दुनिया में मंदी, भारत में तेजी

इसमें कोई संदेह नहीं कि यदि भारत मुद्रास्फीति पर नियंत्रण कर पाएगा तो आत्मनिर्भर भारत के प्रयासों को फलीभूत करते हुए विविध क्षेत्रों में मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देते हुए हम अपनी जीडीपी और रोजगार दोनों बढ़ा सकेंगे…

इंग्लैंड को पछाड़ते हुए भारत हाल ही में दुनिया की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। हालांकि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अपनी हालिया रिपोर्ट ‘विश्व आर्थिक दृश्य : धूमिल और अनिश्चित’ 2022-23 के लिए भारत के जीडीपी ग्रोथ के अनुमानों में 0.8 प्रतिशत घटाकर 7.4 प्रतिशत कर दिया है, लेकिन यह भी कहा है कि दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं अमरीका और चीन की तुलना में भारत तेजी से ग्रोथ करेगा। यानी भारत दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेजी से ग्रोथ करने वाली अर्थव्यवस्था बन जाएगा। लगातार बढ़ती महंगाई और मंदी के चलते अमरीका और चीन की अर्थव्यवस्थाओं में ग्रोथ घटने की बात की गई है और साथ ही यह भी कहा गया है कि परिस्थिति उससे भी अधिक विकट हो सकती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि महामारी के बाद अर्थव्यवस्थाओं में तेजी की संभावनाएं बन रही थी, लेकिन कई नए संकटों के चलते आर्थिक स्थिति विकट होती जा रही है और जोखिम बढ़ रहे हैं। महामारी के संकटों से उबरती दुनिया के समक्ष नई चुनौतियां आ रही हैं जिसमें रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण तेल और खाद्य पदार्थों की कमी और महंगाई प्रमुख हैं। इसके कारण दुनिया भर के केंद्रीय बैंक ब्याज दरें बढ़ा रहे हैं, जो ग्रोथ के लिए हानिकारक सिद्ध होगा। जहां चीन में लॉकडाउन के कारण दुनिया भर में आपूर्ति श्रृंखला (सप्लाई चेन) प्रभावित हो रही है, उधर अमरीका में वर्ष के पहले कालखंड में धीमी ग्रोथ, गृहस्थों की आमदनी में कमी और संकुचित मौद्रिक नीति के चलते मांग और ग्रोथ में कमी परिकल्पित की गई है। आईएमएफ के अनुसार दुनिया की ग्रोथ 2022 में 3.2 प्रतिशत और 2023 में 2.9 प्रतिशत रहने का अनुमान है। यह ग्रोथ की दर पूर्व के अनुमानों से क्रमश: 0.4 और 0.7 प्रतिशत कम है। एक ओर जहां वैश्विक ग्रोथ के अनुमान घट रहे हैं, अमरीकी जीडीपी पिछले कुछ महीनों से सिकुड़ती जा रही है। अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां विश्व में मंदी की चेतावनी दे रही हैं, वहीं भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व की सबसे तेजी से बढऩे वाली अर्थव्यवस्था बनी हुई है। केन्द्रीय सांख्यिकी संस्थान के हालिया अनुमानों के अनुसार पिछली तिमाही में जीडीपी की ग्रोथ 13.5 फीसदी रिकार्ड की गई। हालांकि भारत में विपक्षी दल और सरकार के अन्य आलोचक महंगाई और रुपए के अवमूल्यन पर सरकार को घेरने की कोशिश में हंै, लेकिन समझना होगा कि भारत में महंगाई अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में कहीं कम है। अमरीका और यूरोप के कई देश, जिन्होंने बीते दशकों में महंगाई का सामना नहीं किया था, अब महंगाई का भारी दंश झेल रहे हैं। अमरीका में महंगाई की दर 9.1 प्रतिशत और इंग्लैंड में यह 9.4 प्रतिशत पहुंच चुकी है, जबकि भारत में यह 7.0 प्रतिशत ही है।

