सफाई से पटाने का जमाना

By: Jan 28th, 2023 12:03 am

एक विज्ञापन मुझे पटाने लगा है। भक्तिशाली विज्ञापन में मॉडलिंग की हुड़दंगी फिल्मों के खलनायक ने, जिन्होंने हीरो से खूब झाड़ू और झाड़ खाई। झाड़ू बेचने वाली कम्पनी अनुभवी है। दिल चाहता है झाड़ू को झाड़ू न लिखकर झाड़ूजी लिखूं। अच्छी, प्रभावशाली चीजों के नाम के साथ जी लिखना और बोलना सभ्य संस्कृति है। विज्ञापन में मानवीय रिश्तों का विचार बुहारते हुए समझाया गया है कि यह ख़ास झाड़ू, साधारण झाड़ू से ज़्यादा चलेगा, बेहतरीन तरीके से सफाई करेगा। सफाई का स्तर ऊंचा रखते हुए, गुणवत्ता बनाए रखेगा। हाथों को सुरक्षित रखेगा। रहस्योद्घाटन किया कि इसका ग्रिप राजनीति की तरह मजबूत है क्योंकि उच्च स्तरीय घास से बनाया गया है। शायद इसका घास कुछ ख़ास जलवायु वाले क्षेत्रों में उगाया गया होगा, तभी लम्बे समय तक चलेगा। अलग से बताया गया है कि इसका हैंडल इतना मज़बूत है कि उसे और कामों में भी प्रयोग कर सकते हैं। पकडऩे में बेहद आसान है यानी पता नहीं चलेगा। संभवत: यह कई साल निकाल देगा यदि प्रयोग ही न करो, बस कभी कभी हाथ में थाम लो और चाहो तो सेल्फी ज़रूर लो।

विशेषता यह भी है कि इस कमाल झाड़ू से धूल कम उड़ेगी। यह तो नया आविष्कार हुआ। संभव है इसकी घास ऐसी गुण रखती हो, तभी हर सतह के लिए लाजवाब रहेगा। किसी भी मौसम में एक जैसे परिणाम देगा। एक खूबी और भी है, यह झाड़ू तीन तरह की पैकिंग में उपलब्ध है। मकान के फर्श के रंग और ढंग, उस पर लगी टाइलें या संगमरमर, आंगन की शक्ल के हिसाब से सिल्वर, डायमंड और गोल्डन शैली में पेश किया गया है। संभव है इन झाड़ूजी में से साफ करते हुए सुगंध भी आए। मनपसंद खुशबुओं में भी आने लगे। विकासजी की कितनी मेहरबानी हो रही है। एक जोड़ी दस्ताने भी ‘मुफ्त’ साथ होते तो हैंडल पर फिंगर प्रिंट्स भी न आते। पता न चलता सफाई पति ने की या पत्नी ने ही निबटाया। यह तारीफ लायक है कि इन तीन तरह के झाडुओं के हैंडल अलग-अलग रंग के हैं, पैकिंग तो अंतरराष्ट्रीय स्तर की है ही। दिलचस्प यह है कि पैकिंग का रुपए राष्ट्रीय खेल क्रिकेट के बल्ले जैसा बनाया गया है। बाज़ार या मॉल कहीं से भी लाओ तो निश्चय ही लगेगा कि क्रिकेट का बल्ला लाए हैं। वह अलग बात है कि घर आकर झाड़ूजी ही निकलेंगे। कुछ दिन तक क्रिकेट प्रभाव के लिए यूं ही रख सकते हैं। झाड़ूजी की जानकारी सीमित लगे तो अधिक जानकारी के लिए संपर्क नंबर दिए हैं। ऑनलाइन भी मंगा सकते हैं। जिन चीज़ों को समाज की बहुत ज़रूरत है उन्हें बढ़ावा देने के लिए विज्ञापन वार जारी है। इंसान की आंतरिक स्वच्छता के लिए हो रहे विज्ञापन भी तो बाहरी झाड़ू बनकर रह गए हैं। हैरान होने की बात नहीं है, अब ईमानदारी, इंसानियत, सद्भाव, प्रेम, सच, विश्वास सिर्फ बातों में ज्यादा रह गए हंै। बदलते वक्त ने हमारी समझ पर और हमने अपनी सोच पर विज्ञापन का प्रभावशाली झाड़ू फेर दिया है।

प्रभात कुमार

स्वतंत्र लेखक


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