शिखरों पर पतंजलि ने रचा एक और इतिहास, आचार्य बालकृष्ण-टीम ने विजय यात्रा के दौरान खोजी जड़ी-बूटियां
निजी संवाददाता — हरिद्वार
पूज्य आचार्य बालकृष्ण जी महाराज के नेतृत्व में गौमुख से ऊपर अति दुर्गम क्षेत्रा में, अनामित व अनारोहित तीन शिखरों पर आरोहण कर पतंजलि ने एक और इतिहास रचा है। अपनी विजय यात्रा के उपरांत हरिद्वार वापस आने पर पूज्य आचार्य जी, सहयोगी संस्था नेहरू पर्वतारोहण संस्थान के प्रिंसीपल कर्नल अमित बिष्ट व पूरी टीम का अभिनंदन समारोह पतंजलि विश्वविद्यालय के ऑडिटोरियम में आयोजित किया गया। इस विजय यात्रा के दौरान पूज्य आचार्य व टीम ने अनेक दुर्लभ जड़ी-बूटियों की खोज की। कार्यक्रम में पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज ने कहा कि यह यात्रा अत्यंत दुर्गम है। मानव पदचिन्हों से वंचित अनामित, अनारोहित, अविजित पहाडिय़ों पर विजय प्राप्त करना अपने आप में बहुत साहसपूर्ण कार्य था। बड़े रूपों में कई बार प्रयास हुए, अंतिम प्रयास आज से 42 साल पहले 1981 में हुआ था, उसके बाद किसी ने वहां पहुंचने का प्रयास नहीं किया। आचार्य व कर्नल अमित बिष्ट ने यह इतिहास रचा, यह क्षण गौरवान्वित करने वाला है।
इन अनामित, अनारोहित हिम शिखरों का अपनी परंपराओं के आधर पर नामकरण कर आचार्य जी ने सनातन परंपरा व षि संस्कृति के लिए अभुतपूर्व कार्य किया है। साथ ही दुर्लभ जड़ी-बूटियों की खोज कर उन्होंने स्वास्थ्य के क्षेत्रा में मानव सेवा में अपना अमूल्य योगदान दिया है। इस अवसर पर आचार्य ने कहा कि इस बार हमनें हिमालय पर जड़ी-बूटियों की खोज के साथ-साथ हिमालय में हिमालय की खोज की तथा अनामित व अनारोहित तीन चोटियों (हिम शिखिर) की खोज करके उनकी स्थिति, पारिस्थिति और प्राकृतिक स्वरूप के आधर पर उनका नामकरण करके लौटे हैं। राष्ट्रीय गौरव तथा महान )षि-मुनियों की तपस्थली के आभास से दल के मन मे यह भाव आया कि 6,000 मीटर से ऊपर, सबसे ऊंची चोटी को राष्ट्रवाद की परंपरा के आधर पर राष्ट्र) षि, उसके बराबर में दूसरी चोटी का नाम योग परंपरा के आधार पर योग)षि तथा उसके बाएं तीसरी चोटी का नाम आयुर्वेद परंपरा के आधर पर आयुर्वेद ऋषि रखा।
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