मां दूनागिरि विराजती हैं वैष्णवी रूप में

By: Jan 28th, 2023 12:23 am

दूनागिरि का यह मंदिर उत्तराखंड की वैष्णो देवी शक्ति पीठ माना जाता है। दूनागिरि मंदिर समुद्र तल से आठ हजार फुट की ऊंचाई पर है। द्रोणगिरि पर्वतमाला की तलहटी पर सडक़ मार्ग से 365 सीढिय़ां चढक़र दूनागिरि मंदिर तक पहुंचा जाता है। दूनागिरि की सीढिय़ों के रास्ते में सैकड़ों घंटे लगे हुए है। मंदिर से हिमालय पर्वत माला का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है…

यह पौराणिक मंदिर अल्मोड़ा जिले के द्वाराहाट क्षेत्र से 15 किलोमीटर की दूरी पर द्रोण पर्वत की चोटी पर है। दूनागिरि मंदिर को ‘द्रोणगिरि’ के नाम से भी जाना जाता है। द्रोण पर्वत पांडव और कौरवों के गुरु द्रोणाचार्य का तप स्थल है, इसी कारण इस पर्वत माला का नाम द्रोणागिरि पड़ा था। दूनागिरि का यह मंदिर उत्तराखंड की वैष्णो देवी शक्ति पीठ माना जाता है। दूनागिरि मंदिर समुद्र तल से आठ हजार फुट की ऊंचाई पर है। द्रोणगिरि पर्वतमाला की तलहटी पर सडक़ मार्ग से 365 सीढिय़ां चढक़र दूनागिरि मंदिर तक पहुंचा जाता है। दूनागिरि की सीढिय़ों के रास्ते में सैकड़ों घंटे लगे हुए है। मंदिर से हिमालय पर्वत माला का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है।
प्राकृतिक छटा दूनागिरि मंदिर क्षेत्र में देखते ही बनती है जो तीर्थयात्रियों और पर्यटकों का मनमोह लेती है और उन्हें अपनी और आकर्षित करती हैं, इसलिए जो भी भक्त मां दूनागिरि के दर्शन के लिए जाता है, वह बार-बार यहां दर्शन करने आता है। मां भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण करती है। दूनागिरि मंदिर की विशेषता यह है कि यहां पर कोई मूर्ति नहीं है। मंदिर के गर्भगृह में प्राकृतिक रूप से निर्मित सिद्ध पिंडियां मां दूनागिरि के रूप में पूजी जाती हैं। मंदिर में अखंड ज्योति जलती रहती है। मां को सात्विक भोग लगाया जाता है और नारियल भी मंदिर परिसर में नहीं फोड़ा जाता है। लोक मान्यता है कि त्रेतायुग में राम रावण युद्ध में जब लक्ष्मण मेघनाथ के शक्ति बाण से मूर्छित हो गए थे, तब सुशेन वैद्य ने हनुमान से द्रोणाचल नाम के पर्वत से संजीवनी बूटी लाने को कहा था।

हनुमान पूरा द्रोणाचल पर्वत उठाकर ले जा रहे थे, तो यहां पर पर्वत का एक छोटा सा टुकड़ा गिरा और फिर उसके बाद इस स्थान में मां दूनागिरि का प्राकट्य हुआ और यह सिद्ध पीठ मां वैष्णवी के रूप में पूजी जाने लगीं। त्रेता कालीन इस सिद्धपीठ की पर्वतमाला में तब से अब तक कई तरह की जड़ी-बूटियां पाई जाती हैं। कत्यूरी शासक सुधारदेव ने 1318 ई. में मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था। हिमालय गजिटेरियन के मुताबिक दूनागिरि मंदिर होने का प्रमाण सन् 1181 शिलालेखों में मिलता है। वही पौराणिक दूनागिरि मंदिर के बारे में देवी पुराण में कहा गया है कि पांडवों ने अज्ञातवास के समय इस मंदिर में पूजा-अर्चना की थी और महाभारत के युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए मां दूनागिरि की दुर्गा के रूप में पूजा की थी। मां के आशीर्वाद से पांडवों ने युद्ध में विजय प्राप्त की और द्रौपदी के सतीत्व की रक्षा की।

स्कंदपुराण के मानसखंड द्रोणाद्रिमहात्म्य में दूनागिरि की महामाया, हरिप्रिया, दुर्गा के विभिन्न रूपों में पूजा की जाती है, जो प्रसन्न होकर भक्तों की मनोकामना पूर्ण करती हैं। दूनागिरि मंदिर में चैत्र और शारदीय नवरात्रों में विशेष अनुष्ठान किया जाता है। मां दूनागिरि एक सिद्ध पीठ है और यहां पर मां के साक्षात दर्शन होते हैं। और मां हर एक की मुराद पूरी करती हैं और यह पर्वतमाला क्षेत्र अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है। यहां पर आकर मन को शांति मिलती है। आत्म दर्शन का लाभ प्राप्त होता है। कुमाऊं के अलावा गढ़वाल उत्तर प्रदेश के बरेली मंडल और नेपाल से भी बड़ी तादाद में लोग मां दूनागिरि के दर्शन करने आते हैं। यह मंदिर उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के पर्वतीय और मैदानी क्षेत्रों के लोगों को जोडऩे वाला एक दिव्य मंदिर है।


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