चैतन्य, अचैतन्य और परम चैतन्य

By: Nov 17th, 2022 12:06 am

अब हम जान चुके हैं कि चैतन्य की ओर पहला कदम है जागरूकता। इसका अगला कदम रुचि है, यानी अपने आसपास की वस्तुओं तथा घटनाओं के प्रति जागरूक रहने तथा उनमें रुचि लेने का अभ्यास। इस समग्र प्रक्रिया से गुजर कर ही हम चेतन मस्तिष्क के मालिक हो सकते हैं और चेतनता से परम चैतन्य की यात्रा पर चल सकते हैं। जागरूकता, रुचि और अभ्यास वह मंत्र है जो हमारी सभी सफलताओं का कारक है। अत: हमें प्रयत्नपूर्वक जागरूकता, रुचि और अभ्यास करते रहना चाहिए ताकि हमारा मस्तिष्क चेतन बना रहे। निरंतर अभ्यास से सभी गुर सीखे जा सकते हैं। जीवन में हमारी सफलता का राज भी तो आखिर यही है…

हर रोज सडक़ों के किनारे, मैदानों के किनारे, खेतों और बागों में हम विभिन्न पेड़-पौधे देखते हैं। उनमें से कई फलदार भी होते हैं। पेड़ों से पके फल का टपकना हममें से कइयों ने कई-कई बार देखा होगा। पेड़ पर से फल टपकता देखकर हमारी पहली प्रतिक्रिया क्या होती है? बड़ा सीधा-सा उत्तर है। पेड़ से फल टपकता देख कर हम फल पकडऩे के लिए दौड़ पड़ते हैं। पर न्यूटन ने ऐसा नहीं किया। सेब के पेड़ से सेब टपकता देखकर वह उसे पकडऩे के लिए नहीं दौड़े बल्कि सोचने लग गए कि फल नीचे ही क्यों गिरा, ऊपर आसमान में क्यों नहीं उड़ गया? इसके बाद ही न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण के नियम की खोज की। गुरुत्वाकर्षण के नियम की खोज के पीछे क्या था? विचार कहां से उपजा? सेब गिरने की प्रक्रिया पर न्यूटन की प्रतिक्रिया ने ही उनसे वह महान कार्य करवा डाला और उन्हें विश्व के महानतम वैज्ञानिकों की श्रेणी में ला खड़ा किया। अब सवाल यह उठता है कि क्या उनसे पहले किसी ने सेब नीचे गिरता नहीं देखा था? क्या ऐसी कितनी ही घटनाएं हमारे जीवन में भी रोज ही नहीं होतीं? फिर भी हममें से कितने लोग इन अति साधारण दिखने वाली घटनाओं की ओर ध्यान देते हैं, और कितने लोग ऐसे हैं जो इनके आधार पर कोई आविष्कार कर डालते हैं? सेब गिरने की घटना पर न्यूटन की प्रतिक्रिया ही वह कारण बनी जिसने उनसे गुरुत्वाकर्षण के नियम की खोज करवा ली। अपने आसपास की घटनाओं के प्रति हम कितने जागरूक हैं और कितने चेतन हैं, इस पर हमारी सफलता और असफलता का दारोमदार रहता है। मानवीय उपलब्धियों की संभावनाएं असीम हैं।

लोगों ने ऐसे-ऐसे काम कर डाले हैं कि हम दांतों तले उंगली दबा लें। गिन्नीस बुक ऑफ वल्र्ड रिकाड्र्स मानव उपलब्धियों की उत्कृष्ट गाथा है। साधारण से साधारण लोगों के हैरतअंगेज कारनामे उनके विश्वास और दृढ़ निश्चय का ही परिणाम थे। पर उससे पहले किसी स्थिति विशेष पर उनकी प्रतिक्रिया ने ही उनसे वे कारनामे करवा लिए। प्रतिक्रिया क्या है? इसका मूल क्या है? प्रतिक्रिया का मूल है हमारा मस्तिष्क। चेतन मस्तिष्क उपयुक्त प्रतिक्रिया का जनक है। यह हमारे मस्तिष्क की चेतनता ही है जो हमें उन आवश्यकताओं को महसूस करने, उन पर मनन करने और उनका हल ढूंढने की प्रेरणा देती है। चेतन मस्तिष्क नई स्थितियों में हमें तुरंत सही आकलन देता है और तद्नुसार विश्लेषण, निष्कर्ष और प्रतिक्रिया से हम अपना मार्ग निर्धारित करते हैं। मस्तिष्क के चैतन्य का स्तर हमारी प्रतिक्रिया की गुणवत्ता निर्धारित करता है। किसी भी अन्य विद्या की तरह मस्तिष्क में चैतन्य का स्तर निरंतर अभ्यास और मेहनत से बढ़ाया जा सकता है। वैज्ञानिक मानते हैं कि आम आदमी जीवन भर अपने मस्तिष्क का दस प्रतिशत भाग भी प्रयोग में नहीं लाता। जीवन की समाप्ति के साथ ही व्यक्ति विशेष के मस्तिष्क की शेष सारी संभावनाएं समाप्त हो जाती हैं। परंतु यदि हम प्रयत्न करें तो मस्तिष्क की इन सुषुप्त शक्तियों को जगा सकते हैं। मस्तिष्क की शक्तियां असीमित हैं। बड़े से बड़ा वैज्ञानिक उपकरण भी पूर्णत: जागृत मस्तिष्क की बराबरी नहीं कर सकता। हमारे मस्तिष्क की क्षमताओं के प्रमाण के कई उदाहरण मौजूद हैं।

