कितने कदम आगे

By: Mar 20th, 2023 12:05 am

अपने पहले बजट की छाप और तान छेड़ कर मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने खुद को एक अलग पैमाने पर रख दिया है और इसीलिए तमाम विश्लेषणों में कहीं न कहीं तो यह पूछा जाने लगा है कि वह कितने भिन्न और कितना आगे हो सकते हैं। एक ऐसा प्रदेश जिसके आर्थिक संसाधन कमजोर हों, वहां बजट की ‘गुड स्टोरी’ लिखना आसान नहीं है। जहां सामाजिक अपेक्षाएं निरंतर मांग करती हों या जहां सार्वजनिक ढांचे में पलती कार्य संस्कृति को केवल वेतन और भत्तों से मतलब हो, वहां निजी क्षेत्र या व्यापार को आसरा दे पाना आसान नहीं। जहां नौकरी का अर्थ ही सरकारी पगार पाना हो, वहां शिक्षा से स्वरोजगार, नवाचार, व्यापार और प्राइवेट नौकरी के लिए माहौल बनाना कठिन रिवायत है। आम हिमाचली बजट में केवल सत्ता का स्पर्श और सौहार्द चाहता है, इसलिए आत्मनिर्भरता, वित्तीय अनुशासन, निजी निवेश और अतिरिक्त आय के लिए कर उगाही जैसे मजमून गौण होते रहे हैं। किसी ने आज तक यह नहीं पूछा कि हर साल राज्य की बढ़ती उधारी का सदुपयोग क्यों नहीं हो रहा।

किसी ने यह नहीं कहा कि अगर राज्य में तमाम तरह के साढ़े चार लाख सरकारी कर्मचारी व पेंशनर्स के मुकाबले निजी क्षेत्र में काम, व्यापार या स्वरोजगार प्राप्त कर रहे पच्चीस लाख लोगों की सुध ली जाए, तो प्रदेश की आर्थिक स्थिति का वास्तविक चित्रण हो जाएगा। प्रदेश को आत्मनिर्भर बनाने के प्रयत्न में जन सहयोग से जनसमर्थन की दरकार को आज तक समझा ही नहीं गया, नतीजतन इस बार भी बजट की नर्मी में कर उगाही के कई खाते खामोश हैं। नागरिक सुविधाओं और जीवनशैली में आ रहे परिवर्तन को सरकार तभी दिशा दे सकती है, जब स्थानीय निकाय आत्मनिर्भर होंगे या ऐसे फैसले स्वयं ले सकेंगे। भले ही सरकार ने स्थानीय निकायों के तमाम पदाधिकारियों का मानदेय बढ़ा कर सम्माननीय स्तर पर पहुंचा दिया, लेकिन गांव से शहर तक की व्यवस्था में इतनी तो वित्तीय क्षमता पैदा की जाए कि आय-व्यय का हिसाब कुछ तो संतुलन पैदा करे। सुक्खू के फैसलों का आश्चर्य बोध यूं तो अडानी सीमेंट विवाद, कर्मचारी चयन आयोग को निरस्त करने तथा मंत्रिमंडल की अपनी रूपरेखा निर्धारित करने में रहा, लेकिन बजट में सुर्खियां इतनी भी सख्त न थीं। सुक्खू का बजट बेशक उन्हें अलग कतार में खड़ा कर देता है, लेकिन उनकी दृढ़ता व स्पष्टता से अभिभूत जनता को भी हैरानी हुई है कि कहीं कोई कर बढ़ा नहीं। लोग चाहते हैं कि कुछ तो बजट के हक में समर्थन किया जाए ताकि राज्य की फिजूलखर्ची रुके और उनके सहयोग से आय बढ़े।

बेशक सरकारी संस्थानों को डिनोटिफाई करके मुख्यमंत्री ने अभिप्राय बदला, लेकिन जनता भूलना चाहती है कि मुफ्त की बिजली या बस यात्रा में महिलाओं को आधे किराये की सुविधा रहे। ऐसे में क्या सुक्खू पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार जैसे फैसले ले पाएंगे। मंत्रिमंडल गठन से बजट तक सुखविंदर सुक्खू तमाम पूर्व मुख्यमंत्रियों से भिन्न खड़ा होना चाहते हैं, लेकिन वह कितने कदम आगे बढ़ पाएंगे, उसे उनका पहला बजट बताएगा। ग्रीन और पर्यटन राज्य बनाते हुए वह हिमाचली भविष्य के ऐसे मुसाफिर बन जाते हैं, जो दूध की गंगा के आगे शराब का शिकार करना चाहते हैं। वह डे बोर्डिंग स्कूल के जरिए और नए पाठ्यक्रम की वजह से परिवर्तन लाना चाहते हैं। प्रत्येक विधानसभा में कम से कम एक स्कूल, एक चिकित्सा संस्थान, हेलिपोर्ट व इसी तरह के संकल्पों से वह कुछ नया कर दिखाना चाहते हैं। यह दीगर है कि बजट की शायरी से साहित्य तक और कला से संगीत तक कई विषय अभी बाहर नहीं आए हैं, फिर भी मुख्यमंत्री का खाका इतना स्पष्ट है कि कोई भी कार्य महज खानापूर्ति नहीं। ‘लम्हों को लिखने की नई कवायद में, तेरे लफ्जों ने अपनी ताकत लिख दी’।


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