अर्थव्यवस्था और स्वतंत्र विदेश नीति

आज जब बड़े विकसित देश अपनी सामरिक और आर्थिक शक्ति के बलबूते दूसरे मुल्कों पर शर्तें और प्रतिबंध लगाने की कोशिश में लगे हैं, भारत अपनी स्वतंत्र आर्थिक, सामरिक और विदेश नीति के आधार पर अपने हितों की रक्षा करने की इच्छाशक्ति के साथ आगे बढ़ रहा है। यही स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता हमारे विकास और समृद्धि का आधार बन सकती है…

आज जब भारत समेत पूरी दुनिया महंगाई की मार से पीडि़त है, अमरीका और यूरोपीय देशों के मुकाबले ही नहीं बल्कि अधिकांश देशों की तुलना में भारत में महंगाई की दर काफी कम बनी हुई है। गौरतलब है कि यूरोपीय समुदाय के देशों में दिसंबर माह में महंगाई की औसत दर 10.4 प्रतिशत बनी हुई थी, जिसमें हंगरी में 25 प्रतिशत, पोलैंड में 15.3 प्रतिशत, इटली में 12.3 प्रतिशत, नीदरलैंड में 11 प्रतिशत, आस्ट्रिया में 10.5 और पुर्तगाल में 9.8 प्रतिशत थी। उसी प्रकार अमरीका में महंगाई की दर अभी भी 6.5 प्रतिशत बनी हुई है, जबकि इससे पहले वो जून 2022 में 9 प्रतिशत तक पहुंच गई थी। इसी प्रकार दुनिया के अधिकांश मुल्क भीषण महंगाई की चपेट में हैं। दुनिया में बढ़ती इस महंगाई के पीछे तेल की बढ़ती कीमतें हैं। हालांकि अमरीकी अर्थव्यवस्था तेल की वैश्विक कीमतों से प्रभावित नहीं होती, तो भी अंतरराष्ट्रीय बाजार में महंगे तेल के कारण अमरीका में महंगाई बढ़ी है। यूरोप में ऊर्जा (यानी तेल, पेट्रोल इत्यादि) में महंगाई 40 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ी, इसके अलावा यूरोप में महंगाई बढऩे का दूसरा बड़ा कारण खाद्य पदार्थों की कीमतों में वृद्धि है। लेकिन भारत में मुद्रास्फीति जो पहले भी अमरीका और यूरोप से कम थी, दिसंबर माह में घटकर 5.72 प्रतिशत ही रह गई है। गौरतलब है कि पिछले कई महीनों से पेट्रोल, डीजल की कीमतें बढ़ नहीं रही हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि भारत रूस से सस्ते दामों में कच्चा तेल खरीद रहा है।

भारत द्वारा रूस से सस्ते दामों पर कच्चा तेल खरीदना बाजार के कारण नहीं, बल्कि भारत की स्वतंत्र विदेश नीति के कारण संभव हुआ है। आर्थिक सिद्धांतों के अनुसार महंगाई दर बढऩे का पहला असर ब्याज दरों पर पड़ता है। और ब्याज दरों में वृद्धि से आर्थिक संवृद्धि में बाधा आती है। रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद अमरीका और यूरोपीय देशों के द्वारा विभिन्न प्रकार के आर्थिक प्रतिबंध लगाने के बाद दुनिया के अधिकांश मुल्कों द्वारा रूस से तेल और गैस की खरीदी प्रभावित हो गई। अमरीका और यूरोपीय देशों ने यह शर्त लगा दी कि रूस से तेल और गैस खरीदने पर बैंकिंग चैनल अवरुद्ध कर दिया जाएगा और वे देश भुगतान नहीं कर पाएंगे। यही नहीं नवंबर में अमरीका और यूरोपीय देशों ने रूस द्वारा बेचे गए तेल की न्यूनतम कीमत की शर्त लगा दी और कहा कि किसी भी हालत में रूस दूसरे मुल्कों को उस न्यूनतम कीमत से सस्ता नहीं बेचने दिया जाएगा। अमरीका और यूरोपीय देशों का स्विफ़्ट भुगतान व्यवस्था पर एकाधिकार है और इसको वे एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करते हैं, लेकिन भारत ने अमरीका और यूरोपीय देशों के प्रतिबंधों को धत्ता दिखाते हुए यह कि वो रूस से तेल खरीदना जारी रखा। गौरतलब है कि भारत रूस से आज 33.28 डालर के डिस्कांउट पर तेल खरीद रहा है।

दिलचस्प बात यह है कि अमरीका के अगुवाई वाले जी-7 राष्ट्रों द्वारा लगाई गई न्यूनतम तेल कीमत यानि 60 डालर प्रति बैरल से ज्यादा कीमत पर ही भारत रूस से तेल खरीद रहा है। यानि जी-7 की यह शर्त भारत को रूस से तेल खरीदने से नहीं रोक पाएगी। यूरोपीय देशों ने जब यह प्रतिबंध लगाया कि रूस से तेल खरीदने की सूरत में पश्चिमी देशों की जहाजों और बीमा सेवाओं का उपयोग नहीं किया जा सकेगा, तो भारत ने कहा कि हम गैर पश्चिमी पोत सेवाओं से ही रूस से तेल मंगा लेंगे। जहां तक बैंकिंग चैनलों पर प्रतिबंध का सवाल है, भारत और रूस से आपसी लेन-देन स्विफ़्ट के उपयोग के बिना करने का तय किया। भारत और रूस में यह भी सहमति बन गई कि आगे चलकर भारत और रूस रुपए और रूबल में व्यापार कर सकेंगे। दिलचस्प बात यह है कि जहां तेल उत्पादक देश कच्चे तेल की कीमतों को ऊंचा रखने के लिए अपने उत्पादन में कटौती कर रहे हैं, रूस भारत सरीखे एशियाई देशों, जो अमरीका और यूरोप के प्रभाव में नहीं हैं, को तेल बेच रहा है। भारत ने स्पष्ट कहा है कि वो अपने राष्ट्रीय हितों को अहमियत देता है और इस कारण से वो रूस से कच्चा तेल खरीदना जारी रखेगा।

