लोगों ने मशालें जलाकर भगाई आसुरी ताकतें

By: Jan 17th, 2023 12:18 am

लाहुल के रंगलो वैली में रविवार आधी रात को धूमधाम से मनाया हालड़ा उत्सव

अशोक राणा-केलांग
लाहुल के रंगलो वैली के लोगों ने सदियों पुरानी परंपरा का निर्वहन करते हुए मशालों का त्योहार हालड़ा उत्सव धूमधाम से मनाया। देर रात ग्रामीणों ने आसुरी ताकतों को भगाने के लिए देवी दियार की लकड़ी से बने मशालों को घरों से जला कर बाहर निकाला। इन मशालों को गांव से दूर एक विशेष जगह पर पूरे गांव से निकाले गए मशालों को जलाया गया। हालड़ा के बाद इस इलाके में अब कुंसिल उत्सव शुरू हो गया है।

आज के दिन ग्रामीण न अजनबी से मुलाकात करते हैं और न ही किसी का नाम लेते हैं। सिस्सू पंचायत के अंतर्गत रंगलों घाटी में रोपसंग से तेलिंग तक दर्जनों गावों में रविवार देर रात हालड़ा पर्व धूमधाम से मनाया गया। सभी गांववासी देवलोक गए देवताओं का आह्वान करते देखे गए, ताकि पर्व का आगाज किया जा सके। इस अनुष्ठान में प्रत्येक घर से एक एक पुरुष पारंपरिक परिधान पहने अपने साथ मक्खन का टुकड़ा ले कर आए और सामूहिक रूप से उस मक्खन को भेडू का शक्ल दिया गया। जो लाहुल घाटी के आराध्य देव राजा घेपन को अर्पित किया जाता है। पुरुषों ने सफेद पगड़ी और चादर पहन कर इष्ट देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना की। लोगों ने 4 प्रकार का हालड़ा (मशाल)सद हालड़ा, जिदग हालड़ा, मी हालड़ा, और रामो हालड़ा निकाला। कुस किप्पो लजी यानी आनंदपूर्वक त्योहार मनाएं बोला कर त्योहार को मनाया गया । सद हालड़ा को देवता के स्थान, मी हालड़ा को नाले की तरफ भुगत के साथ थोश थोश पुकार कर फेंका गया, ताकि गांव की बुरी आत्माओं से रक्षा हो सके।। सबसे पहले राजा जिदग को तंदूर में, राजा बलि को कांसे की थाली में, तत्पश्चात घर के सदस्यों को पारंपरिक पकवान परोसा गया। हालड़ा के दूसरे सोमवार को घाटी में कुंसिल उत्सव आरंभ हो गया है। ग्रामीण कोई भी घरों से बाहर नहीं निकलते हैं और न ही किसी अजनबी से मुलाकात करते हैं। कुंसिल के बाद नमदोई, शशुम और खसेद फिर महादानी राजा बलि से बरदान मांगने के पश्चात बलराज को उतार दिया जाता है। (एचडीएम)


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