जीवित कोशिकाओं की उप-संरचनाओं के आंतरिक ढांचे पर अध्ययन

By: Sep 14th, 2022 12:04 am

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मंडी के शोधकर्ताओं ने अमरीका की यूनिवर्सिटी ऑफ सिनसिनाटी के साथ कुशल विधि की विकसित

दिव्य हिमाचल ब्यूरो—मंडी
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मंडी के शोधकर्ताओं ने अमरीका स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ सिनसिनाटी के साथ गठजोड़ करके जीवित कोशिका की उपसंरचना के आंतरिक ढांचे और कार्यों के अध्ययन के लिए सक्षम तरीका विकसित किया है। शोधकर्ताओं ने इस प्रक्रिया में धातु के नैनो तत्त्वों के झुंड का उपयोग किया जिस प्रक्रिया को ढांचागत प्रदीपन माइक्रोस्कोपी कहा जाता है। इसका उपयोग लाइसोसोम की विशेषताओं एवं कार्यों के बेहद सूक्ष्म अन्वेषण और माइटोकोंड्रिया जैसे महत्त्वपूर्ण कोशिका तत्त्वों से उनके संवाद को समझने के लिए किया जाता है।

इस शोध का परिणाम प्रतिष्ठित पत्रिका अमरीकन केमिकल सोसायटी मैटीरियल लेटर्स में प्रकाशित किया गया है। इसके सह-लेखक आईआईटी मंडी के स्कूल ऑफ बेसिक साइंसेज के प्रो. छायन के नंदी और आईआईटी मंडी में उनके शोधार्थी आदित्य यादव तथा अमरीका स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ सिनसिनाटी के डा. किंगक्यांग, डा. झिकी त्यान, डा. जुआन ग्वो और डा.ज्याजे दियो शामिल हैं । लाइसोसोम जीवित कोशिका का एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। यह विभिन्न कोशिका प्रक्रियाओं में शामिल होता है तथा माइटोकोंड्रिया जैसे कोशिका तत्त्वों के साथ संवाद करता है। लाइसोसोम आक्रमणकारी वायरस और बैक्टिरिया को नष्ट कर देता है। अगर किसी कोशिका के नुकसान की भरपाई नहीं की जा सकती है तब लाइसोसोम उसे स्वयं नष्ट करने में मदद करता है। इस प्रकार इसे आत्महत्या की थैली कहा जाता है। लाइसोसोम के काम नहीं करने के कारण न्यूरोडिजेनेरेटिव डिसार्डर, प्रतिरोधी प्रणाली संबंधी डिसार्डर व कैंसर सहित विविध प्रकार के रोग उत्पन्न हो सकते हैं। आईआईटी मंडी के प्रो. छायन के नंदी ने कहा कि लाइसोसोम आकार में माइक्रोन या मिलीमीटर के हजारवें हिस्से के बराबर होता है। इसकी आंतरिक संरचना 200 नैनोमीटर एक माइक्रोन के हजारवें हिस्से के आर्डर में होता है। नियमित माइक्रोस्कोप से इस आकार के ढांचे के ब्यौरे का पता नहीं लगाया जा सकता है।

शोध में प्रदीपन माइक्रोस्कोपी का इस्तेमाल

आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं ने शोधकर्ताओं ने इस प्रक्रिया में ढांचागत प्रदीपन माइक्रोस्कोपी तकनीक का उपयोग किया, ताकि लाइसोसोम के अंतरिक ढांचे का पता लगाया जा सके। यह तकनीकी प्रकाश के ढांचागत स्वरूप और लगभग इन्फ्रारेड स्पेट्रोस्कोपी के हस्तक्षेप के पैटर्न के नमूनों के संदीपन पर आधारित है। ढांचागत प्रदीपन माइक्रोस्कोपी कोई नई तकनीक नहीं है लेकिन इस अंतर संस्थागत कार्य की विशेषता यह है कि इसमें लाइसोसोम के रंगों की बजाए धातु के नैनो तत्त्वों के झुंड का उपयोग किया गया है और इसके कारण तकनीक काफी बेहतर हुई है। वहीं, आईआईटी मंडी के शोधार्थी आदित्य यादव ने कहा कि हमने जैविक तत्त्वों के झुंड को जैविक रूप से अनुकूल प्रोटीन के साथ परिवर्तित किया, जिसे बोवाइप सिरम एल्बूमिन कहा जाता है और इनका उपयोग मस्तिष्क के आवरण में लाइसोसोम के परस्पर व्यवहार के तौर तरीकों पर नजर रखने के लिए किया। विशेष तौर पर हमने उस प्रक्रिया का अध्ययन किया जिसमें लाइसोसोम का पुनर्चक्रण कोशिका के भीतर माइटोकोंड्रिया को नुकसान पहुंचाता है।


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