इसी तरह, हालांकि, पिछले पांच महीनों में डॉलर के मुकाबले रुपए में 5.41 प्रतिशत की गिरावट आई है, इस बीच पाउंड स्टर्लिंग में रुपए के मुकाबले 4.87 प्रतिशत, जापानी येन में 6.10 प्रतिशत और यूरो में 4.97 प्रतिशत की गिरावट आई है। यानी डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर हुआ है, लेकिन अन्य मुद्राओं के मुकाबले मजबूत हुआ है। पाउंड स्टर्लिंग, जो 30 मार्च 2022 को 99.46 रुपए था, अब (30 अगस्त 2022 तक) 94.61 रुपए है। 100 जापानी येन की कीमत 62.24 रुपए थी, अब यह केवल 58.44 रुपए है। इसी तरह यूरो जो कि 84.24 रुपए था. अब 80.00 रुपए के बराबर है। यानी चाहे महंगाई की बात कहें या करैंसी के अवमूल्यन की, भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन कर रही है। अर्थव्यवस्था के दो प्रमुख क्षेत्रों सेवाओं और मैन्युफैक्चरिंग में ग्रोथ में सुधार का मापदंड होता है परचेजिंग मैनेजर्स इन्डेक्स (पीएमआई)। स्टैण्र्ड एंड पुअर्स की गणना के अनुसार जून में पीएमआई इन्डेक्स 59.2 तक पहुंच गया जो अप्रैल 2011 से अभी तक का सबसे बेहतर प्रदर्शन है। हालांकि जुलाई में इसमें हल्की कमी दिखाई दी है, लेकिन इसके बावजूद माना जा सकता है कि भारत का सेवा क्षेत्र अत्यंत बेहतर प्रदर्शन कर रहा है। जहां तक मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र का सवाल है, यह पीएमआई इन्डेक्स जून में 53.9 से बढ़ता हुआ जुलाई में 56.4 तक पहुंच गया है। एजेंसी सर्वे यह कहता है कि भारी मात्रा में विदेशी निवेशकों के पलायन, बढ़ती ब्याज दरों, कमजोर होते रुपए और वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी सरीखी तमाम प्रतिकूल स्थितियों के बावजूद नवंबर से लगातार मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र बेहतर प्रदर्शन कर रहा है।

अर्थव्यवस्था और विशेष तौर पर गैर कृषि कार्यकलापों में ग्रोथ का एक अन्य संकेतक जीएसटी प्राप्तियों का होता है। गौरतलब है कि अक्तूबर 2021 से जीएसटी की प्राप्तियां लगातार ऊंचे स्तर पर बनी हुई हैं, और पूर्व की तुलना में वे कहीं ज्यादा हैं। सितंबर 2021 में जहां जीएसटी प्राप्तियां 1.17 लाख करोड़ रुपए थी, अक्तूबर में वो 1.3, नवंबर में 1.32, दिसंबर में 1.3, जनवरी 2022 में 1.38, फरवरी में 1.33, मार्च में 1.42, अप्रैल में 1.68, मई में 1.41, जून में 1.45 लाख करोड़ रुपए और जुलाई में 1.49 लाख करोड़ रूपए दर्ज की गई। समझा जा सकता है कि मैन्युफैक्चरिंग और सेवा क्षेत्र में अब अभूतपूर्व बेहतर ग्रोथ देखी जा रही है। अर्थव्यवस्था की दीर्घकालीन ग्रोथ और उस ग्रोथ की तारतम्यता पूंजीगत वस्तुओं, मध्यवर्ती वस्तुओं और इन्फ्रास्ट्रक्चर वस्तुओं के उत्पादन से मापी जाती है। तो उस नाते पिछले वर्ष मई की तुलना में मई 2022 में पूंजीगत उत्पादन में वृद्धि 55 प्रतिशत, मध्यवर्ती वस्तुओं में वृद्धि 18 प्रतिशत और इन्फ्रास्ट्रक्चर वस्तुओं के उत्पादन में वृद्धि 18.2 प्रतिशत परिकल्पित की गई है। इसके अलावा चिरस्थाई उपभोक्ता वस्तुओं में तो उत्पादन अभूतपूर्व रूप से 58.5 प्रतिशत बढ़ा है। हालांकि यहां औद्योगिक ग्रोथ का वास्तविक चित्र नहीं मिलता क्योंकि पिछले साल मई में कोरोना के प्रकोप के कारण उत्पादन बहुत कम हो गया था। लेकिन यदि अप्रैल माह का भी औद्योगिक उत्पादन देखा जाए तो उसमें भी वृद्धि दिखाई दे रही है।

