पराली की समस्या का हरियाणवी समाधान

जहां हरियाणा लगातार पराली की समस्या से मुक्ति की ओर अग्रसर है, वहीं पंजाब की सरकार अभी भी इस मामले में न केवल असमर्थ रही है, बल्कि किसानों की मजबूरी का हवाला देते हुए, इस समस्या से मुंह भी मोड़ती दिखाई दे रही है। लेकिन हरियाणा का उदाहरण यह इंगित कर रहा है कि पराली जलाने की समस्या असाध्य नहीं है। जरूरत है, तो केवल राजनीतिक इच्छाशक्ति की। भारत के लोग हमेशा आपदा से अवसर तलाशने में माहिर होते हैं। हरियाणा के किसानों द्वारा इस पराली जलाने की घटनाओं में कमी के साथ-साथ उत्पादन में वृद्धि का भी अनुभव आ रहा है। उपयुक्त मशीनों के उपयोग के द्वारा उत्पादन में वृद्धि के साथ किसानों की आमदनी में भी वृद्धि हो रही है। अब किसानों को समझ आ गया है कि पराली को जलाए बिना भी इस समस्या का कम खर्चीला समाधान किया जा सकता है…

पंजाब और हरियाणा के किसानों द्वारा पराली जलाने की वजह से हालांकि दिल्ली और पड़ौसी क्षेत्रों हरियाणा और पंजाब की हवा अभी भी विषैली बनी हुई है, लेकिन एक अच्छी खबर यह है कि हरियाणा में इस बार पराली का जलना 26 प्रतिशत कम हुआ है, जबकि पंजाब के किसानों द्वारा पराली जलाने की प्रवृत्ति बदस्तूर जारी है। सेटेलाईट द्वारा लिये गये चित्रों और अन्य प्रकार से एकत्र की गई वैज्ञानिक जानकारियां इसी ओर इंगित कर रही हैं। वर्ष 2019 के नवंबर माह में सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश सरकार को लताड़ लगाई थी कि वे क्यों फसल अवशेष (पराली) को जलाये जाने को रोकने के लिए पर्याप्त उपाय नहीं अपना रहे? कोर्ट ने इन राज्य सरकारों को यह भी कहा था कि पराली नहीं जलाने हेतु किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए उन्हें प्रति क्विंटल फसल के लिए 100 रुपए की प्रोत्साहन राशि दी जाए। सुप्रीम कोर्ट की कितनी बात मानी गई, यह तो शोध का विषय हो सकता है, लेकिन इतना जरूर है कि इस साल अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी ‘नासा’ के अनुसार 23 अक्टूबर से 30 अक्टूबर के बीच हरियाणा राज्य में पराली जलाने की घटनाएं पंजाब की तुलना में काफी कम हुई हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के आंकड़ों के अनुसार 1 अक्टूबर से 3 नवंबर के बीच पंजाब में 29780 पराली जलाने की घटनाएं हुई, जबकि हरियाणा में यह मात्र 4414 ही थी। पर्यावरण प्रदूषण (बचाव एवं नियंत्रण) प्राधिकरण ने भी सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया है कि जहां हरियाणा ने पराली जलाने की घटनाओं पर खासा नियंत्रण कर लिया है, पंजाब की इस मामले में स्थिति बहुत खराब है। हरियाणा द्वारा पराली समस्या के नियंत्रण की खबर राहत देने वाली तो है, लेकिन महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि हरियाणा ने इस समस्या का निदान कैसे किया और पंजाब क्यों असफल रहा, उसी से यह समझ में आयेगा कि पंजाब के किसानों की पराली की समस्या का समाधान कैसे होगा?

तकनीकी प्रयास : हरियाणा सरकार ने इस साल ‘सुपर एसएमएस’, ‘रोटा वेटर’, ‘हैप्पी सीडर’ और ‘जीरो टिल सीड ड्रिल’ नाम की मशीनों का बड़ी संख्या में वितरण किया ताकि किसान पराली जलाने की प्रवृत्ति से बचें। पिछले साल जिन किसानों ने इन मशीनों का उपयोग किया था, उन्हें इससे खासा लाभ हुआ और उनकी पैदावार में भी वृद्धि हुई। इस अनुभव के चलते, अब और अधिक किसान इन मशीनों का उपयोग करने लगे हैं, हालांकि कुछ किसानों का मानना है कि इस मशीन के भारी किराये (2000 रुपए प्रति एकड़) के कारण वे इसका उपयोग नहीं कर पा रहे। लेकिन यह बात सही है कि इन मशीनों के बारे में किसानों को शिक्षित करने के सरकारी प्रयासों और किसानों में पराली के वैकल्पिक उपयोगों की बढ़ती जागरूकता के चलते हरियाणा में यह समस्या घटने लगी है।

