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MANDI SHIVRATRI: जब एक के बाद एक काल का ग्रास बनने लगे थे राजा सूरजसेन के पुत्र

By: Feb 3rd, 2023 12:21 pm

अमन अग्निहोत्री—मंडी

शिवालय हिमालय के दामन में बसा हिमाचल प्रदेश शिवभूमि के रूप में विख्यात है। शिव यहां की लोक आस्था और परंपराओं से जुड़े लोकदेवता के रूप में मान्य हैं। हिमाचल के हृृदय स्थल में स्थित मंडी नगर का शिवरात्रि महापर्व विश्व विख्यात है। इस पर्व को अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव का दर्जा प्राप्त है। इस बार यह शिवरात्रि महोत्सव का विधिवत आगाज 19 फरवरी से होने जा रहा है। महोत्सव की पहली जलेब 19 फरवरी को निकलेगी, जिसमें प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू मुख्य अतिथि होंगे, जबकि महोत्सव का समापन 25 फरवरी को अंतिम जलेब के साथ होगा।

16वीं सदी से चला आ रहा महोत्सव का इतिहास


मंडी की शिवरात्रि अपने आप में विविधता लिए हुए है। शैवमत से प्रभावित इस पहाड़ी रियासत में शिवरात्रि महापर्व की शुरूआत को लेकर विद्वानों में मतैक्य नहीं है। 16वीं शताब्दी 1526 ई. में राजा अजबर सेन जब बटोहली से अपनी राजधानी ब्यास नदी के उस पार स्थापित की थी। संभवत इसी दौरान महाशिवरात्रि के पर्व का शुभारंभ हुआ। प्रारंभ में इसे दो दिन के लोकोत्सव के रूप में मनाया जाता रहा है, जिसमें मंडी जनपद के लोक देवताओं की भागीदारी रहती थी। मंडी शिवरात्रि को शैव के साथ-साथ वैष्णव और लोकवादी स्वरूप प्रदान करने का श्रेय राजा सूरज सेन को जाता है। सूरजसेन का शासन सन 1637-1664 ई. के दौरान रहा है। राजा सूरजसेन ने मंडी रियासत की सीमाओं के विस्तार में विशेष दिलचस्पी दिखाई, जिसके लिए युद्ध और कूटनीति दोनों का ही सहारा लिया। सूरज सेन की दस रानियां और अठारह पुत्र एवं एक पुत्री थी, मगर एक के बाद एक सभी बेटे काल का ग्रास होने पर राजा भयभीत हो उठा। उसे अपना राज्य छीन लिए जाने की आशंका सताने लगी, मगर उसने कूटनीति से काम लेते हुए अपना राज्य भगवान विष्णु के प्रतीक माधोराय को समर्पित कर दिया और स्वयं राज्य का संरक्षक बनकर राजकाज देखने लगा। मंडी के भीमा सुनार ने माधोराय की चांदी की प्रतिमा बनाई जो आज भी मौजूद है, जिसे पालकी में रखकर धूमधाम के साथ पड्डल मैदान तक ले जाया जाता है। इससे खुश होकर राजा ने उसे तुंगल में बहुत बड़ी जागीर दे डाली थी। सूरजसेन ने ही मंडी शिवरात्रि लोकोत्सव का रूप प्रदान करते हुए जनपद के देवी-देवताओं को मंडी नगर में आमंत्रित करने और एक सप्ताह तक मंडी नगर में मेहमान बनकर रखने की परंपरा भी डाली।
शैव-वैष्णव एवं लोक का समावेश


