छात्राओं का बढ़ता यौन उत्पीडऩ रोकें

छात्राओं का यौन उत्पीडऩ शिक्षा समाज में एक अत्यंत संवेदनशील मुद्दा है। इसे राज्य सरकारें कभी भी हल्के से न लें। क्यों न हमारे पत्रकार दोस्तों और सरकारों द्वारा यह पड़ताल की जाए कि राज्यों के स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी व कोचिंग सेंटर्स में छात्राओं की अस्मत की सुरक्षा के क्या उपाय किए गए हैं। कहीं पर छात्राओं के यौन उत्पीडऩ की घटना होने पर शिक्षा संस्थानों पर तुरंत वाजिब एक्शन लोकहित में होना चाहिए…

देश के अनेक राज्यों के शिक्षा संस्थानों मे छात्राओं का यौन शोषण चिंताजनक बनता जा रहा है। इसी संदर्भ में हाल ही में कोचिंग सेंटरों में यौन उत्पीडऩ की घटनाओं पर चिंता व्यक्त करते हुए राष्ट्रीय महिला आयोग ने सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को लिखा है कि सभी कोचिंग संस्थानों को छात्राओं के यौन उत्पीडऩ की रोकथाम के लिए प्रभावी क़दम उठाने के निर्देश दिए जाएं। एक रिपोर्ट के मुताबिक कोचिंग सेंटरों में यौन उत्पीडऩ की घटनाओं पर चिंता व्यक्त करते हुए आयोग ने सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को लिखा है कि वे कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीडऩ (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम 2013 और इसके तहत दिए गए दिशा-निर्देशों का सख्ती से अमल सुनिश्चित करने के लिए अधिकारियों को निर्देशित करें। आयोग ने कहा है कि हाल के सालों में कार्यस्थल पर यौन उत्पीडऩ दुनिया भर में महिलाओं को प्रभावित करने वाले सबसे बड़े मुद्दों में से एक बन गया है। आयोग कोचिंग/शैक्षणिक संस्थानों में यौन उत्पीडऩ की घटनाओं को लेकर चिंतित है। आयोग ने सभी हितधारकों के बीच कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीडऩ अधिनियम 2013 पर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करने के लिए संबंधित अधिकारियों को निर्देश देने के लिए भी कहा है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि काम की जगह पर यौन उत्पीडऩ के मामले जिम्मेदारी और प्रभावी ढंग से रिपोर्ट किए जा रहे हैं। आयोग ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से यह सुनिश्चित करने को भी कहा है कि ये कोचिंग सेंटर संबंधित प्राधिकरण में पंजीकृत हों और केंद्रों को चलाने के लिए जिम्मेदार लोगों की पृष्ठभूमि की जांच की गई हो। कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीडऩ (रोकथाम, संरक्षण और निवारण) विधेयक 2012 (संशोधित विधेयक) संसद द्वारा 2013 में पारित किया गया था। यौन उत्पीडऩ कानून संगठित और असंगठित क्षेत्रों सहित सभी क्षेत्रों पर लागू होता है। हमारी जानकारी के लिए, किसी भी कार्यस्थल पर कोई भी लालच देकर अनावश्यक रूप से दबाव बनाना भी यौन शोषण अपराध का हिस्सा होता है। कार्यस्थल पर अश्लील चित्र दिखाना, शरीर के यौन अंग पर टिप्पणी करना, यौन गतिविधियों की अफवाह फैलाना, सोशल मीडिया के माध्यम से किसी भी महिला के साथ अभद्रता या गाली गलौज करना भी यौन शोषण के अंतर्गत आता है। शिक्षा के मंदिर इसका अपवाद नहीं हो सकते हैं।

ऐसी घटनाओं की तुरंत रिपोर्टिंग की जरूरत होती है परन्तु छात्राओं द्वारा किन्हीं कारणों से इसको न बताने पर उनका शोषण बढ़ता जाता है। बेहतर है सरकारें छात्राओं से मिली इस जानकारी को गुप्त रख छद्म जांच करें और कार्रवाई करें। कुछ समय से देश के अनेक राज्यों में छात्राओं के यौन शोषण की घटनाओं में बढ़ोतरी से सामाजिक व्याकुलता बढ़ रही है। यौन शोषण का छात्राओं के दिमाग पर बुरा प्रभाव पड़ता है क्योंकि जिस मनुष्य का यौन शोषण हुआ होता है वह पूरी मानवता से नफरत करने लगता है। उसे हर व्यक्ति केवल शोषण करने वाला ही दिखता है क्योंकि यह उसकी मानसिकता बन जाती है जिसे आसानी से नहीं हटाया जा सकता है और उसके लिए बहुत सी तकलीफों का सामना भी करना होता है, जैसे कि वह यौन शोषण उसे बार-बार याद आते रहते हैं और उसको और ज्यादा मानसिक तकलीफ होती है जो उसके लिए बहुत कष्टदायक होती है, यह जिस तन लागे वोही जाने वाली स्थिति होती है। आज सिर्फ कोचिंग सेंटर ही नहीं, स्कूल-कॉलेज और यूनिवर्सिटीज में छात्राओं के यौन उत्पीडऩ की घटनाओं में लगातार वृद्धि देखी जा रही है। कुछ समय पहले एक छात्र ऑडिट के तहत दिल्ली विश्वविद्यालय के 24 कॉलेजों और विभागों में सर्वेक्षण किया गया। कुल 810 छात्र-छात्राओं ने सवालों के जवाब दिए। इसमें करीब 90 प्रतिशत महिलाएं और 10 प्रतिशत पुरुष थे। रिपोर्ट में कहा गया कि हर चार छात्राओं में से एक ने यौन उत्पीडऩ की शिकायत की। यौन उत्पीडऩ के 188 मामलों में 40 मामले शारीरिक उत्पीडऩ के थे। उत्पीडऩ के पांच में से एक मामला जबरदस्ती छूने या पकडऩे का था। उत्पीडऩ के प्रत्येक पांच मामलों में से एक सोशल मीडिया पर ट्रोल करने या कॉल या लिखित वॉट्सऐप मैसेजों के जरिए उत्पीडऩ का था।

