता है। उपन्यास का अपना एक भूगोल, समाजशास्त्र, सांस्कृतिक पक्ष व माटी से सना तर्क है, जो छूट लेकर शादी-विवाह के गीत सुनाने लगता है और जब कभी लोक संस्कृति के महत्त्व के सामने आकर डट जाता है, तो हिंदी भाषा के शब्दार्थ में हिमाचली बोली की मिठास लिए लेखन का समुद्र अति गहराई तक महसूस होता है। लेखिका आंचलिक प्रभाव से ओतप्रोत भाषायी संसार चुनती हैं, तो कुछ शब्द जैसे बड्ड-टुक, रोण-क्लत, जनानड़ू, उआन व ग्यान्ना मानो अर्थ की गहराई से भीगकर संबोधित हुए हों।

कहानी अपने केंद्र में घूमती हुई, कई किस्से बटोरती है, तो उपन्यास के भीतर बांग्ला लेखन सरीखी बारीकियां और निबंध शैली की उत्कृष्टता के साथ चंद्ररेखा ढडवाल परिवेश की परंपराओं को गूंथते हुए, सभ्यता-शिष्टाचार का साझा चूल्हा जला देती हैं। उपन्यास ‘आग’ एक बच्ची के औरत बनने की भूमिकाओं का मापतोल है, जो ‘लोइना’ के वय को चौदह से तीस साल तक के तराजू में तोलता है। यहां औरत की एक बड़ी दुनिया, रिसती छतें, बिखरते द्वार। कहीं रिश्तों को बांधती – कहीं वजूद को ढांपती। खानदानी रसूख के पहरे में औरत के तर्क कौन जाने, कौन जाने औरत के घर और भीतर तक का हुनर।

औरत के संवाद में कितनी व्यथा- कितनी असहमति। लोइना भी सिल बट्टे पर मसाला पीसती, आटा गूंथती तथा घर से गोहरन का काम करती ‘गोबर’ हो जाती, लेकिन उपन्यास को यह कबूल नहीं। यहां लोइना अपने भीतर स्त्री पताका है, जो समाज की कई पगडिय़ां और जीवन की पगडंडियां हटाती हुई, शादी के घूंघट के बीच औरत की त्रासदी पलट देती है। शादी की चादर के नीचे अजीब सा शपथपत्र लोइना को जब नसीब हुआ, तो वह महज चौदह वर्ष की थी, ‘लग्न-बेदी के संस्कारों में भी जैसे खेल खेलती रही।’ ससुराल जाने का अर्थ जाने बिना जिसे एक दिन के विवाह ने पति की मौत का सदमा सिखा दिया हो, उसके लिए समाज के सिद्धांत और गौरव के सख्त बहाने कितने बेरहम हो सकते हैं, इसे पल-पल जीया है उपन्यास ने। क्या औरत केवल चौका-चूल्हा है, जिसे हर दिन समेटा जाता है और उसके आसपास बच जाती है मर्दों की जूठन। रिश्तों के भूतों से लड़ती ‘लोइना’ का कसूर यही था कि उसकी छोटी उम्र की शादी, पति की शहादत में कुर्बान हो गई और वह अपनी विधवा सास की लाठी बनकर अपने खरे-बुरे को समझते हुए जहीन और आज्ञाकारी बहू बनती चली गई।

मर्द के बिना औरत अपने भीतर सामाजिक कवच से न जाने कब से लड़ रही है। उपन्यास लगातार समाज की संवेदना से अलग नारी के मन की रिक्तता भरने की हरसंभव कोशिश को विमर्श के चौराहे पर लाकर खड़ा कर देता है। लोइना अपने संघर्ष की सहजता से कई कहानियों की पात्र बनकर, नारी समुदाय के विषय संवारती है। उपन्यास कई सदियों के मिलन के बीच परंपराओं-परिपाटियों, रीति-रिवाजों और बहू-बेटियों के संदर्भों को बारीकी से पलटता है। औरत अपने स्वभाव, शरीर और संवाद के खुरदरे हिसाब के बीच भी अंतत: जीत जाती है। इसी उपन्यास में लोइना के बहाने कई अन्य नारी चरित्र जीत जाते हैं, लेकिन इस कशमकश को जीना आसान नहीं। किसी विधवा को सिंदूर सौंपते समाज के हाथों में कितने बिच्छू छिपे होते हैं, इसे अनावृत्त करती लेखिका ‘झंझड़ाड़े’ के माध्यम से पैदा होती रही व्यथा से रूबरू कराती है। उपन्यास के बीच किस्सागोई के भी आयाम हैं और इसी तरह चेले की कहानी में ‘लोइना’ का अंधविश्वास पर किया गया प्रहार, ‘ओपरा’ के भयावह प्रसंग की मुखाल$फत करता है।