मंडी शिवरात्रि में शैव मत का प्रतिनिधत्व जहां मंडी नगर के अधिष्ठाता बाबा भूतनाथ करते हैं, तो वैष्णव का प्रतिनिधित्व राज देवता माधोराय और लोक देवताओं की अगवाई बड़ादेव कमरूनाग और देव पराशर करते हैं। इस लोकोत्सव में देवी देवताओं के साथ जनपद के लोगों की भागीदारी भी रहती थी, जो मंडी नगर में माधोराय के अलावा अपने राजा के दर्शन भी करते थे। इस बात की पुष्टि इस बात से भी होती है कि जब राजा सूरज सेन रानीताल कांगड़ा में हुए युद्ध से घायलवस्था में लौटकर भटकते हुए मंडी की चौहारघाटी के बरोट पहुंचे, तो एक बूढ़ी महिला ने रोते हुए कहा था कि उसकी शक्ल मंडी के राजा सूरज सेन से मिलती है। जो अब गुम हो गया या फिर लड़ाई में मारा गया है। राजा ने पूछा कि वह उसकी शक्ल कैसे पहचानती है, तो बुढिय़ा ने कहा कि उसने अपने राजा को मंडी की शिवरात्रि के दौरान देखा है। तब गांव वालों को पालकी पर बिठाकर मंडी नगर पहुंचाया था। सूरज सेन ने इसके बाद से चौहार क्षेत्र के लोगों की बेगार माफ कर दी थी। यहां के प्रमुख देवता हुरंग नारायण हैं। देवता हुरंग की अध्यक्षता में मंडी के राजा झटींगरी में अपनी अदालत लगाते थे। यह भी कहा जाता है कि मंडी शिवरात्रि मेला की शुरूआत राजा ईश्वरी सेन के समय में हुई। वह जब कई सालों बाद मंडी नगर में लौटे, तो उनके आने की खुशी में मेले का आयोजन किया गया।

शिवरात्रि महोत्सव में आते हैं तीन सौ से अधिक देवी-देवता


शिवरात्रि मेले के दौरान जनपद के देवी देवता राज देवता माधोराय के दरबार में हाजरी लगाते हैं। यह परंपरा भी सूरज सेन के जमाने से ही चली आ रही है, जबकि शिवरात्रि का शुभारंभ बाबा भूतनाथ और माधोराय के मंदिरों में पूजा-अर्चना के साथ होता है। इसमें सबसे पहले बड़ा देव कमरूनाग व अन्य चुनिदा देवी देवता मंडी नगर में पहुंचते है। इसके पश्चात ही शिवरात्रि के कारज शुरू होते हैं। शिवरात्रि महोत्सव में 300 से अधिक देवी-देवता पहुंचते हैं। जिनमें से 216 पंजीकृत देवी देवताओं को बकायदा प्रशासन निमंत्रण देकर बुलाता है। यह देवी देवता प्रशासन व लोगों के मेहमान होते हैं।

शिवरात्रि महोत्सव में निकलती हैं तीन शाही जलेब


अंतरराष्ट्रीय मंडी महाशिवरात्रि महोत्सव के मेलों का शुभारंभ राजदेवता माधोराय की शाही जलेब से होता है। जलेब यानी शोभायात्रा, जिसमें प्रदेश के मुख्यमंत्री शिरकत करते हैं। अगर किसी कारणवश मुख्यमंत्री न आ सके तोमहामहिम राज्यपाल हिमाचल प्रदेश मेले का शुभारंभ करते हैं। माधवराय के दरबार में पूजा-अर्चना करने के बाद जलेब रवाना होती है, जिसमें सबसे पहले रसाले पुलिस के घुड़ सवार, होमगार्ड जवान ध्वज सहित, होमगार्ड बैंड, पुलिस की टुकड़ी, देवताओं के ध्वज, देवताओं के बीस रथ वाद्ययंत्रों सहित शामिल होते हैं। राज माधवराय के बजंतरी, ध्वज माधवराय की चांदी की कुर्सी, श्री माधवराय की चांदी की छडिय़ां, चांदी सूरज पंखेए छत्र और राज देवता माधवराय की पालकी, जिसमें भीमा सुनार द्वारा बनाई गई माधोराय की चांदी की मूर्ति विराजमान रहती है। इस जलेब को देखने के लिए हजारों की भीड़ उमड़ती है। तीन दिन बाद शिवरात्रि महोत्सव की मध्य जलेब निकली है और फिर समापन सातवें दिन अंतिम जलेब निकलती है, जिसके बाद देवी-देवता अपने धाम व मंदिरों को रवाना हो जाते हैं। इससे पहले देवी देवता चौहटा परिसर में विराजमान होते हैं और लोगों को आर्शीवाद देते हैं। यहां हजारों की संख्या में लोग देवी देवताओं को नमन करने के लिए आते हैं।


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