संसाधनों की हिफाजत

By: Jan 24th, 2023 12:06 am

सुक्खू सरकार के आगे बढऩे के सारे संकल्प रास्ते पिछली सरकारों की वित्तीय व्यवस्था से रू-ब-रू हैं। अब तक के इरादे कम से कम यह जाहिर कर रहे हैं कि जिस तरह शांता कुमार ने अपने विजन के साथ वित्तीय अनुशासन को अहमियत दी थी, उसी तरह मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू भी अपने खजाने की हिफाजत के साथ कुछ कर दिखाना चाहते हैं। इसी परिप्रेक्ष्य में अपने सहयोगी मंत्रियों से मुख्यमंत्री ने जहां राजस्व बढ़ाने के सुझाव मांगे हैं, वहीं विभागीय खर्च घटाने के रास्ते खोजने का भी निर्देश दिया है। जाहिर है राज्य की आय में बढ़ोतरी होनी चाहिए और इसके लिए सर्वप्रथम समाज को सरकार के साथ कुछ सख्त दिशाएं तय करते हुए सहमतियां बनानी होंगी। दूसरी ओर खर्च घटाने के लिए सरकार को घाटे के बोर्ड-निगमों के युक्तिकरण और उपयोगिता बढ़ाने के लिए निजी निवेश के अवसर बढ़ाने होंगे। उदाहरण के लिए हिमाचल सरकार एचआरटीसी में 350 नई बसें जोड़ रही है, तो एक बैठक निजी क्षेत्र में नई बसों की संभावना को लेकर भी होनी चाहिए और यह भी कि क्या भविष्य में प्राइवेट बसें भी इलेक्ट्रिक हो पाएंगी। नए निवेशक, होटल मालिक, बस आपरेटर, व्यापार मंडल तथा सेवा क्षेत्र के प्लेयर अगर आमंत्रित किए जाएं, तो कई बोर्ड-निगमों की प्रबंधकीय लाचारी या तो समाप्त की जा सकती है या अलाभकारी इकाइयों का विनिवेश सार्थक उद्देश्यों के साथ किया जा सकता है। राज्य में कई बस डिपो से कहीं बड़े फ्लीट का संचालन अगर निजी क्षेत्र कम से कम खर्चे में कर सकता है, तो क्या सार्वजनिक परिवहन इससे कुछ सीख लेगा। अगर एक दर्जन बस डिपो कम कर दिए जाएं, तो इस बचत की खुशहाली एचआरटीसी बस सेवा पर आएगी। बेशक सरकार ने कुछ कार्यालयों व संस्थानों को डिनोटिफाई करके ऐसे सख्त निर्णयों की शुरुआत की है, लेकिन ऐसे बहुत सारे निकम्मे, अप्रासंगिक तथा अनुपयोगी कार्यालय, स्कूल-कालेज या अस्पताल हैं जिन्हें बंद करके गुणात्मक रूप से जनता को सेवा प्रदान की जा सकती है। पूरे प्रदेश में पिछले कुछ दशकों से नए सरकारी भवन निर्माण की होड़ ने खजाने का दुरुपयोग तो किया, लेकिन इनमें से अधिकांश इमारतें लक्ष्य में हारती रहीं या फिजूलखर्ची के आलम में राजनीतिक ढोल ही पीटती रहीं। ऐसे कई पर्यटक सूचना केंद्र, पर्यटक इकाइयां या कार्यालय भवन मिल जाएंगे, जो बनने के बाद उद्देश्यहीनता में लावारिस हो गए। ऐसे में सरकारी संपत्तियों का ऑडिट जरूरी हो जाता है। इसी उद्देश्य को पूर्ण करना है तो ‘राज्य एस्टेट प्रबंधन अथारिटी’ का गठन करके तमाम भवनों का बेहतर इस्तेमाल तथा रखरखाव कर सकेंगे, वरना हर विभाग सरकारी धन का गलत इस्तेमाल करते हुए सरकारी कोठियों या दफ्तरी नखरों में इसे बर्बाद कर रहा है।

इसी तरह डाक बंगले अपनी उपयोगिता के बजाय अति गुपचुप तरीके से धन की बर्बादी कर रहे हैं। सहकारी और विशेष रूप से सहकारी बैंकों की कार्यप्रणाली को सुधारने की आवश्यकता है। सरकार को अपने तमाम विभागों में आपसी तालमेल बढ़ाने के लिए ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स के तहत काम करना चाहिए ताकि एक ही कार्य विभिन्न पद्धतियों में केवल धन को जाया न करे। इसी के साथ कलस्टर प्लानिंग की जरूरत है। पूरे प्रदेश में अगर विभिन्न शहरी आबादियों को मिलाकर देखें तो इन्हें एक कलस्टर के रूप में कम खर्चे पर बेहतरीन सेवा से नवाजा जा सकता है। दो-तीन शहर किसी केंद्रीय स्थल पर अंतरराज्यीय बस अड्डे को विस्तार दे सकते हैं, तो एक साथ अदालतें और कुछ महकमे काम कर सकते हैं। हिमाचल में भविष्य के शहरों को आमदनी तथा रोजगार बढ़ाने के प्रारूप में विकसित करें, तो इसके लिए निजी निवेश और निजी क्षेत्र को पार्टनर बनाना पड़ेगा। प्रदेश में शहरी व ग्रामीण कस्बों में अगर सौ के लगभग बस स्टैंड, बस स्टॉप, पार्किंग स्थलों का निर्माण निजी निवेश से किया जाए, तो यह सरकारी संसाधनों की हिफाजत करेगा। निजी अस्पताल व शिक्षण संस्थान अगर सहयोगी की भूमिका में आगे बढ़ाए जाएं, तो राजनीतिक फिजूलखर्चियां रुकेंगी। सरकार अगर सियासी महफिलों से किनारा कर ले, तो पूरी मशीनरी अपनी उपयोगिता बढ़ा सकती है। एक ईमानदार ट्रांसफर पॉलिसी व नियमावली पूरी कार्य संस्कृति में बदलाव ला सकती है। अगर चिकित्सा के दक्ष व विशेषज्ञ डाक्टर अपनी सुविधा के लिए बड़े अस्पतालों के बजाय ग्रामीण क्षेत्रों में केवल हाजिरी लगाएं, तो यह फिजूलखर्ची है। अगर केवल एडजस्टमेंट के लिए एक ही विषय के अध्यापक-प्राध्यापक, स्कूल-कालेजों से चस्पां रहें तो यह सार्वजनिक धन का उपहास ही होगा। ऐसे में पद्धतियां बदलने उतरी सुक्खू सरकार से यह अपेक्षा है कि सुशासन की तहजीब बदलने के लिए सख्त निर्देश, परिपाटी और मानिटरिंग व्यवस्था लागू करने की जरूरत कहीं अधिक है।


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