हिमाचल में खेल संस्कृति

By: Jan 25th, 2023 12:05 am

शिक्षा के दायरे बदलने की उत्कंठा दिखाती सुक्खू सरकार ने खेलों में युवा प्रतिभाओं को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया है। शिक्षा के साथ खेलों को वरीयता देने के रास्ते पर खेल स्कूल व खेल महाविद्यालय खोलने का संकल्प, निश्चित रूप से प्रतिभा चयन तथा युवा व्यक्तित्व में निखार ला सकता है। इससे पहले प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में सौ कनाल के क्षेत्रफल में डे बोर्डिंग स्कूल खोलने की घोषणा से शिक्षा का आधारभूत ढांचा, गुणवत्ता ढूंढ रहा है। इसी तरह खेल स्कूल व खेल महाविद्यालय पढ़ाई की मर्यादा में खेलों के उत्कृष्ट आधार को छू सकती है। हिमाचल में राज्य व भारतीय खेल प्राधिकरण के खेल छात्रावासों के माध्यम से न केवल पुरुष, बल्कि महिला खेलों में भी हिमाचल ने अपने झंडे गाड़े हैं। यह दीगर है कि अभी भी प्रतिभा चयन व उनको आगे बढ़ाने के लिए राज्य की प्राथमिकताएं पूरी तरह सामने नहीं आई हैं। ग्रामीण व पारंपरिक खेलों में भी गंभीरता से प्रयास नहीं हुए। क्रिकेट एसोसिएशन ने अपने तौर पर अधोसंरचना निर्माण, खेल प्रशिक्षण व विभिन्न प्रतियोगिताएं आयोजित करके जो दिशा दिखाई है, उसे अन्य खास तौर पर कुश्ती, वालीबाल, एथलेटिक्स, बैडमिंटन, साइकिलिंग, कबड्डी व फुटबाल जैसे खेल संघों को अपनाना चाहिए। प्रदेश के हर गांव का कोई न कोई मेला केवल सांस्कृतिक मेलजोल ही नहीं बढ़ाता, बल्कि छिंजों के आयोजन में कुश्ती के प्रति अनुराग है। सामाजिक तौर पर हर साल लाखों रुपए एकत्रित करके छिंजें तो आयोजित होती हैं, लेकिन इसका फायदा बाहरी पहलवान ही उठा पाते हैं। अत: कुश्ती के कुछ केंद्र बनाकर, अखाड़ों पर युवाओं को प्रशिक्षित किया जाए, तो हिमाचल इस दिशा में हरियाणा की तर्ज पर रंग जमा सकता है। कबड्डी में तो पहले से ही हिमाचली बेटियों ने अपनी धाक बना रखी है, जबकि एथलेटिक्स में भी आशाजनक परिणाम आ रहे हैं। निजी तौर पर हैंडबाल में बिलासपुर में जो प्रयास हुए उनके राष्ट्र पदक पहनकर हिमाचल गौरवान्वित होता है। ऐसे में केवल सरकारी खेल संस्थान ही नहीं, बल्कि देश की खेल अकादमियों के साथ मिलकर हिमाचल की आबोहवा के कारण यहां राष्ट्रीय स्तर के प्रशिक्षण की साझेदारी विकसित की जा सकती है।

हिमाचल के तमाम विश्वविद्यालयों को गुरु नानक देव विश्वविद्यालय की तर्ज पर खिलाड़ी पृष्ठभूमि के छात्रों पर शिक्षा और खेल प्रशिक्षण पर कार्य करना होगा। गुरु नानक देव विश्वविद्यालय अगर हर साल हिमाचल में अपने खिलाडिय़ों के समर कैंप, साइकिलिंग व जल क्रीड़ा प्रशिक्षण शिविर लगा सकता है, तो यह प्रदेश के विश्वविद्यालयों के लिए भी एक नसीहत है। हिमाचल को वर्तमान खेल छात्रावासों से संबद्ध स्कूल व कालेजों को विभिन्न खेलों के केंद्र के रूप में अधिमान देना होगा, जबकि मणिपुर की तर्ज पर ट्राइबल व दुरुह ग्रामीण क्षेत्रों में खेल संस्कृति को बढ़ावा देने की जरूरत है। इतना ही नहीं, पारंपरिक खेल मैदानों जैसे सुजानपुर, मंडी, चंबा, धर्मशाला, जयसिंहपुर, ऊना, रामपुर बुशहर, नाहन व सुंदरनगर में उपलब्ध ढांचे का संरक्षण करना होगा। अब समय आ गया है कि हर शहर में कम से कम चार सामुदायिक मैदान विकसित किए जाएं, जिनमें से एक केवल खेलों के लिए निर्धारित हो। यह इसलिए भी क्योंकि हिमाचल के वर्तमान खेल मैदानों का दुरुपयोग पार्किंग या व्यापारिक-सांस्कृतिक समारोहों के लिए होने लगा है। पुलिस मैदानों को युवा खेल प्रशिक्षण केंद्रों के रूप में सुदृढ़ करने के अलावा हिमाचल में खेल विकास प्राधिकरण के गठन की आवश्यकता को पूरा करके, एक प्रशासनिक ढांचा नेतृत्व करने तथा नई परियोजनाओं पर अमल करने का व्यावसायिक लक्ष्य पैदा करेगा। हिमाचल जैसे राज्य को अगर खेल राज्य की श्रेणी में अग्रणी होना है, तो एक बार राष्ट्रीय खेलों का आयोजन करना होगा। इसके तहत एक साथ कई जिलों का खेल ढांचा विकसित होगा और साथ ही जल क्रीड़ाओं के लिए मानव निर्मित पौंग, भाखड़ा व कोल बांध जैसी झीलें राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में ऐसी खेलों के लिए स्वाभाविक माहौल तैयार करेंगी। ओलंपिक खेलों के अलावा साहसिक खेलों, पैराग्लाइडिंग व स्कीईंग में हिमाचल ने काफी तरक्की की है और अगर इनके आयोजनों में निरंतरता व वार्षिक कल्पना के साथ कार्य हो, तो खेल पर्यटन की वैश्विक संभावना का दोहन हिमाचल की पहाडिय़ां, जल स्रोत व बर्फ की ढलानें कर पाएंगी।


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