गौरतलब है कि भारत अप्रैल माह में युद्ध से पूर्व तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमत पर 35 डालर प्रति बैरल के हिसाब से डिस्काउंट पर कच्चा तेल खरीद रहा था। रूस द्वारा भारत को यह आकर्षण इसलिए दिया गया था क्योंकि उसे मालूम था कि केवल भारत ही रूस से तेल खरीद सकता है, क्योंकि वह एक स्वतंत्र विदेश नीति में विश्वास रखता है। हालांकि कई यूरोपीय देशों ने दोहरे मापदंड अपनाते हुए रूस से तेल खरीदना जारी रखा। उधर भारत और कुछ अन्य देशों को तेल बेचते हुए रूस का तेल का बाजार बना रहा। इसका असर यह हुआ कि जहां दुनिया के दूसरे मुल्क 100 डालर से भी महंगा तेल खरीद रहे थे, भारत 33 से 35 डालर के डिस्काउंट पर रूस से तेल खरीद रहा था। ध्यान देने वाली बात यह है कि 2021-22 में भारत का कुल तेल के आयात का बिल 119 अरब डालर था और युद्ध और अन्य कारणों से तेल की बढ़ती कीमतों के चलते इस साल यह बिल कहीं ज्यादा हो सकता था। लेकिन भारत द्वारा अमरीका और यूरोपीय देशों के प्रतिबंधों को दरकिनार करते हुए न केवल रूस से तेल खरीदना जारी रखा, बल्कि उसमें खासी वृद्धि भी की। भारत अपने कुल तेल जरूरतों का मात्र 0.2 प्रतिशत ही रूस से खरीदता था, नवंबर 2022 तक आते-आते यह खरीद 909403 बैरल पहुंच गई जो भारत की कुल तेल खरीद का 20 प्रतिशत से ज्यादा था। भारत से रूस का तेल का आयात लगातार बढ़ता ही जा रहा है। दिसंबर 7 को विदेश मंत्री जयशंकर ने राज्यसभा में स्पष्ट रूप से यह कहा कि भारत वहां से तेल खरीदेगा जहां से उसे सस्ता मिलेगा। विदेश मंत्री ने यह भी स्पष्ट रूप से कहा कि हम अपनी कंपनियों को रूस से तेल खरीदने के लिए बाध्य नहीं करते, लेकिन कंपनियां वहीं से खरीदेंगी जहां से उनको सबसे सस्ता मिलेगा। उधर यूरोपीय देश भारत की यह कहकर आलोचना करते हैं कि भारत रूस-यूक्रेन युद्ध में गलत का साथ दे रहा है, क्योंकि रूस ने यूक्रेन पर युद्ध किया हुआ है और यूरोपीय प्रतिबंध उसे सबक सिखाने के लिए हैं।

भारत का कहना है कि एक तरफ तो भारत कहीं से भी तेल खरीदने के लिए स्वतंत्र है क्योंकि उसे अपने हितों की सुरक्षा करनी है। यूरोपीय देशों को आईना दिखाते हुए भारत का कहना है कि वे स्वयं तो रूस से बड़ी मात्रा में तेल खरीद रहे हैं और भारत को रूस से तेल न खरीदने की शिक्षा दे रहे हैं। भारत के मंत्री हरदीप पुरी ने यूरोपीय देशों पर तंज कसते हुए कहा कि भारत पूरे महीने में इतना तेल रूस से नहीं खरीदता जितना वे (यूरोपीय देश) एक शाम को खरीद लेते हैं, यानि भारत को यूरोपीय देश नैतिक ज्ञान नहीं दे सकते। इससे पहले जब अमरीका ने ईरान पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए थे तो यह समझते हुए भी कि भारत को ईरान से तेल खऱीदने पर फायदा हो सकता है, अमरीका के दबाव में मनमोहन सिंह की अगुवाई वाली यूपीए सरकार की ईरान से तेल खऱीदने की ढुलमुल नीति रही और लम्बे समय तक भुगतान न करने के करण भी ईरान से तेल आयात बाधित रहा। अब नरेंद्र मोदी सरकार ने ईरान से तेल खरीद में इजाफा करने की ओर कदम बढ़ाया है। आज जब बड़े विकसित देश अपनी सामरिक और आर्थिक शक्ति के बलबूते दूसरे मुल्कों पर शर्तें और प्रतिबंध लगाने की कोशिश में लगे हैं, भारत अपनी स्वतंत्र आर्थिक, सामरिक और विदेश नीति के आधार पर अपने हितों की रक्षा करने की इच्छाशक्ति के साथ आगे बढ़ रहा है। यही स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता हमारे विकास और समृद्धि का आधार बन सकती है।

डा. अश्वनी महाजन

कालेज प्रोफेसर


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