महंगाई है चिंता का विषय : मैन्युफैक्चरिंग हो अथवा सेवा क्षेत्र, सभी तेज ग्रोथ की ओर इंगित कर रहे हैं। इस बात की पुष्टि जीएसटी की प्राप्तियों के आंकड़ों से हो रही है। डालर के मुकाबले रुपया थोड़ा कमजोर तो हुआ है, लेकिन यह पूर्व की भांति नहीं है क्योंकि पूर्व में सामान्यत: जब भी भारतीय कैरेंसी कमजोर हुई, वह विश्व की सभी मुख्य कैरेंसियों के मुकाबले भी कमजोर होती थी। लेकिन 5 महीनों में रुपया पाउंड, यूरो और येन, सभी के मुकाबले मजबूत हुआ है। डालर की रुपए और सभी मुख्य कैरेंसियों के मुकाबले मजबूती अमरीका में ब्याज दरों की वृद्धि और वैश्विक उथल-पुथल है, इसलिए यह मजबूती अल्पकालिक मानी जा रही है। लेकिन भारत के नीति-निर्माताओं की मुख्य चिंता यहां की महंगाई है। पिछले काफी लंबे समय से भारत में मुद्रास्फीति 3 से 4 प्रतिशत के बीच काफी निचले स्तर पर बनी हुई थी। लेकिन पिछले कुछ समय से मुद्रास्फीति 7 प्रतिशत तक पहुंच गई है। ऊंची मुद्रास्फीति के चलते रिजर्व बैंक को नीतिगत ब्याज दरों को बढ़ाना पड़ रहा है, जिसका असर ग्रोथ पर भी पड़ सकता है। ऐसे में सरकार को मुद्रास्फीति रोकने हेतु ठोस प्रयास करने होंगे। रूस और ईरान से सस्ते दामों पर कच्चे तेल की खरीद, देश में बढ़ता कृषि उत्पादन, सरकार द्वारा पेट्रोल और डीजल पर टैक्स में कमी समेत कई सराहनीय प्रयास हुए हैं। इन सब प्रयासों के कारण भारत में मुद्रास्फीति की दर अमरीका और इंग्लैंड की तुलना में कहीं कम है। वैश्विक स्तर पर खाद्य मुद्रास्फीति, ईंधन की कीमतों में वृद्धि और आवश्यक कच्चे माल की कीमतों में वृद्धि का सामना करना पड़ रहा है। भारत भी कुछ हद तक उससे प्रभावित हो रहा है। लेकिन बढ़ते कर राजस्व और उसके कारण शेष दुनिया की तुलना में राजकोषीय घाटे पर नियंत्रण के द्वारा मुद्रास्फीति को थामने का प्रयास चल रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं कि यदि भारत मुद्रास्फीति पर नियंत्रण कर पाएगा तो आत्मनिर्भर भारत के प्रयासों को फलीभूत करते हुए विविध क्षेत्रों में मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देते हुए हम अपनी जीडीपी और रोजगार दोनों बढ़ा सकेंगे।

डा. अश्वनी महाजन

कालेज प्रोफेसर


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