मिड डे मील में शामिल हो मोटा अनाज

स्वास्थ्य विभाग के सर्वे के मुताबिक हिमाचल की आधी आबादी कुपोषण का शिकार है। प्रदेश का हर तीसरा मरीज मधुमेह पीडि़त है। भारत में सबसे अधिक टीबी के मामले हिमाचल में सामने आ रहे हैं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ने एनीमिया मुक्त हिमाचल के लिए अभियान शुरू किया है। केंद्र सरकार ने मिड-डे-मील योजना का नाम बदलकर प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण योजना कर दिया है। बेहतर होगा कि नाम के साथ-साथ मिड-डे-मील की थाली का स्वरूप भी बदला जाए। बच्चों को चावल के साथ मोटे अनाज भी परोसे जाने चाहिए। अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष मनाने की सार्थकता तभी है, जब हम ऐसा करेंगे…

संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा वर्ष 2023 को अंतरराष्ट्रीय मिलेट्स (मोटा अनाज) वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है जिसका नेतृत्व भारत कर रहा है। पूरी दुनिया में भारत सर्वाधिक मोटा अनाज पैदा करने वाला देश है। विश्व में मोटा अनाज उत्पादन का लगभग 41 प्रतिशत भारत में पैदा होता है। मोटे अनाज हमारी संस्कृति व सभ्यता का हिस्सा होने के साथ-साथ सस्ते और पोषण से भरपूर हैं। मोटे अनाज एनर्जी बार हैं तथा पोषण का पावर हाउस हैं। ज्वार, बाजरा, सांवा, कोदो, रागी, मंडवा, मक्का, चीना, कुट्टू और चौलाई जैसे मोटे अनाज यानी मिलेट्स आधुनिक सुपर फूड हैं। सरकार ने 2023-24 के बजट में मोटे अनाज को बढ़ावा देने हेतु अलग से एक योजना की शुरुआत की है जिसे ‘श्री अन्न योजना’ का नाम दिया गया है। इस योजना के माध्यम से देश में मोटे अनाज के उत्पादन और उसकी खपत को बढ़ावा दिया जाएगा। सरकारी स्कूलों में बच्चों में वृद्धि करने और कुपोषण की समस्या से निपटने हेतु 15 अगस्त 1995 को मिड-डे-मील योजना की शुरुआत की गई। इस योजना को विशेष उद्देश्य से आरंभ किया गया था। अधिकतर बच्चे खाली पेट स्कूल पहुंचते हैं। जो बच्चे स्कूल आने से पहले भोजन करते हैं उन्हें भी दोपहर तक भूख लग जाती है और वे अपना ध्यान पढ़ाई पर केंद्रित नहीं कर पाते।

दोपहर का भोजन बच्चों की कुपोषण की समस्या दूर करता है तथा बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास में अहम भूमिका अदा करता है। यदि हम हिमाचल की बात करें तो प्रदेश के 10732 प्राइमरी स्कूलों के 306639 विद्यार्थियों और अपर प्राइमरी के 4783 स्कूलों के 212850 विद्यार्थियों को मिड-डे-मील दिया जाता है। प्री प्राइमरी कक्षाओं के 51000 बच्चों को भी मिड-डे-मील सुविधा प्रदत है। अगर हम विद्यार्थियों के स्वास्थ्य का आकलन करें तो प्रदेश में 26 फीसदी बच्चों का कद औसत से कम है, यानी बच्चे बौनेपन का शिकार हैं। वहीं आईजीएमसी शिमला के कार्डियोवेस्कुलर सर्जरी विभाग में दिल की सर्जरी के लिए आने वालों में बच्चे ज्यादा हैं। बहुत से बच्चों के दिल में छेद पाए जा रहे हैं। कई बच्चे एनीमियाग्रस्त हैं। भारत की राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 की रिपोर्ट के अनुसार हमारे देश में 14 साल से कम उम्र के बच्चे भी अवसाद का शिकार हैं। स्वास्थ्य विभाग के सर्वे के मुताबिक हिमाचल की आधी आबादी कुपोषण का शिकार है। प्रदेश का हर तीसरा मरीज मधुमेह पीडि़त है। भारत में सबसे अधिक टीबी के मामले हिमाचल में सामने आ रहे हैं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ने एनीमिया मुक्त हिमाचल के लिए अभियान शुरू किया है। केंद्र सरकार ने मिड-डे-मील योजना का नाम बदलकर प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण योजना कर दिया है। बेहतर होगा कि नाम के साथ-साथ मिड-डे-मील की थाली का स्वरूप भी बदला जाए। बच्चों को रोज चावल ही दिए जाते हैं, यानी बच्चों की थाली मोटे अनाज से खाली है।

