गांव और मध्यम वर्ग का बजट

पिछले कुछ समय से सरकार का जोर पर्यटन पर है। इस बजट में कनैक्टिविटी बढ़ाने के साथ-साथ इस क्षेत्र में स्वरोजगार, कौशल निर्माण समेत कई प्रावधान बजट में हैं। हालांकि अपेक्षा की जा रही थी कि इस बजट में मैन्युफैक्चरिंग पर ज़ोर रहेगा, बजट में उसके लिए कोई विशेष प्रावधान नहीं दिख रहे। आज देश चीन से भारी आयातों और उस कारण बढ़ते व्यापार घाटे की त्रासदी से गुजर रहा है। उससे बचने का कोई ख़ास उपाय इस बजट में नहीं दिखता है। 2022-23 वर्ष के संशोधित अनुमानों के अनुसार कुल खर्च लगभग 42 लाख करोड़ रुपए रहेगा। उसकी तुलना में इस साल लगभग 45 लाख करोड़ रुपए का प्रावधान रखा गया है, यानी मात्र 7 प्रतिशत की वृद्धि। शायद राजकोषीय घाटे को 5.9 प्रतिशत तक सीमित करने के उद्देश्य से खर्च को सीमित किया गया है…

अमृत काल का पहला और मोदी सरकार-2 का आखिरी संपूर्ण बजट वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने 1 फरवरी 2023 को संसद के समक्ष प्रस्तुत किया। उम्मीद के मुताबिक मध्यम वर्ग के लिए आयकर (नई कर प्रणाली में) घटाया गया है, जिसका कुल राजस्व पर असर 37 हजार करोड़ रुपए होगा। गौरतलब है कि नई आयकर प्रणाली से आयकर रिटर्न भरना आसान हो जाएगा, लेकिन इसका आयकर दाताओं द्वारा की जा रही बचत पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। आज के दौर में जहां जीएसटी बजट की परिधि से बाहर हो चुका है, कारपोरेट टैक्स में भी कोई खास कमी या वृद्धि की संभावना नहीं है, लेकिन आर्थिक विश्लेषकों की नजर सरकारी खर्च के आवंटन पर ज़्यादा होती है। वास्तव में सरकारी खर्च का आवंटन ही सरकार की नीतियों का दर्पण है। उस दृष्टि से विचार करें तो ध्यान में आता है कि इस बार के बजट में सरकार का ध्यान इंफ्रास्ट्रक्चर, ग्रामीण विकास, पर्यावरणीय अनुकूल ग्रोथ, शिक्षा, डिजिटलीकरण पर ज्यादा दिखाई देता है।
कृषि एवं ग्रामीण विकास
मोटे अनाजों को प्रोत्साहन, कृषि ऋण, मत्स्य पालन, सहकारिता इत्यादि इस बजट के प्रमुख आकर्षण हैं। बहुआयामी प्राथमिक कृषि ऋण सहकारी समितियों को बढ़ावा देते हुए डेयरी, मत्स्य क्षेत्र को बढ़ावा देने की बात बजट में शामिल है। कृषि ऋण का लक्ष्य बढ़ाकर 20 लाख करोड़ रखा गया है। यह सभी कृषि एवं सहायक गतिविधियों को बढ़ावा देगा। ग्रामीण क्षेत्रों को आकांक्षी जिला और नई घोषणा के अनुसार आकांक्षी ब्लॉक योजना से भी ग्रामीण विकास को मदद मिलेगी। सूखाग्रस्त क्षेत्रों के लिए जल की व्यवस्था का लाभ भी कृषि को मिलेगा।
पंूजीगत व्यय
पिछले वर्ष के संकल्प को आगे बढ़ाते हुए पूंजीगत व्यय का हिस्सा बजट में 13.7 लाख करोड़ रुपए कर दिया गया है, जो जीडीपी का 4.5 प्रतिशत है। इसका लाभ इंफ्रास्ट्रक्चर समेत अन्यान्य प्रकार के क्षेत्रों को मिलेगा। 2.40 लाख करोड़ रुपए का पूंजीगत व्यय रेलवे के लिए, 7500 करोड़ रुपए लॉजिस्टिक्स समेत विभिन्न प्रकार के पूंजीगत व्यय (कैपेक्स) का प्रावधान इस बजट को खास बनाता है। इतना पूंजीगत व्यय, मात्रा की दृष्टि से ही नहीं, जीडीपी के प्रतिशत के रूप में भी एक रिकार्ड है।
ग्रीन ग्रोथ
ग्रीन ग्रोथ पर जोर इस बजट की खास बातें हैं। ग्रीन हाइड्रोजन मिशन, नवीकरणीय ऊर्जा, गोबरधन, ग्रीन क्रेडिट आदि प्रावधान, भारत के 2070 तक जीरो नेट के संकल्प के संकेत माने जा सकते हैं।
पर्यटन
पिछले कुछ समय से सरकार का जोर पर्यटन पर है। इस बजट में कनैक्टिविटी बढ़ाने के साथ-साथ इस क्षेत्र में स्वरोजगार, कौशल निर्माण समेत कई प्रावधान बजट में हैं। हालांकि अपेक्षा की जा रही थी कि इस बजट में मैन्युफैक्चरिंग पर ज़ोर रहेगा, बजट में उसके लिए कोई विशेष प्रावधान नहीं दिख रहे। आज देश चीन से भारी आयातों और उस कारण बढ़ते व्यापार घाटे की त्रासदी से गुजर रहा है। उससे बचने का कोई ख़ास उपाय इस बजट में नहीं दिखता है। 2022-23 वर्ष के संशोधित अनुमानों के अनुसार कुल खर्च लगभग 42 लाख करोड़ रुपए रहेगा। उसकी तुलना में इस साल लगभग 45 लाख करोड़ रुपए का प्रावधान रखा गया है, यानी मात्र 7 प्रतिशत की वृद्धि। शायद राजकोषीय घाटे को 5.9 प्रतिशत तक सीमित करने के उद्देश्य से खर्च को सीमित किया गया है। लेकिन अच्छी बात यह है कि पूंजीगत व्यय में कटौती की बजाय वृद्धि ही हुई है। फिलहाल बजट से देश के नौकरीपेशा, मेहनतकश और मध्यम वर्ग गदगद हो सकते हैं। उसका विश्लेषण आगे करेंगे, लेकिन भारत की अर्थव्यवस्था की हकीकत ‘आर्थिक सर्वेक्षण’ और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के आकलन से स्पष्ट है कि 2023-24 में जीडीपी की विकास दर 6-6.8 फीसदी के बीच रहेगी।