जापान में विद्यार्थियों को कैलकुलेटर के बिना सारी गणनाएं करने का सफल प्रशिक्षण दिया जाता है। योगियों द्वारा तथाकथित चमत्कार मात्र अभ्यास का परिणाम हैं। यह स्वयंसिद्ध है कि मस्तिष्क को भी प्रशिक्षित किया जा सकता है और इसे अचैतन्य से चैतन्य तथा चैतन्य से परम चैतन्य की अवस्थाओं में पहुंचाया जा सकता है जिससे हमारी प्रतिक्रिया की गति और गुणवत्ता में चामत्कारिक सुधार हो सकता है। आम आदमी का जीवन बेहोशी का-सा जीवन है। वह रोज एक बाजार से गुजरता है, पर अक्सर उसे मालूम नहीं होता कि किस दुकान के सामने पेड़ है। किसी अन्य व्यक्ति द्वारा बताए जाने पर दोबारा जब वह उसी बाजार से गुजरता है तो देखता है कि पेड़ सचमुच है। अक्सर हम अपने आसपास की चीजों के प्रति जागरूक नहीं होते, परिणामस्वरूप हम उनकी उपस्थिति से भी अनजान बने रहते हैं। जागरूकता ज्ञान की शुरुआत है। यदि हम जागरूक रहेंगे तो हमारे पास संबद्ध सूचनाएं रहेंगी। सूचनाओं का अभाव अज्ञानता का कारण है और सूचनाओं की प्रचुरता ज्ञान का स्रोत है। कुछ संयोगों की बात छोड़ दें तो यह स्पष्ट है कि जागरूकता सूचना का आधार है जो ज्ञान का मूल है। जागरूकता का अगला कदम है अपने आसपास की चीजों और घटनाओं में पर्याप्त रुचि। रुचि के अभाव में हम देखकर भी चीजों को अनदेखा कर देते हैं। हमारे सामने एक पेन पड़ा हो और यदि हमें उसमें रुचि हो तो हम उसे उठा कर ध्यान से देखेंगे। उसकी निब का निरीक्षण करेंगे, पेन के डिजाइन व उसकी लंबाई, मोटाई तथा अन्य स्वरूपगत विवरणों पर ध्यान देंगे।

लिखकर देखेंगे कि पेन कितना सुविधाजनक अथवा आरामदायक है, लिखते समय कितने दबाव की आवश्यकता होती है। लगातार लिखने से हाथ या उंगलियां थकते तो नहीं, आदि-आदि। और यदि हमें पेन में रुचि न हुई तो हम उसे सरसरी नजर से देखेंगे लेकिन उसकी किसी अन्य विशेषता पर हमारा ध्यान नहीं जाएगा। हम वस्तुत: उसे देख कर भी अनदेखा कर रहे हैं। ऐसे में हमारे मस्तिष्क में यह सूचना तो दर्ज हो जाएगी कि हमारे सामने एक पेन पड़ा है, पर उस पेन के बारे में अन्य कोई विवरण वहां दर्ज नहीं होगा। सूचना अपर्याप्त होने के कारण तथा उसमें आवश्यक रुचि के अभाव में मस्तिष्क में दर्ज यह सूचना धीरे-धीरे धूमिल हो जाएगी और फिर गायब हो जाएगी, जबकि यदि हम पेन में रुचि लें तो मस्तिष्क में न केवल पूरी सूचना दर्ज होगी बल्कि वह स्थायी भी होगी। कहा भी गया है- करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान! जड़ जैसी मति वाला व्यक्ति भी अभ्यास से किसी कार्य में पारंगत हो जाता है। अभ्यास से कौशल आता है। सैद्धांतिक जानकारी से वास्तविक ज्ञान नहीं आता। किताबें पढक़र तैरना नहीं सीखा जा सकता, तैरना सीखने के लिए पानी में कूदना ही पड़ेगा। पहली बार स्कूटर या कार चलाने वाला व्यक्ति सिद्धांतत: जानता है कि क्लच कैसे छोड़ें, गिअर कैसे बदलें, ब्रेक कब लगाएं, पर जब तक वह वाहन सडक़ पर लाकर वास्तविक अभ्यास नहीं करता, यह सारी जानकारी अपूर्ण है। अभ्यास के बिना कई बार तो यह जानकारी बेकार भी है। अब हम जान चुके हैं कि चैतन्य की ओर पहला कदम है जागरूकता। इसका अगला कदम रुचि है, यानी अपने आसपास की वस्तुओं तथा घटनाओं के प्रति जागरूक रहने तथा उनमें रुचि लेने का अभ्यास। इस समग्र प्रक्रिया से गुजर कर ही हम चेतन मस्तिष्क के मालिक हो सकते हैं और चेतनता से परम चैतन्य की यात्रा पर चल सकते हैं। जागरूकता, रुचि और अभ्यास वह मंत्र है जो हमारी सभी सफलताओं का कारक है। अत: हमें प्रयत्नपूर्वक जागरूकता, रुचि और अभ्यास करते रहना चाहिए ताकि हमारा मस्तिष्क चेतन बना रहे। निरंतर अभ्यास से सभी गुर सीखे जा सकते हैं। जीवन में हमारी सफलता का राज भी तो आखिर यही है।

पी. के. खुराना

राजनीतिक रणनीतिकार

ई-मेल: indiatotal.features@gmail.com


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