नकद प्रोत्साहन : हरियाणा सरकार किसानों को कटाई उपरांत पराली को एकत्र करके उसकी गांठे बनाने हेतु प्रति हैक्टेयर 1000 रुपए की प्रोत्साहन राशि दे ही रही थी, अब 1000 रुपए प्रति हैक्टेयर की राशि खेत पर ही पराली प्रबंधन की राशि इस वर्ष से शुरू की गई है। राज्य सरकार सर्वाधिक प्रभावित पंचायतों को भी 10 लाख रुपए पराली न जलाने की प्रोत्साहन राशि के रूप में दे रही है। हर साल विभिन्न प्रकार की प्रोत्साहन राशि का बजट भी बढ़ता जा रहा है।

दंड का प्रावधान : केवल प्रोत्साहन ही नहीं, दंड का प्रावधान भी हरियाणा राज्य में देखा गया है। इस साल अक्टूबर के अंतिम सप्ताह तक पराली जलाने के खिलाफ 1041 चलान काटे गये, जिनमें 26 लाख रुपए का जुर्माना लगाया गया है। प्रोत्साहन, प्रौद्योगिकी, प्रयोग और दंड, सभी प्रकार के प्रयासों के चलते यह स्थिति बनी है कि जहां 2021 में अक्टूबर 26 तक पराली जलाने के 2010 मामले आये थे, इस वर्ष उस समय तक सिर्फ 1495 मामले की दर्ज हुए थे। यानि 26 प्रतिशत की कमी। यह सही है कि हरियाणा सरकार की दंड और प्रोत्साहन की नीति अभी कामयाब होती दिख रही है, लेकिन हरियाणा में पराली की समस्या का निदान इससे पहले इतना प्रभावी नहीं था। यदि आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि हरियाणा में 2021 से पहले इन घटनाओं में लगातार वृद्धि भी हो रही थी। लेकिन 2021 के बाद ही इन घटनाओं में कमी देखने को मिल रही है। इसका अभिप्राय यह हो सकता है कि हरियाणा सरकार अब इस समस्या को गंभीरता से ले रही है। लेकिन दूसरी ओर पंजाब, जो पूर्व में पराली की समस्या में हरियाणा से बेहतर काम कर रहा था, अब इस मामले में पिछड़ रहा है। गौरतलब है कि केंद्र सरकार द्वारा 7 अप्रैल 2022 को जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में 2021 में 82533 पराली जलाने के मामले दर्ज हुए जो 2020 से 7.7 प्रतिशत कम थे। इसमें सबसे बेहतर प्रदर्शन पंजाब का था, जहां 2020 में 83002 मामलों की तुलना में 2021 में केवल 71304 मामले ही दर्ज हुए। सेटेलाईट चित्रों के अनुसार इस दौरान हरियाणा में 2020 में 216 हजार हैक्टेयर की तुलना में 2021 में 354 हजार हेक्टेयर में जलती पराली दिखाई दी थी। इसी दौरान पंजाब में 16.6 लाख हैक्टेयर की तुलना में 15.9 लाख हैक्टेयर में ही पराली जलाई गई थी।

संभव है पराली जलाने से मुक्ति : जहां हरियाणा लगातार पराली की समस्या से मुक्ति की ओर अग्रसर है, वहीं पंजाब की सरकार अभी भी इस मामले में न केवल असमर्थ रही है, बल्कि किसानों की मजबूरी का हवाला देते हुए, इस समस्या से मुंह भी मोड़ती दिखाई दे रही है। लेकिन हरियाणा का उदाहरण यह इंगित कर रहा है कि पराली जलाने की समस्या असाध्य नहीं है। जरूरत है, तो केवल राजनीतिक इच्छाशक्ति की। भारत के लोग हमेशा आपदा से अवसर तलाशने में माहिर होते हैं। हरियाणा के किसानों द्वारा इस पराली जलाने की घटनाओं में कमी के साथ-साथ उत्पादन में वृद्धि का भी अनुभव आ रहा है। उपयुक्त मशीनों के उपयोग के द्वारा उत्पादन में वृद्धि के साथ किसानों की आमदनी में भी वृद्धि हो रही है। पहले किसानों द्वारा यह समझा जाता था कि पराली को जलाए बिना कोई उपाय नहीं है और इसका प्रबंधन खर्चीला होता है, लेकिन अब उन्हें समझ आने लगा है कि खेत में पराली के प्रबंधन से उनकी उर्वरकों, कीटनाशकों और खरपतवरनाशकों का खर्चा कम हो सकता है। पराली से चीनी और इथेनॉल का भी उत्पादन हो सकता है। पंजाब सरकार द्वारा कराए गए एक अध्ययन के अनुसार पराली प्रबंधन हेतु सरकारी सहयोग, समाज हित में उपयोगी रहेगा। न केवल किसानों को इस हेतु समर्थन दिया जाना चाहिए, बल्कि उनका प्रशिक्षण भी लाभकारी सिद्ध हो सकता है।

डा. अश्वनी महाजन

कालेज प्रोफेसर


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App