आईएमएफ ने भी हमारी विकास दर 6.1 फीसदी आंकते हुए आकलन किया है कि भारत विश्व में सबसे तेज़ बढ़ती अर्थव्यवस्था होगी। ‘आर्थिक सर्वेक्षण’ में चालू वित्त वर्ष की विकास दर 7 फीसदी अनुमानित है। अर्थशास्त्रियों के विश्लेषण हैं कि यदि बीते चार साल का हिसाब देखा जाए, तो जीडीपी में बढ़ोतरी 3.2 फीसदी सालाना की दर से हुई है। चिंतित तथ्य यह है कि 2019-20 में, कोरोना महामारी से पहले, भी विकास दर 3.7 फीसदी थी। बजट को समझने से पहले यह जानना अनिवार्य है कि महंगाई दर 6.8 फीसदी और बेरोजग़ारी दर 7.2 फीसदी रही। यानी तय हदबंदियों से अधिक है। ‘नेशनल करियर सर्विस पोर्टल’ से स्पष्ट है कि जनवरी, 2023 तक 2.75 करोड़ से अधिक बेरोजग़ारों को नौकरी चाहिए। यह आंकड़ा 3.5 करोड़ भी बताया जाता है। बहरहाल महंगाई, बेरोजग़ारी, कम उत्पादन, कम निर्यात, कृषि और गरीबी आदि गंभीर चुनौतियां हैं, जिन्हें बजट में संबोधित किया गया है। वित्त मंत्री ने अपने 5वें बजट में सबसे बड़ी, उत्पादक, समावेशी, प्रगतिशील और मेहनतकश, नौकरीपेशा वर्ग से जुड़ी यह घोषणा की है कि अब 7 लाख रुपए तक कोई आयकर नहीं देना होगा। इस दायरे को एकदम 2 लाख रुपए बढ़ाया गया है। आम करदाता को 33,800 रुपए का सीधा फायदा होगा। इसी के मद्देनजर माना जा रहा है कि यह 45 करोड़ लोगों के मध्यम वर्ग का बजट है। प्रधानमंत्री मोदी ने भी इसे एक और ताकतवर वर्ग माना है, लेकिन तथ्य यह भी है कि देश में 8 करोड़ से कुछ ज्यादा लोग ही आयकर रिटर्न भरते हैं, लेकिन औसतन 1.5 से 2 करोड़ भारतीय ही आयकर का भुगतान करते हैं। लिहाजा इसका व्यापक असर नहीं होगा, क्योंकि 98 फीसदी नागरिक पहले भी आयकर नहीं देते थे और अब तो कर का दायरा ही बढ़ाकर 7 लाख रुपए कर दिया गया है।

इस व्यवस्था का देश की अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक असर पड़ सकता है, क्योंकि मध्यम वर्ग की परिधि में बड़ी आबादी आती है, बेशक वह करदाता नहीं है, लेकिन वह उपभोक्ता जरूर है, लिहाजा आम मांग और खपत बढ़ेगी। क्रयशक्ति में विस्तार होगा। जीएसटी संग्रह भी बढ़ेगा और अंतत: अर्थव्यवस्था मजबूत होगी। दरअसल बजट का फोकस किसान, कृषि, गरीब, सूक्ष्म-लघु उद्योग, युवा शक्ति, स्टार्टअप, महिलाओं आदि पर ज्यादा रहा है। किसानों के लिए 20 लाख करोड़ रुपए की ऋण योजना तैयार की गई है, तो प्राकृतिक खेती के लिए 1 करोड़ किसानों की आर्थिक मदद और प्रोत्साहन, सूक्ष्म-लघु उद्योगों के लिए 2 लाख करोड़ के अतिरिक्त व्यय का प्रावधान किया गया है। कुल मिलाकर बजट अच्छा और समावेशी है। एकदम चुनावी और लोकलुभावन नहीं है।

डा. अश्वनी महाजन

कालेज प्रोफेसर


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App