विमुद्रीकरण से देश को हुआ फायदा

स्वतंत्र भारत की संविधान निर्माण समिति के अध्यक्ष डॉ. भीमराव अंबेडकर ने भी नोटबंदी के पक्ष में विचार रखे थे। लगभग 99 वर्ष पूर्व डॉ. अंबेडकर ने अपने शोध ग्रंथ में यह लिखा था कि हर 10 साल में करेंसी को बदल दिया जाना चाहिए। उनका कहना था कि ऐसा करने से महंगाई और भ्रष्टाचार को रोका जा सकता है। नोटबंदी के कई फैसलों में से एक महत्त्वपूर्ण फायदा महंगाई पर अंकुश है। जाहिर है बड़ी मात्रा में करेंसी के रूप में काला धन कुछ चंद अमीरों के पास क्रय शक्ति को बढ़ाता है जिससे महंगाई बढ़ती है। नोटबंदी के बाद महंगाई में कमी भी देखी गई। दिसंबर 2016 से नवंबर 2022 के दौरान उपभोक्ता कीमत सूचकांक (उपभोक्ता महंगाई) में कुल मात्र 32.5 प्रतिशत की वृद्धि रिकार्ड की गई, जबकि इससे पूर्व के 6 वर्षों में यह वृद्धि 54.1 प्रतिशत थी। यानी कहा जा सकता है कि विमुद्रीकरण के बाद देश में महंगाई की दर में कमी आई। अब यह बात मान ली जानी चाहिए कि नोटबंदी से देश को कोई नुकसान नहीं हुआ…

सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार के नवंबर 2016 के 500 और 1000 रुपए के नोटों के विमुद्रीकरण के फैसले को वैध ठहराया है। माना जा रहा है कि नरेन्द्र मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले पर मुहर लगाने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले से नोटबंदी पर वर्षों से चल रहे विवाद पर पूर्ण विराम लग गया है। गौरतलब है कि विरोधी दलों सहित कई अर्थशास्त्री और समाजशास्त्री इस फैसले का विरोध कर रहे थे। उनका कहना था कि सरकार के इस फैसले से आम जनता को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा और साथ ही साथ इससे छोटा-मोटा व्यवसाय करने वालों को नोटबंदी के इस फैसले से भारी नुकसान हुआ और इससे उनके रोजगार पर भी भारी प्रभाव पड़ा। लेकिन दूसरी ओर देश में एक बड़ा वर्ग नोटबंदी के इस फैसले का स्वागत और समर्थन कर रहा था। सरकार के तर्कों में एक तर्क यह था कि नोटबंदी के इस फैसले से कालेधन पर आक्रमण होगा। हालांकि नोटबंदी के बाद देश में अधिकांश नकदी, नए नोटों में तब्दील हो गई, लेकिन यह भी सच है कि नोटबंदी के बाद नगदी जो कालेधन के रूप में कहीं न कहीं अनुपुयुक्त पड़ी थी, बैंकिंग व्यवस्था में शामिल हो गई और उसका देश के विकास में इस्तेमाल संभव हो सका। ध्यातव्य है कि योग गुरु बाबा रामदेव, सुब्रमण्यम स्वामी सहित कई महत्त्वपूर्ण लोगों द्वारा काले धन पर अंकुश हेतु 500 और 1000 रुपए के नोटों पर प्रतिबंध लगाने की मांग लंबे समय से की जा रही थी। यूं तो पिछली सरकारों द्वारा भी काले धन को मुख्यधारा में लाने हेतु काले धन को घोषित कर टैक्स जमा करने की कई स्कीमों की घोषणा की गई थी, लेकिन ऐसी अनेकों स्कीमों के बावजूद मात्र 125000 करोड़ रुपए के काले धन को ही बाहर लाया जा सका था।

कहा जा सकता है कि नगदी के रूप में पड़े काले धन को बाहर लाए जाने हेतु यह किसी भी सरकार का पहला बड़ा प्रयास था। प्रधानमंत्री ने इसे स्वच्छता पर्व, ईमानदारी पर्व, फाइट अगेंस्ट करप्शन इत्यादि का नाम दिया। यह भी सत्य है कि विपक्षी दलों के तमाम विरोधी बयानों के बावजूद आमजन ने विभिन्न कठिनाइयों का सामना करने के बावजूद नोटबंदी की इस मुहिम में जमकर साथ दिया था और आम आदमी काले धन के विरुद्ध इस लड़ाई में स्वयं को भागीदार मान रहा था। आम आदमी की मुश्किलों की बात करें तो हमें समझना होगा कि वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार 92 प्रतिषत गृहस्थों में किसी भी सदस्य की अधिकतम आय अर्जित करने वाले सदस्य की आमदनी 10000 रुपए मासिक से कम ही थी। ऐसे में उन कम आय वाले लोगों के पास 500 और 1000 रुपए के नोट बड़ी मात्रा होने की सम्भावना बहुत कम थी। यही नहीं तब तक बड़ी संख्या में (लगभग 32 करोड) जनधन खाते भी खुल चुके थे, जिसमें आसानी से पुराने नोट जमा किए जा सकते थे। इसलिए आम आदमी को इससे कोई नुकसान होने वाला नहीं था। सरकार द्वारा नोटबंदी से नकली नोटों के कहर से भी बड़े पैमाने पर छुटकारा मिला। पाकिस्तान और अन्य शत्रु देशों द्वारा बड़े पैमाने पर नकली करेंसी का चलन उनके स्थानीय सम्पर्कों के माध्यम से बढ़ता जा रहा था। इसके चलते आतंकवादस, नक्सलवाद, पत्थरबाजी समेत कई राष्ट्र विरोधी गतिविधियों को अंजाम दिया जा रहा था। ऐसा देखा गया कि नोटबंदी के बाद इन सभी राष्ट्र विरोधी गतिविधियों पर अंकुश लगा।

