बजट चुनावी कसौटी नहीं

By: Jan 30th, 2023 12:05 am

वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण संसद में बजट पेश करेंगी, तो वह कई आयामों से महत्त्वपूर्ण होगा। वह मोदी सरकार की ‘अग्नि-परीक्षा’ भी हो सकता है, क्योंकि इसी साल जम्मू-कश्मीर समेत 10 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। 2024 में 18वीं लोकसभा के लिए चुनाव होंगे। इस साल जहां चुनाव होने हैं, वहां से 83 सांसद चुनकर लोकसभा में आते हैं। बजट का फोकस किस पर रहेगा, किन वर्गों को ज्यादा संबोधित किया जाएगा, विकास के मद्देनजर बुनियादी ढांचे और रोजग़ार सृजन की कितनी प्राथमिकताएं रहेंगी, आयात-निर्यात के समीकरण कैसे होंगे और आम आदमी कितना खुशहाल और संतुष्ट होगा, यह बजट के बाद ही सामने आएगा, लेकिन बजटीय घोषणाओं पर ही आगामी जनादेश तय नहीं होंगे, यह हमारा अनुभव रहा है। गौरतलब यह भी है कि यह मोदी सरकार के मौजूदा कार्यकाल का अंतिम बजट होगा। 2024 में लोकसभा चुनाव से पहले सरकार लेखानुदान पारित करा सकती है।

आगामी पूर्ण बजट जुलाई, 2024 में ही संभव होगा। बेशक अब भारत करीब 3.6 ट्रिलियन डॉलर की दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। 2031 तक भारत का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) करीब 7.5 ट्रिलियन डॉलर का हो सकता है, ऐसा अंतरराष्ट्रीय आर्थिक रेटिंग एजेंसियों के आकलन हैं। भारत जापान को पार कर आगे बढ़ जाएगा और हमारे आर्थिक विकास की गति जर्मनी के बराबर होगी। अगले साल भारत दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी, 142 करोड़ से ज्यादा, वाला देश भी बन जाएगा। जाहिर है कि उसी अनुपात में वित्तीय जरूरतें, वस्तु और सेवाओं का विस्तार, बैंकिंग नेटवर्क का फैलाव और प्रति व्यक्ति आय आदि में भी बढ़ोतरी अपेक्षित होगी। भारत उपभोग, खपत और मांग का और विस्तृत बाज़ार बन जाएगा। भारत की अर्थव्यवस्था कितनी भी हो, लेकिन राष्ट्रीय बजट करीब 40 लाख करोड़ रुपए का होगा। क्या उसमें सभी वर्गों, समुदायों, समूहों आदि को संबोधित किया जा सकता है, यह यक्ष प्रश्न वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और खुद प्रधानमंत्री मोदी के सामने जरूर रहा होगा! संभव है कि बजट में आयकर की सीमा बढ़ा दी जाए। कुछ जरूरी चीजें सस्ती कर दी जाएं। बचत और ब्याज की कुछ योजनाएं घोषित कर दी जाएं। कभी बजट गांव, गरीब, किसान, कृषि सम्मत होता है, तो कभी महिलाओं के लिए विशेष घोषणाएं की जाती हैं। इस बार संभव है कि आदिवासी, ओबीसी, दलित, पसमांदा मुसलमान, छोटे-मझोले उद्योग आदि के मद्देनजर बजटीय प्रस्ताव रखे जाएं, क्योंकि ये समुदाय अब 35-44 फीसदी तक भाजपा को वोट देते हैं। ये भाजपा के नए और आश्वस्त वोट-बैंक हैं, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी का लक्ष्य अब 2047 में ‘विकसित भारत’ बनाने का है।

आगामी 25 सालों के दौरान देश की राजनीति के रंग क्या होंगे, उन समीकरणों में देश का प्रधानमंत्री कौन होगा और उस सरकार का ‘विजऩ’ क्या होगा, यह सब कुछ अनिश्चित है, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने 15 अगस्त पर लालकिले से देश को संबोधित करते हुए 2047 के लक्ष्य की घोषणा की थी। स्पष्ट है कि सरकार की जवाबदेही तात्कालिक नहीं है, उसे 2047 तक टाल दिया गया है। देश पर कजऱ् का भारी बोझ है, जिसके भुगतान में जीडीपी का करीब 70 फीसदी खर्च हो जाता है। हमारा जीडीपी कुल 258 लाख करोड़ रुपए का है। उसमें करीब 23 लाख करोड़ रुपए विभिन्न करों, उपकरों, उत्पाद शुल्क और जीएसटी आदि से संग्रह किया जाता है। यानी यह देश की नियमित आय है। औसतन खर्च 39.54 लाख करोड़ का है। यानी करीब 16 लाख करोड़ का घाटा हर साल उठाना पड़ता है। यह कोई सामान्य आंकड़ा नहीं है। सवाल यह है कि क्या चुनावी जनादेश बजट के आधार पर तय होते हैं? यदि इस सवाल को आधार बनाकर मूल्यांकन किया जाए, तो राजकोषीय घाटा, चालू खाता और व्यापार घाटा लगातार बढ़ रहे हैं।


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