शहरों में कम मतदान निराशाजनक

By: Dec 7th, 2022 12:05 am

चुनाव प्रक्रिया में 31 हजार के करीब अधिकारियों व कर्मचारियों ने अपनी कत्र्तव्यनिष्ठा से चुनाव प्रक्रिया को संपन्न करवाया । मीलों पैदल चल कर नाव से नदी पार कर अपने-अपने गंतव्य स्थल तक पहुंचे। यह सभी बधाई के पात्र हंै। यह सच है कि हिमाचल गांव में बसता है। गांव-गांव में सर्वाधिक मतदान हुआ और ग्रामीण जन ने उत्साह से लोकतंत्र को मजबूत करने का अपना फर्ज निभाया। शहरी क्षेत्र का परिदृश्य देखें तो हिमाचल की मूल राजधानी शिमला व दूसरी राजधानी धर्मशाला में मतदान प्रतिशतता 62.53 व 70.92 प्रतिशत आंकी गई। वहीं सोलन में 66.84, कुसुम्पट्टी में 68.29 व कुल्लू में 67.63 प्रतिशत आंकी गई। यह सभी क्षेत्र राज्य की पहचान व शान हैं। यहां सबसे पढ़े-लिखे व सुविधा संपन्न लोग रहते हैं। जागरूकता रैलियां निकाली गईं। मगर सब मानो व्यर्थ हो गया…

हिमाचल प्रदेश में आजकल कार्यालयों, ढाबों, रेस्तरां, कॉफी हाउस में बस एक ज्वलंत मुद्दे पर बहस होती सुनी जा सकती है। कौन सी पार्टी के सिर पर 8 दिसंबर को ताज सजेगा। कहीं आपसी बहस में कहीं हाथ लहराता है तो कहीं कमल खिलता है। झाड़ू, दराती, तारा व बागी भी गणित बिगाड़ते नजर आते हैं। ऐसे में बेचारा मतदाता क्या करे। सरकार बना व गिरा तो सकता है। 12 नवंबर को 14वीं विधानसभा की 68 सीटों के लिए मैदानों से सुदूर पहाड़ तक हुए चुनावों में मतदान प्रतिशत 75.6 प्रतिशत रहा। आजादी की 75वीं जयंती पर 75 फीसदी का आंकड़ा खुशी की बात है। स्वर्गीय श्याम शरण नेगी, जिन्हें देश का पहला मतदाता होने का गौरव मिला है, उनके जिला के क गांव में 112.5 प्रतिशत मतदान आंका गया। यहां स्थानीय लोगों के साथ-साथ चुनाव कर्मियों ने भी अपने मताधिकार का प्रयोग किया। अब 412 उम्मीदवारों का भाग्य कड़े पहरे के बीच ईवीएम में कैद है। चुनाव प्रक्रिया में 31 हजार के करीब अधिकारियों व कर्मचारियों ने अपनी कत्र्तव्यनिष्ठा से चुनाव प्रक्रिया को संपन्न करवाया । मीलों पैदल चल कर नाव से नदी पार कर अपने-अपने गंतव्य स्थल तक पहुंचे। यह सभी बधाई के पात्र हंै। यह सच है कि हिमाचल गांव में बसता है। गांव-गांव में सर्वाधिक मतदान हुआ और ग्रामीण जन ने उत्साह से लोकतंत्र को मजबूत करने का अपना फर्ज निभाया। शहरी क्षेत्र का परिदृश्य देखें तो हिमाचल की मूल राजधानी शिमला व दूसरी राजधानी धर्मशाला में मतदान प्रतिशतता 62.53 व 70.92 प्रतिशत आंकी गई। वहीं सोलन में 66.84, कुसुम्पट्टी में 68.29 व कुल्लू में 67.63 प्रतिशत आंकी गई। यह सभी क्षेत्र राज्य की पहचान व शान हैं।

