नई सरकार, नए आईने-13

By: Dec 5th, 2022 12:05 am

हिमाचल में विकास केवल परिभाषा नहीं, राजनीतिक प्राथमिकताओं का ऐसा अखाड़ा है, जहां हिमाचल का भले ही कोई मॉडल न बने, लेकिन सत्ता की जोर आजमाइश में सरकारी खजाने की बंदरबांट जरूर है। जोर है तो एक ही विधानसभा क्षेत्र में दो उपमंडल, दो खंड विकास कार्यालय या तीन सरकारी कालेज भी स्थापित हो सकते हैं। इसलिए हिमाचल में इमारतें आपस में लड़ते-लड़ते अप्रासंगिक हो रही हैं या गैरजरूरी तौर पर भी खड़ी हो रही हैं। शहरी आवरण को प्रशासनिक ढांचे से खतरा पैदा हो रहा है, क्योंकि कार्यालय भवनों में अर्थहीन निर्माण या कार्यालय परिसर ही आवासीय परिसर हो गए हैं। यहां डाक बंगले सियासी तामझाम की उपलब्धि और विभागीय मंत्रियों की बपौती में उगते हैं या केंद्रीय योजनाओं की नुमाइश में आए हुए धन की आहुतियां दी जा रही हैं। राष्ट्रीय संस्थानों के परिसर सत्ता के सिपाही बन कर उगते हैं। शहरों से मत्स्य, पशु और कुक्कट पालन के बड़े कार्यालय चलते हैं, जबकि कृषि व बागबानी के प्रसार का काफिला भी शहरों में दुबका बैठा है। क्षेत्रीय व जोनल अस्पतालों में तयशुदा संख्या में विशेषज्ञ नहीं मिलते, जबकि एडजस्टमेंट में सर्जन, एमडी या दूसरे रोग विशेषज्ञ गांव की डिस्पेंसरी या किसी छोटे अस्पताल में पारिवारिक फर्ज निभाते मिलेंगे। प्रदेश के दस क्षेत्रीय व जोनल अस्पतालों को रोग विशेष का राज्य अस्पताल का दर्जा, सुविधाएं, अनुसंधान, उपकरण व अधोसंरचना से जोड़ दें, तो स्वास्थ्य सेवाएं राष्ट्रीय परिकल्पना के साथ-साथ मेडिकल टूरिज्म को भी आगे बढ़ा सकती हैं। इसी तरह प्रमुख दस-बारह कालेजों को किसी एक विषय की पढ़ाई का राज्य केंद्र बना दिया जाए, तो ये शिक्षा संस्थान करियर के उच्च संस्थान बन जाएंगे।

बहरहाल हम यहां संसाधनों की फिजूल खर्ची विशेषतौर पर भवनों के इस्तेमाल की व्यवस्था का जिक्र कर रहे हैं। सरकारी इमारतों की परिभाषा न तो राजधानी के स्तर पर मुकम्मल है और न ही जिला स्तर पर इनका सदुपयोग हो रहा है। हर योजना-परियोजना में नया भवन और ठेकेदारी का प्रबंध हो जाता है, जबकि सरकारी संपत्ति के बेहतर इस्तेमाल, विकास और देखरेख के लिए एक केंद्रीय व्यवस्था की जरूरत है। हिमाचल की विभागीय इमारतों की मिलकीयत की वारिस एक राज्य स्तरीय व्यवस्था यानी राज्य एस्टेट प्राधिकरण का गठन करके सारी संपत्तियों का अवलोकन व सर्वेक्षण करके सर्वप्रथम पता किया जाए कि कहां इनका गलत या क्षमता से कम इस्तेमाल और कहां भूमि के इस्तेमाल में फिजूलखर्ची हुई है। राज्य एस्टेट प्राधिकरण के तहत हर जिला में एस्टेट प्रबंधक की नियुक्ति से सरकारी कार्यालयों, आवासीय व्यवस्था के अलावा रेस्ट हाउस प्रबंधन की भी एक पद्धति विकसित होगी। प्रशासनिक शहरों की सरकारी संपत्तियों को लेकर मास्टर प्लान के तहत सरकारी आवासीय व्यवस्था को साथ लगते गांवों में कर्मचारी नगर बसा कर पूरा किया जा सकता है। कर्मचारी नगर दो-तीन शहरों के बीच केंद्रीय स्थल पर स्थापित करके शहरी भूमि का सदुपयोग तथा आवासीय व्यवस्था के स्थायी मानदंड तय हो सकते हैं। इसी तरह शहरों के बीच संयुक्त कार्यालय भवन, मिनी सचिवालय तथा संयुक्त डाक बंगला परिसर का निर्माण करके वर्तमान की अव्यवस्था से छुटकारा पाया जा सकता है। उदाहरण के लिए राजधानी शिमला में विभिन्न रेस्ट हाउस भवनों को अगर एक बड़ी छत के नीचे विकसित किया जाए, तो सौ कमरों वाला एक बड़ा परिसर तैयार हो पाएगा।

इसका प्रबंधन राज्य पर्यटन निगम के तहत हो या रेस्ट हाउस प्रबंधन का अलग से कॉडर भी गठित किया जा सकता है। शहरों के महत्त्व के अनुसार डाक बंगला परिसर पच्चीस, पचास या सौ कमरों के आधार पर विकसित करेंगे, तो इनका इस्तेमाल पर्यटन इकाइयों के रूप में भी हो सकेगा। इसके साथ पूलिंग के साथ सरकारी गाडिय़ों की व्यवस्था को आउटसॉर्स करें, तो हजारों लीटर पेट्रोल भी बच जाएगा। ऐसे में अब हिमाचल को अपने विकास की गुणवत्ता, सही इस्तेमाल की जरूरत तथा बहुआयामी दिशा का निर्धारण करना होगा, ताकि जो भी योजना या परियोजना बने उसकी प्रासंगिकता कम से कम आने वाले सौ सालों की चुनौती का सामना कर सके। – क्रमश:


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