अंतरराष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष 2023 तभी सार्थक होगा जब हम बच्चों को प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण योजना में पोषण से भरपूर मोटा अनाज दें। आज देश के पांच सितारा होटलों में मोटे अनाज का प्रयोग सब्जियों एवं सलाद में हो रहा है। विद्यार्थियों को बाल्यवस्था से ही मोटे अनाज से रूबरू करवा देना चाहिए। बाजरे की रोटी, खिचड़ी, दलिया, भुना बाजरा थाली में परोसा जा सकता है। बाजरा आयरन का सबसे सस्ता स्त्रोत है। इससे विद्यार्थी एनीमिया मुक्त हो सकेंगे क्योंकि शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी नहीं होगी। इसी प्रकार ज्वार व रागी की ब्रेड, बिस्कुट व केक भी थाली की शोभा बढ़ा सकते हैं। मोटे अनाज में ग्लूटेन की मात्रा बहुत कम होती है तथा रेशेदार होते हैं। इनका ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होता है। इसलिए मोटे अनाज उच्च शर्करा, मोटापे, पाचन समस्याओं, एनीमिया, शारीरिक कमजोरी को दूर करते हैं। हाल ही में बल्लभ महाविद्यालय मंडी की सहायक प्रोफेसर डा. तारा देवी सेन ठाकुर ने हिमाचली जड़ी-बूटियों से बनने वाले पास्ता की खोज की है। इस पास्ता में गिलोय पाउडर के अतिरिक्त अन्य स्वास्थ्यवर्धक जड़ी-बूटियों का प्रयोग किया गया है तथा इसमें कृत्रिम परिरक्षक भी नहीं हैं। नि:संदेह यह औषधीय गुणों से भरपूर पास्ता विद्यार्थियों को अनेक बीमारियों से दूर रखेगा तथा वे बाजार में मिलने वाले हानिकारक फास्ट फूड के चक्रव्यूह से भी निश्चित रूप से बाहर निकल पाएंगे।

इस पास्ते को भी थाली का हिस्सा बना दिया जाए तो लाखों बच्चे लाभान्वित होंगे तथा मधुमेह, उच्च कोलेस्ट्रोल, तेज बुखार, पेट खराब और कैंसर जैसी घातक बीमारियों में लाभ होगा। वहीं दूसरी ओर हिमाचली खोज को धरातल व सम्मान मिलेगा। सेवानिवृत्त भू-संरक्षण अधिकारी यादव किशोर गौतम ने बताया कि हिमाचल प्रदेश में कोणी (कंगनी), बाथू (चौलाई), कोदा जैसे मोटे अनाजों की खेती आज भी की जाती है। सरकार द्वारा बीजों की आपूर्ति की जाती है। उन्होंने कहा कि प्रदेश के कृषकों को मोटे अनाज की खेती पर अधिक ध्यान व रुचि लेनी चाहिए क्योंकि इसमें शस्य क्रियाएं कम हैं तथा यह शुष्क व कम उपजाऊ भूमि पर भी हो जाते हैं। अंत में हमें स्वीकार करना होगा कि जब तक मोटे अनाज (मिलेट्स) हमारी थाली का हिस्सा नहीं बनते, तब तक अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज (मिलेट्स) वर्ष बेमानी है।

अदित कंसल

स्कूल प्रिंसीपल


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