उपन्यास के भीतर कई साये उभरते हैं। भारत विभाजन की यादों में मानवता की चौकीदारी करता समाज, सद्भावना का ‘धर्मेका’ करता हुआ दिखाई देता है। उपन्यास की अपनी गति-अपने ठहराव, अपने कांटे-अपने फूल हैं। खास तौर पर सैन्य पृष्ठभूमि में पलता देश का गौरव, औरत के कितने रिश्तों की शून्यता पर सरहद के लिए तत्पर रहता है और इन्हीं में से एक लोइना-विशम्भर की दास्तान भी है। देश की हर कुर्बानी के इतिहास के पीछे रह जाती है कोई लोइना, जिसे समाज की मर्यादा के बंधुआ बना दिए गए जीवन में आत्मसम्मान के लिए लडऩा पड़ता है। इसलिए उपन्यास के अपने आनंद और विडंबनाएं हैं। उपन्यास मात्र कथा को लेकर नहीं चलता, बल्कि इसके भीतर कहावतें, कहानियां, लोकश्रुतियां, करवटें और लोक गीतों की कसरतें कनखियों से झांकती हुईं पाठक के हृदय तक पहुंच जाती हैं। उपन्यास में प्रीतो की भूमिका किसी ‘टावर क्लाक’ की तरह है। समय की सूइयां उसके चरित्र पर आकर बार-बार चुभती हैं, लेकिन वह बचपन से लोइना के हर पड़ाव को अपने ठहराव से जोडक़र जीता रहा। उसकी खामोशियों में संवाद भरती लेखिका हर बार एक नया कैनवास खड़ा कर देती हैं, जैसे कोई संभावना छूकर बताना चाहती है अपने रंग और मिजाज। लोइना के भीतर पनपता आंदोलन बीच-बीच में सुर्ख होता है, ‘उसने सोचा। ये नाते भी खेत ही होते हैं। सींचते रहो तो ही हरियाएंगे।’ लोइना के जीवन में प्रीतो कई मध्यांतर लेकर आता है।

यादों की धूप में सूखता प्रीतो का चरित्र और सांझ की अंगुलियों में ढलती लोइना की उम्र का तकाजा जब सब्र के बांध को तोड़ देता है, तो उपन्यास सुखद परिणति की ओर अग्रसर हो जाता है, ‘बीच में ही रोक दिया प्रीतो ने, मेरी गर्ज तो तुम दोनों (लोइना व उसकी सास) से बड़ी है। मैें जीता जागता हाड़-मांस का बना इनसान हूं।’ लोइना के प्रश्नों से उपन्यास सामाजिक अंधेरों से जूझता है। मसलन जब लोइना की बहन का नवजात शिशु उसकी सूनी गोद में बसाया जा रहा था, तो वह आंदोलित होकर अपनी मां से पूछती है, ‘मुझे नहीं माननी किसी की मेहरबानी। तुमने चाहा तो चौदह की वय में ब्याह कर दिया मेरा। उस घर में भिजवा दिया जहां मैं मनहूस थी।’ लोइना के जीवन के हर घटनाक्रम का साथी, एक साया, एक विश्वास, एक अपनत्व का एहसास, जो बचपन की यादों में प्रीतो को सदा मिट्टी का पुतला बना देता है। न जाने कितनी बार टूटा होगा प्रीतो या मिट्टी का यह गुड्ढा। उपन्यास लोइना के समर्थन में संवाद पैदा करता है, फिर भी यह पूछा जाएगा कि क्या ‘लोइना’ के रूप मेें औरत हमेशा जीत सकती है। यह इसलिए भी कि एक सशक्त पात्र के स्थान पर उपन्यास किस ‘आग’ को प्रकट करता है। उपन्यास अगर ‘आग’ के स्थान पर लोइना शीर्षक धारण कर लेता, तो केंद्रीय भूमिका में रही एक औरत अपनी जीत का ताज भी पहन लेती।

-निर्मल असो


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