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HP Election: इस नजरिए से तय नहीं होते चुनाव नतीजे

By: Nov 17th, 2022 12:00 pm

राजेश मंढोत्रा — शिमला

शिमला। हिमाचल की राजनीति में कम या ज्यादा वोटिंग चुनाव नतीजे के आकलन का आधार नहीं है। यानी यहां वोटर के मन का दर्पण मत प्रतिशत कभी नहीं रहा। हिमाचल के विधानसभा चुनाव के इतिहास पर नजर डालें तो सिर्फ दो मौके ऐसे हैं, जब राज्य में 70 फ़ीसदी से कम मतदान किया है। 1982 के चुनावों में जब निर्वाचन आयोग का फोकस भी मतदान बढ़ाने पर नहीं होता था, तब भी हिमाचल के मतदाताओं ने 71 फ़ीसदी मतदान किया था।

सिर्फ 1977 और 1990 का चुनाव ऐसा है, जब 70 फ़ीसदी से नीचे वोटिंग हुई थी। सामान्य तौर पर यह माना जाता है कि ज्यादा वोटिंग सरकार के खिलाफ गुस्से के लिए है, लेकिन हिमाचल में इससे पहले यह धारणा भी गलत साबित हो चुकी है। 1993 और 1998 के चुनाव में दोनों बार वोटिंग करीब 71 फ़ीसदी रही और फिर भी राज्य की सत्ता बदल गई। हिमाचल में मत प्रतिशत में सबसे बड़ी वृद्धि का उदाहरण 1977 और 1982 के चुनाव में मिलता है, जब 1982 में 13 फ़ीसदी ज़्यादा वोट पड़ गए थे। एमर्जेंसी के बाद हुए चुनाव में भी सत्ता बदल गई थी।

2003 में तीन फ़ीसदी ज्यादा वोट पडऩे के कारण भाजपा सत्ता से बाहर गई थी और वीरभद्र सिंह मुख्यमंत्री बने थे, जबकि 2007 में तीन फ़ीसदी वोट कम पडऩे के बावजूद वीरभद्र सिंह की सत्ता चली गई थी और प्रेम कुमार धूमल फिर से सरकार में लौटे थे। वर्ष 2012 और 2017 में भी दो फ़ीसदी वोट ज्यादा पढऩे से सरकार में बदली थी और 2017 में जयराम ठाकुर को पहली बार मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला था। चुनावी इतिहास में जब वोट एक समान पड़े हैं, तब भी सत्ता बदल गई। इसलिए इस बार जब वोट प्रतिशत लगभग 2017 के बराबर है, कम से कम मतदान प्रतिशत से यह अंदाजा लगाना मुश्किल है कि अगली सरकार किसकी होगी? (एचडीएम)


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