जवाब देने वाले तकरीबन 80 प्रतिशत छात्र-छात्राओं ने परिसर में असुरक्षा के लिए विश्वविद्यालय या कॉलेज प्रशासन की ओर से कदम नहीं उठाने को जिम्मेदार ठहराया। ऐसा ऑडिट सरकारों की तरफ से सभी कॉलेजों में करवाया जाना चाहिए। सच बोलें तो सिर्फ छात्राएं ही नहीं, अमूमन सभी लड़कियों की लाइफ बहुत टफ होती है। उन्हें हर कदम पर न जाने कितनी गंदी नजऱों का सामना करना पड़ता है। हर कदम पर उन्हें खुद को सुरक्षित रखने की चिंता लगी रहती है। ऑफिस या स्कूल, कॉलेज या फिर यूनिवर्सिटी तो छोडि़ए, अब तो लड़कियां घर तक पर सेफ नहीं हैं। आए दिन पिता या भाई द्वारा भी रेप की खबरों से सोशल मीडिया भरा रहता है। ऐसे माहौल में आप भी समझ सकते हैं कि यौन उत्पीडऩ की वजह से लड़कियों के लिए जीना कितना मुश्किल हो गया है। कॉलेज की बात करें तो वहां पर भी लड़कियों को यहां तक कि तदर्थ महिला अध्यापकों को भी पक्की जॉब के लिए यौन उत्पीडऩ का शिकार होना पड़ता है। कई प्रशासनिक अधिकारी भी इसमें शामिल रहते हैं जो बेडरूम सिंड्रोम से पीडि़त होते हैं। यह एक न हजम होने वाली सच्चाई हो सकती है। छात्राओं के यौन शोषण को लेकर विदेश की स्थिति भी इससे अलग नहीं है। ब्रिटेन स्थित ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी का नाम पूरी दुनिया में सबसे प्रतिष्ठित संस्थानों में आता है लेकिन पिछले कुछ समय पहले की एक रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि यहां पर छात्राओं का यौन उत्पीडऩ सबसे ज्यादा होता है। कर्मचारियों द्वारा विद्यार्थियों का यौन उत्पीडऩ किया जाना ब्रिटिश विश्वविद्यालयों में महामारी के स्तर तक पहुंच चुका है। वहां की कई यूनिवर्सिटियों में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है जिससे कर्मचारियों को विद्यार्थियों पर यौन संबंध के लिए दबाव बनाने से रोका जा सके। इतना ही नहीं, ऐसा होने पर अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए भी पर्याप्त नियम नहीं हैं। बस इसी बात से आप जान सकते हैं कि जब दुनिया की टॉप यूनिवर्सिटी में लड़कियों और स्टूडेंट्स का ये हाल है तो फिर बाकी कॉलेजों में स्टूडेंट्स के साथ क्या हो रहा होगा। एक ज़माने में स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय को विद्या का मंदिर समझा जाता था और आज अपने देश में भी इनमें से कुछ की छवि इतनी ज्यादा धूमिल हो गई है कि अब इन्हें विद्या का मंदिर नहीं कहा जा सकता है। राज्य सरकारें ऐसे इंतजाम करें, ऐसे रिपोर्टिंग सिस्टम स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी को बनाने के लिए कहें जिससे छात्राओं के यौन शोषण के मामले दबे नहीं।

छात्राओं का यौन उत्पीडऩ शिक्षा समाज में एक अत्यंत संवेदनशील मुद्दा है। इसे राज्य सरकारें कभी भी हल्के से न लें, क्यों न हमारे पत्रकार दोस्तों और सरकारों द्वारा यह पड़ताल की जाए कि राज्यों के स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी और कोचिंग सेंटर्स में छात्राओं की अस्मत की सुरक्षा के क्या उपाय किए गए हैं। कहीं पर छात्राओं के यौन उत्पीडऩ की घटना होने पर शिक्षा संस्थानों पर तुरंत वाजिब एक्शन लोकहित में होना चाहिए। यह इसलिए भी जरूरी है ताकि छात्राओं की पढ़ाई-लिखाई को उत्साह देने के लिए उन्हें सुरक्षित अकादमिक माहौल दिया जा सके। छात्राओं के हॉस्टल उनके लिए कितने सुरक्षित हैं, यह वैरिफिकेशन जरूरी और तुरंत हो तो बेहतर है। छात्राओं को सुरक्षित करना ही होगा।

डा. वरिंदर भाटिया

कालेज प्रिंसीपल

ईमेल : hellobhatiaji@gmail.co


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