यहां सबसे पढ़े-लिखे व सुविधा संपन्न लोग रहते हैं। चुनाव आयोग ने विगत 6 माह से इन क्षेत्रों में मतदान प्रतिशतता बढ़ाने के लिए स्वीप कार्यक्रम चलाया था। लाखों रुपए प्रचार-प्रसार पर व्यय किए। इन क्षेत्रों में बड़े.-बड़े होर्डिंग लगे, स्कूली बच्चों को जागरूक किया कि वे अपने परिजनों को मतदान करने के लिए प्रेरित कर सकें। जागरूकता रैलियां निकाली गई। सब मानो व्यर्थ। प्रश्न उठता है कि फिर भी यहां के पढ़े-लिखे जागरूक मतदाता मतदान करने के लिए खिली धूप में घरों की दहलीज क्यों नहीं लांघ पाए। मुख्यत: यह क्षेत्र उच्च अधिकारियो कर्मचारियों, रईसदार बहुल क्षेत्र है। पांच साल वह घर से दफ्तर व अपने कारोबारी स्थल तक सरकारी व निजी वाहनों में आते जाते थे। जमीन पर पैर रखना और जमीनी हकीकत को समझना, उन्हें नागवार लगता है। उनकी अर्धांगनियां हक से सरकारी वाहनों का उपयोग करती ह। बच्चे भी सरकारी गाडिय़ों से स्कूल आते-जाते हैं। इस व्यवस्था ने आमजन तथा उच्च वर्ग में अंतर पैदा किया है। ऐसी स्थिति में वह आमजन जो मतदान की लाइन में खड़ा होता उसके साथ अपना वोटर कार्ड, आधार कार्ड लेकर खड़ा कैसे हो सकता है। वह कहां पैदल चल मतदान केंद्र पहुंचता। उसका सारथी तो उस दिन लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए अपने गांव गया था। काश उसका सारथी (ड्राइवर) वहां होता और उन्हें परिवार सहित पोलिंग बूथ ले जाता। साहिब चलो आज मतदान करना है, गाड़ी बाहर खड़ी है। चुनाव आयोग को इस समस्या के समाधान के लिए प्रयत्न करने चाहिए। लोकतंत्र के इन प्रहरियों, जो नीति निर्धारक होते हैं और चार पहियों की सवारी करते हैं, के लिए भी 80 वर्ष से अधिक के मतदाताओं के लिए अपनाई गई पोस्टल बैलेट व्यवस्था लागू करनी चाहिए।

ऐसी जमात के लिए अलग से मॉडल पोलिंग बूथ की व्यवस्था करनी चाहिए। इन्ही उपायों से मतदान प्रतिशतता शहरी क्षेत्रों में बढ़ाई जा सकती है। अब सबकी नजर 8 दिसंबर को चुनाव परिणामों पर है। रिवाज बदलेगा या राज। एक बात गौरतलब है कि बड़े से छोटा अधिकारी अपने कार्यालय से बाहर लाल बत्ती जलाकर नई सरकार बनाने का पहाड़ा पढ़ रहा है। राज्य के उन सभी मतदाताओं जिनकी अंगुली पर निशान लगा है कि नई सरकार से अपील है कि वह सत्ता संभालने के बाद अपने अधिकारियों, कर्मचारियों की अंगुलियों की जांच आवश्य करवाएं कि वे लोकतंत्र के हितैषी हैं या विरोधी। हाल ही में हुए मतदान की प्रतिशतता से साफ जाहिर है कि गांव व शहर में अंतर बढ़ा है। राज्य की स्मार्ट सिटी शिमला व धर्मशाला, सोलन व कुल्लू में चौड़ी सडक़ें आधुनिक बाजार, श्रेष्ठ शिक्षा, 24 घंटे जल व बिजली, स्वास्थ्य जैसी सुविधाएं हैं, लेकिन लोकतंत्र की मजबूती के लिए उत्साह व उमंग नहीं है, वहीं गांव न आदर्श है, न स्मार्ट, जनसुविधाएं नाममात्र, स्कूल है तो अध्यापक नहीं, स्वास्थ्य संस्थान है तो चिकित्सक नहीं, सडक़ है तो पक्की नहीं, नल है तो जल नहीं, तारें है तो बिजली नहीं। जनसेवाएं तो कोसों दूर नजर आती हैं। इन सबके बावजूद मतदाताओं में लोकतंत्र के प्रति जोश व उत्साह नजर आता है। महाभारत युद्ध में कष्ण ने अर्जुन का सारथी बन अपना कत्र्तव्य निभाया था। काश आज के अर्जुन का सारथी ड्यूटी पर होता तो शहरी क्षेत्र में भी हम आजादी के 75वें वर्ष में 75 प्रतिशत के आंकड़े को छू पाते। कम मतदान होना निराशा पैदा करता है और इससे लोकतंत्र कमजोर होता है।

विनोद भारद्वाज

पूर्व संपादक, गिरिराज


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