गौरतलब है कि करेंसी छापने की गुप्त विशेषताओं के लीक होने का भी मामला लगभग 10 साल पहले सामने आया था और आशंका यह भी थी कि इन विशेषताओं के अनुरूप छपी नकली करेंसी को पहचानने के रास्ते भी बंद हो चुके थे। स्वतंत्र भारत की संविधान निर्माण समिति के अध्यक्ष डॉ. भीमराव अंबेडकर ने भी नोटबंदी के पक्ष में विचार रखे थे। लगभग 99 वर्ष पूर्व डॉ. अंबेडकर ने अपने शोध ग्रंथ में यह लिखा था कि हर 10 साल में करेंसी को बदल दिया जाना चाहिए। उनका कहना था कि ऐसा करने से महंगाई और भ्रष्टाचार को रोका जा सकता है। नोटबंदी के कई फैसलों में से एक महत्त्वपूर्ण फायदा महंगाई पर अंकुश है। जाहिर है बड़ी मात्रा में करेंसी के रूप में काला धन कुछ चंद अमीरों के पास क्रय शक्ति को बढ़ाता है जिससे महंगाई बढ़ती है। नोटबंदी के बाद महंगाई में कमी भी देखी गई। दिसंबर 2016 से नवंबर 2022 के दौरान उपभोक्ता कीमत सूचकांक (उपभोक्ता महंगाई) में कुल मात्र 32.5 प्रतिशत की वृद्धि रिकार्ड की गई, जबकि इससे पूर्व के 6 वर्षों में यह वृद्धि 54.1 प्रतिशत थी। यानी कहा जा सकता है कि विमुद्रीकरण के बाद देश में महंगाई की दर में कमी आई। गरीबों को थोड़ी महंगाई भी भारी प्रभाव डालती है। फिर भी पिछले 1 साल से भी, जबकि अमेरिका और यूरोप में जहां महंगाई की महंगाई कभी देखी नहीं गई थी, की तुलना में भी भारत की महंगाई दर काफी कम रिकॉर्ड की जा रही है।

यानी डॉ. अंबेडकर की बात सही सिद्ध हो रही है कि विमुद्रीकरण महंगाई को रोकने का एक कारगर माध्यम हो सकता है। दुनिया में विमुद्रीकरण के कम ही उदाहरण देखने को मिलते हैं। माना जाता है कि विमुद्रीकरण एक कठिन एवं हिम्मत का काम है। सरकारें इसके फायदे समझते हुए भी सामान्यत: असफलता के डर से भी इस हेतु साहस नहीं जुटा पाती हैं। नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा इसे सफलतापूर्वक अंजाम तक पहुंचा देने और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भी इस फैसले पर मुहर लगा देने के बाद विमुद्रीकरण की बहस पर विराम तो लगा ही है, भविष्य में भी इस प्रकार के फैसले के लिए मार्ग खुल गया है। विमुद्रीकरण के साथ-साथ डिजिटल भुगतानों की ओर भी देश अग्रसर हुआ है और इस संबंध में काफी प्रगति भी हुई है। दुनिया के डिजिटल भुगतानान में 40 प्रतिशत आज भारत में होते हैं। ख़ास बात यह है कि अधिकांश डिजिटल भुगतान, यूपीआई इत्यादि नि:शुल्क होते हैं। इस कारण देश में लेन-देन की लागत में भारी कमी आई है और इससे व्यवसाय की सुविधा में भी खासी प्रगति हुई है। दुनिया के कई देश भारत के यूपीआई प्लेटफार्म को अपनाने हेतु लालायित हैं। भारत को विमुद्रीकरण की यह सबसे बड़ी देन है। अब नोटबंदी से देश को नुकसान की बातें नहीं होनी चाहिए। यह दुष्प्रचार अब बंद होना चाहिए।

डा. अश्वनी महाजन

कालेज प्रोफेसर


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