नई सरकार, नए आईने-11

By: Dec 2nd, 2022 12:05 am

हिमाचल में शिक्षा का वर्तमान स्वरूप रोजगारोन्मुख न होकर केवल सरकारी नौकरी का आवेदन पत्र बन कर रह गया है। इसी दौर में हमने हिमाचल को शिक्षा का हब बनाने की बातें सुनीं और धड़ाधड़ खुलते इंजीनियरिंग कालेज एवं निजी विश्वविद्यालय भी देखे, लेकिन आज की तारीख में यह शिक्षा कितनी प्रासंगिक बनी। अधिकांश शैक्षणिक संस्थान शिक्षा के खंडहर बन चुके हैं, जबकि सामान्य कालेजों में वही घिसा पिटा पाठ्यक्रम नए रोजगार के सरोकार ही पैदा नहीं कर पा रहा है। ऐसे में युवा पीढ़ी को काम करने लायक आत्मविश्वास और स्वरोजगार के अवसर ढूंढने और जोखिम उठाने की ताकत पैदा करने की जरूरत है, लेकिन शिक्षा परिसर व परिवार की परवरिश में केवल सरकारी नौकरी पर ही सारा दारोमदार अटका हुआ है। नतीजतन सरकारों की नीतियां सरकारी नौकरी का दरबार सजाती हुर्इं परोक्ष व अस्थायी पदों का सृजन करके हिमाचल में इसे भाग्य, राजनीति व संपर्कों का अखाड़ा बना रही हैं। हिमाचल में एक ऐसी स्वरोजगार नीति की जरूरत है जो शिक्षा का सारा तामझाम बदल दे। प्रतिस्पर्धा का ऐसा माहौल बने, जो स्टार्टअप व नवाचार की राहें प्रशस्त कर दे। यह स्कूली शिक्षा से उच्च शिक्षा के हर आयाम तक जरूरी है, लेकिन यहां बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ हो रहा है। गांव तक पहुंची शिक्षा को स्तरोन्नत करने के लिए मिडल स्कूल को जमा दो, जमा दो को कालेज या कालेज को स्नातकोत्तर बना देने से तो पूरा होगा नहीं। हम भले ही ताली पीट लें कि हमारे पास पंजाब से कहीं अधिक सरकारी कालेज, मेडिकल-इंजीनियरिंग कालेज व विश्वविद्यालय हैं, लेकिन क्या रोजगार की पूर्णता के लिए हमने कुछ किया।

आगे चलकर जब हर साल आठ सौ के करीब एमबीबीएस तैयार होंगे, तो इनके लिए हमारे पास रोजगार का समाधान क्या होगा। आश्चर्य यह कि आईटी क्षेत्र में सैकड़ों इंजीनियर पैदा करने के बावजूद हिमाचल एक भी आईटी पार्क स्थापित नहीं कर पाया। औद्योगिक गतिविधियां आगे बढ़ाकर भी हिमाचल का मानव संसाधन औद्योगिक मांग के काबिल न बन पाया, तो शिक्षा नीति के नियंता आखिर कर क्या रहे हैं। हिमाचल में एक कृषि विश्वविद्यालय, एक बागबानी विश्वविद्यालय तथा दो बागबानी कालेज होने के बावजूद वहां की पढ़ाई केवल सरकारी नौकर बनाने का पाठ्यक्रम ही साबित हो रहे हैं। अगर कायदे से पर्यटन में ही स्वरोजगार ढूंढ लेते, तो हाई-वे टूरिज्म, धार्मिक पर्यटन तथा लघु इकाइयों के जरिए ही कम से कम एक लाख युवा जीवन को सार्थक कर पाते। पूरे प्रदेश में एक दर्जन निवेश केंद्र, हर शहर में आधुनिक बाजार, वेंडिंग जोन, मनोरंजन परिसर तथा ट्रांसपोर्ट नगर बसाते तो भी एक लाख लोगों को स्वरोजगार के अवसर मिल पाते। इतना ही नहीं, हर स्नातक, स्नातकोत्तर, इंजीनियर तथा चिकित्सक डिग्री धारक के आधार पर तय करते कि इन्हें आगे बढऩे के लिए सरकारी नौकरी के अलावा कैसी अधोसंरचना दी जाए, तो निजी निवेश के मायने बदल जाते। उदाहरण के लिए प्रदेश की स्थानांतरण नीति के साथ सरकारी आवास सुनिश्चित करने की व्यवस्था का जिम्मा पढ़े लिखे नौजवानों को दें, तो ऐसा निजी निवेश परोक्ष रोजगार पैदा करेगा।

यानी हर गांव, कस्बे तथा शहरों में सरकारी आवास की मांग के अनुरूप वहां के डिग्री होल्डर बेरोजगारों को एक व्यवस्था के तहत सरकारी जमीन पर डिग्री के अनुसार पांच, दस या इससे अधिक संख्या में आवास निर्माण की सहूलियतें दी जाएं, ताकि किराए की शक्ल में वे अपनी आजीविका चला सकें। इसी तरह रोजगार नीति के तहत तमाम विभागीय डाक बंगलों का संचालन पढ़े लिखे युवाओं को दिया जाए ताकि वे इनका प्रबंधन करते हुए पर्यटन गतिविधियों को भी संबोधित करें और इस तरह अतिरिक्त लोगों को भी रोजगार उपलब्ध होगा। प्रदेश के जलशक्ति विभाग, जंगलात महकमा, भाषा-संस्कृति विभाग, विपणन बोर्ड, मत्स्य, बागबानी विभाग अगर अपने दायित्व में पर्यटन का ढांचा विकसित करके इन परिसरों का संचालन बेरोजगार युवाओं को दें, तो रोजगार के मायने बदल जाएंगे। इसी तरह हर स्कूल परिसर में एक से पांच दुकानों का निर्माण करके इनके माध्यम से छात्र जरूरतों-सुविधाओं की सामग्री की व्यापारिक गतिविधियों का संचालन डिग्री होल्डर से कराएं, तो स्वरोजगार के हजारों अवसर पैदा होंगे। हिमाचल फूड, फ्रूट, डेयरी तथा मत्स्य से संबंधी उत्पादों के विशेष जोन बनाकर स्वरोजगार को आमंत्रित कर सकता है। जिस दिन हिमाचल में स्वरोजगार का पक्ष सुदृढ़ और सार्थक होगा, सरकारों की अपनी योजनाओं का रुख भी बदल जाएगा।


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