बजट की अखियों से

By: Mar 18th, 2023 12:05 am

बजट की अखियों से हिमाचल को देखता यथार्थ अगर नए संसाधन खोज रहा है, तो वाटर सेस संबंधी अध्यादेश को मिली विधानसभा सदन की पूर्ण सहमति का आलेख अवश्य ही आत्मनिर्भरता की सुर्खी लिख रहा है। करीब 172 विद्युत परियोजनाओं के खाते से राजस्व आपूर्ति का अनुमान अगर चार हजार करोड़ के आंकड़े में आर्थिक सपने देख रहा है, तो इस सफर की मंजिल पर सरकार का नाम होगा। जाहिर है ऐसे कदमों के निशान दूर तक देखे जाएंगे और इसीलिए पंजाब में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी के जश्न में खलल पड़ा है। हिमाचल में उत्पादित बिजली अगर पानी के हिसाब से सेस देने लगी, तो यह प्राकृतिक संसाधनों का आर्थिक अधिकार है और यह यहां तक ही नहीं रुकेगा। इसके भीतर विस्थापन की सिसकियों का भी हिसाब है, जो वर्षों से आंसुओं की कीमत चुका रही हैं। जाहिर है पंजाब पुनर्गठन और बीबीएन की आर्थिक हिस्सेदारी में आज तक हिमाचल को छोटा मान कर किनारे लगाया गया, लेकिन वाटर सेस की पैमाइश से कई अन्य द्वार भी खुलेंगे। पंजाब शायद यह कहने की कोशिश कर रहा कि ‘आप पहले ऐसे तो न थे’। कल इसी तरह के मुद्दों को जगा कर अगर सुक्खू सरकार केंद्र में बंधक अपने अधिकारों को मुक्त कराने का विकल्प तैयार कर लेती है, तो फिर यही कहा जाएगा कि ‘आप पहले ऐसे तो न थे।’ पानी के बाद जंगल उगाने की लागत और अपनी ही जमीन पर विकास के लिए जमीन खोजने की तकलीफ से जूझ रहे हिमाचल को या तो इसकी आर्थिक भरपाई चाहिए या जंगल के अधीन केवल पचास प्रतिशत भूमि ही रखने का अध्यादेश चाहिए। प्रदेश की आर्थिकी के लिए हर संकल्प को जमीन चाहिए और यह तभी संभव होगा जब वन संरक्षण अधिनियम के तहत न्याय और विकास का अध्याय मिले। सरकार प्रदेश की बेहतरी के लिए बजटीय प्रावधान तो कर रही है, लेकिन आर्थिक सर्वेक्षण का सच फिर यही बता रहा है कि राज्य के संसाधन वेतन भुगतान, पेंशन अदायगी और उधार के चक्रव्यूह से जूझने में ही जा रहे हैं। सामाजिक सुरक्षा के हर पहलू में अव्वल आता हिमाचली नागरिक समाज इतना समृद्ध प्रतीत होता है, जो राष्ट्रीय आंकड़ों में प्रति व्यक्ति आय से कहीं अधिक ऊपर पहचान बना रहा है। प्रति व्यक्ति आय का स्तर 2,22,227 तक पहुंच रहा है, तो इसके अर्थों में यहां बीपीएल संबंधी योजनाएं तो बंद हो जानी चाहिएं। प्रति व्यक्ति आय के सामने प्रदेश के ऊपर बढ़ते कर्ज के बोझ का मूल्यांकन करें तो प्रदेश घने कोहरे में खड़ा कांप रहा है, जबकि नागरिक खुशहाली की धूप में आनंद ले रहा है।

बेशक प्रति व्यक्ति आय औसत के तराजू पर कहीं अधिक और कहीं कम भी माप रही होगी, लेकिन हिमाचल में अति समृद्ध परिवारों की कमी नहीं और यह राज्य के संसाधनों में बंटती मेहरबानियों के सलीके में देखी जा सकती है। जिस प्रदेश में अति उपजाऊ जमीनें बंदरों ने उजाड़ दी हों, वहां कृषि आर्थिकी में दर्ज सकल घरेलू उत्पाद को किस आर्थिक चक्की पर देखें,जबकि थैलियों में आयतित आटे ने नागरिकों की उपभोक्ता मांग बढ़ा दी है। उत्तर भारत के जिलों में प्रति व्यक्ति आय के आंकड़े चकित करते हैं, क्योंकि 2019-20 में किन्नौर 3.14 लाख प्रति व्यक्ति आय के हिसाब से चमक रहा था, जबकि औद्योगिक तरक्की के हिसाब से सोलन 5.40 लाख प्रति व्यक्ति आय दर्शा रहा था। सबसे नीचे कांगड़ा की प्रति व्यक्ति आय 2019-20 मेें मात्र 1.25 लाख रही है। ऐसे में यह तो साबित हो जाता है कि हिमाचल के निर्धन इलाके ऐसे जिलों में भी हैं, जहां से निकली राजनीति सत्ता को तो चमका सकती है, लेकिन अपने आर्थिक हालात नहीं सुधार पाई।

सोलन जिला की प्रति व्यक्ति आय का इजाफा परवाणू व बीबीएन जैसे औद्योगिक केंद्रों के अलावा शहरी विकास तथा उन विश्वविद्यालयों की वजह से भी है, जो एक ही जिला में स्थापित हो गए। हम कहने को यह भी कह सकते हंै कि प्रदेश तो कर्जदार है, लेकिन सरकारी नौकरी में यही धन प्रति व्यक्ति आय बढ़ा गया। बावजूद इसके कि प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत से ऊपर है, हम यह नहीं मान सकते कि हिमाचल को अधोसंरचना के हिसाब से देश की गति मिल गई। जिस दिन रेल, हवाई तथा सडक़ मार्ग से सफर या माल ढुलाई आसान होगी, बढ़ती जीडीपी से अब तक की बेरोजगारी के आंकड़े कम हो जाएंगे। राज्य के संसाधनों को अगर सभी जिलों में बराबरी से नहीं बांटा गया तो कुछ क्षेत्र या जिले पीछे रह कर प्रति व्यक्ति आय यानी रोजगार व समृद्धि की यात्रा को तिरोहित ही करते रहेंगे।


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