गरीबों के सशक्तिकरण का अध्याय

देश में गरीबी, कुपोषण और भूख की चिंताएं कम करने के लिए इस क्षेत्र की ओर कारपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीआरआर) व्यय का प्रवाह बढ़ाकर भी बड़ी संख्या में लोगों को गरीबी तथा कुपोषण की पीड़ाओं से राहत दी जानी होगी। हम उम्मीद करें कि नए वर्ष 2023 में कोरोना के नए संक्रमण तथा वैश्विक मंदी की चुनौती के बीच केंद्र सरकार के द्वारा वर्ष 2023 में वर्ष भर राशन प्रणाली के तहत देश के गरीब व कमजोर वर्ग के 80 करोड़ से अधिक लोगों को मुफ्त अनाज दिए जाने का निर्णय गरीबों के कल्याण और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा। इससे कमजोर वर्ग के करोड़ों लोगों को महंगाई और मंदी की चुनौती से बचाते हुए गरीबी के नए दलदल में फंसने से बचाया जा सकेगा…

एक जनवरी से नए वर्ष 2023 में वर्षभर राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के तहत आने वाली देश की दो-तिहाई आबादी यानी करीब 81.35 करोड़ लोगों को राशन प्रणाली के तहत मुफ्त में अनाज देने की नई पहल दुनिया भर में रेखांकित की जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुताबिक सरकार ने 2023 में वर्षभर गरीबों की खाद्य सुरक्षा तथा आर्थिक सशक्तिकरण सुनिश्चित करने के लिए मुफ्त अनाज वितरण का निर्णय लिया है। गौरतलब है कि देश में राशन प्रणाली के तहत प्रत्येक सामान्य उपभोक्ता को हर महीने पांच किलो की दर से अनाज वितरित किया जाता है, जबकि अंत्योदय वर्ग के उपभोक्ताओं को अनाज की यह मात्रा सात किलो प्रति व्यक्ति होती है। यानी प्रत्येक सामान्य परिवार को 25 किलो और अंत्योदय वर्ग के परिवार को 35 किलो अनाज दिया जाता है। अब तक जहां तीन रुपए प्रति किलो की दर से चावल, दो रुपए प्रति किलो की दर से गेहूं और एक रुपए प्रति किलो की दर से मोटा अनाज दिया जाता है। अब राशन कार्डधारक उपभोक्ताओं को सस्ती दर की राशन दुकानों पर कोई भुगतान नहीं करना होगा। ज्ञातव्य है कि सरकार ने पिछले करीब ढाई वर्ष से चली आ रही प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) के तहत पांच किलो अतिरिक्त अनाज मुफ्त दिए जाने की योजना खत्म कर दी है। यद्यपि सरकार के इस निर्णय से केंद्र सरकार के खजाने पर दो लाख करोड़ रुपए का बोझ आएगा, लेकिन इस नई व्यवस्था से जहां गरीबों की खाद्य सुरक्षा निश्चित होगी, वहीं खाद्य सुरक्षा व गरीबी कल्याण योजना को एक किए जाने से सब्सिडी में बचत होगी। साथ ही खाद्यान्न भंडार में अतिरिक्त अनाज की मौजूदगी बाजार में खाद्यान्न की कीमतों को नियंत्रित करते हुए दिखाई दे सकेगी। उल्लेखनीय है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के साथ-साथ वैश्विक मंदी और अब चीन सहित दुनिया के कई देशों में कोहराम मचा रहे ओमिक्रान बीएफ.7 के कारण वैश्विक आपूर्ति में बाधाओं से गरीबों के कल्याण की चुनौती और बढ़ गई है। वैश्विक स्तर पर बढ़ती गरीबी पर प्रकाशित हो रही विभिन्न रिपोर्टों में कहा जा रहा है कि कोरोना काल के कारण निर्मित भारत में गरीबी, बेरोजगारी तथा मानव विकास सूचकांक में गिरावट का असर अभी भी बना हुआ है। वर्ष 2022 में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) के द्वारा प्रकाशित मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) में 189 देशों की सूची में भारत 132वें पायदान पर पाया गया है। पिछले वर्ष 2021 में प्रकाशित इस सूचकांक में भारत 131वें पायदान पर था। यद्यपि पिछले दशक में देश में जिस तेजी से गरीबी और भूख की चुनौती में कमी आ रही थी, उसे अकल्पनीय कोरोना संकट ने बुरी तरह प्रभावित किया है।

उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र के द्वारा प्रकाशित दि स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन दि वल्र्ड रिपोर्ट-2022 के अनुसार 2004 में भारत की 24 करोड़ आबादी कुपोषित थी, यह संख्या घटते हुए 2021 में 22.4 करोड़ पर पहुंच गई है। देश में मानव पूंजी के निर्माण में कोरोना महामारी ने जोखिम बढ़ाई है। यहां यह उल्लेखनीय है कि विगत 6 दिसंबर 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से यह सुनिश्चित करने को कहा था कि देश में कोई व्यक्ति भूखा नहीं सोए तथा केंद्र सरकार ने कोरोना महामारी के दौरान लोगों तक जिस तरह मुफ्त अनाज पहुंचाया है, वह व्यवस्था जारी रहनी चाहिए। निश्चित रूप से पूर्व में भी कोविड-19 के बीच गरीबों को महंगाई और भूख की चुनौती से बचाने के लिए भारत में अपनाई गई मुफ्त अनाज वितरण की प्रभावी पहल को दुनियाभर में रेखांकित किया गया है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के द्वारा प्रकाशित रिसर्च पेपर में कोविड की पहली लहर 2020-21 के प्रभावों को अध्ययन में शामिल करते हुए कहा गया है कि सरकार के द्वारा प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) के तहत मुफ्त खाद्यान्न कार्यक्रम से लॉकडाउन के प्रभावों तथा महंगाई की गरीबों पर मार कम हुई। डिजिटल हुई सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के माध्यम से गरीब लोगों की मुठ्ठियों में मुफ्त खाद्यान्न सौंपकर उनके चेहरों पर मुस्कुराहट दी जा सकी है। यह बात महत्त्वपूर्ण है कि देश में आम आदमी के कल्याण के लिए लागू की गई विभिन्न सरकारी योजनाएं मसलन पीएमजीकेवाई, सामुदायिक रसोई, वन नेशन वन राशन कार्ड, उज्ज्वला योजना, आयुष्मान भारत पोषण अभियान, समग्र शिक्षा जैसी योजनाएं प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से गरीबी के स्तर में कमी और स्वास्थ्य व भुखमरी की चुनौती को कम करने में सहायक रही हैं।

यदि हाल ही के वर्षों में सरकार के ऐसे विशिष्ट सफल अभियान नहीं होते तो देश में गरीबी, भूख, स्वास्थ्य के क्षेत्र की चुनौतियां और बढ़ी हुई दिखाई देती। निश्चित रूप से तेजी से बढ़ती खाद्यान्न कीमतों के मद्देनजर गरीबों को मुश्किलों से बचाने और खाद्य सुरक्षा की सुनिश्चितता हेतु अभी बहुत अधिक कारगर प्रयासों की जरूरत बनी हुई है। देश में बहुआयामी गरीबी, बेरोजगारी, भूख और कुपोषण खत्म करने के लिए सरकार के द्वारा घोषित नई जनकल्याण योजनाओं, स्वरोजगार योजनाओं, कौशल विकास, सार्वजनिक स्वास्थ्य, सामुदायिक रसोई व्यवस्था तथा पोषण अभियान-2 को पूरी तरह कारगर व सफल बनाया जाना होगा। मोटे अनाज का उत्पादन और वितरण बढ़ाकर देश में भूख और कुपोषण की चुनौती का सामना करके गरीबों की कार्यक्षमता बढ़ाना होगी। अब सार्वजनिक वितरण प्रणाली में गेहूं-चावल की बजाय मोटे अनाज दिए जाने से भूख और कुपोषण की चुनौती से मुकाबला किया जाना होगा। चूंकि खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के अनुसार भारत में उत्पादित लगभग 40 फीसदी भोजन हर साल बर्बाद हो जाता है, ऐसे में देश में भोजन की बर्बादी को बचाना होगा। देश में गरीबी, कुपोषण और भूख की चिंताएं कम करने के लिए इस क्षेत्र की ओर कारपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीआरआर) व्यय का प्रवाह बढ़ाकर भी बड़ी संख्या में लोगों को गरीबी तथा कुपोषण की पीड़ाओं से राहत दी जानी होगी। हम उम्मीद करें कि नए वर्ष 2023 में कोरोना के नए संक्रमण तथा वैश्विक मंदी की चुनौती के बीच केंद्र सरकार के द्वारा वर्ष 2023 में वर्ष भर राशन प्रणाली के तहत देश के गरीब व कमजोर वर्ग के 80 करोड़ से अधिक लोगों को मुफ्त अनाज दिए जाने का निर्णय गरीबों के कल्याण और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा। इससे कमजोर वर्ग के करोड़ों लोगों को महंगाई और मंदी की चुनौती से बचाते हुए गरीबी के नए दलदल में फंसने से बचाया जा सकेगा।

डा. जयंतीलाल भंडारी

विख्यात अर्थशास्त्री


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