सुबह की प्रशासनिक सैर

By: Mar 16th, 2023 12:05 am

जनादेश की अदालत में हाजिरी के सबूत, सुबह सूरज, शाम नई सुबह की धूप। जनादेश के मूड में सरकार का सदैव तत्पर होना, सारे फासले और सारे रास्ते बदल देता है। सत्ता की सादगी में जनता की शरण में सरकारी चरित्र बदल सकता है। हिमाचल में सरकारों के मुखिया की बनती बिगड़ती छवियों का भी हिसाब रहा है और विपक्षी तेवरों में इसी अंदाज का विरोध भी रहा। जाहिर है अपने जिन तूफानी इरादों से मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू ने विपक्ष की मांद में हाथ डाल कर, निर्णायक होने का पासा फेंका है, उसके सामने भाजपा बिफर कर सडक़ों पर उतर आई है। दूसरी ओर सुक्खू ने विपक्षी आक्रोश की सडक़ पर सरकार की चहलकदमी से आत्मीय डग भरे हैं। शिमला के मॉल रोड पर मुख्यमंत्री का सैर पर निकलना ऐसे संदेशों की सुबह है, जो सत्ता को सादगी के भ्रमण पर ले जाता है। यह औपचारिक सैर के बजाय घोषित सैर बन जाए, तो प्रशासन भी सडक़ पर आ कर अपनी खामियां देख सकता है। प्रदेश को ऐसा मुख्यमंत्री हमेशा से चाहिए, जो सडक़ पर उतर कर सडक़ का तापमान जाने, लेकिन पिछले कुछ समय से हम मुख्यमंत्रियों की उड़ान को हेलिकाप्टर की सदाबहार सवारी मान रहे हैं। सडक़ से मुख्यमंत्रियों का नाता न केवल हिमाचल की नब्ज दिखाता है, बल्कि सरकार की प्राथमिकताओं का सफर भी कराता है।

हमने इससे पूर्व कई बार इन्हीं कॉलमों में लिखा है कि यदि मुख्यमंत्री सारा साल प्रदेश के अनेक शहरों में सुबह की सैर के बहाने हिमाचल की सुबह का मुयाना करें, तो सचिवालय की घंटियां बज उठेंगी। बेशक शिमला की सैर, सादगी की परिपाटी के साथ सुखविंदर सुक्खू के व्यक्तित्व को आम इनसान की सोहबत में ऊंचा कर देती है, लेकिन ऐसे भ्रमण की आदत तो हर प्रशासनिक, धार्मिक व प्रमुख शहर की सुबह पैदा कर सकती है। सुबह की सैर अगर प्रशासनिक जरूरतों को पूरा करे, तो विकास की वकालत हर सडक़ करेगी। कमोबेश शिमला में सत्ता की अदालत में सरकारें भले ही जनता के बीच नजर आएं, लेकिन सरकार को पूरे हिमाचल को आत्मसात करना है, तो पांव उस धरती पर रखने होंगे, जो राजधानी से नजर नहीं आती। हर मुख्यमंत्री के लिए चिन्हित होतीं शिमला की दूरियां पूरे हिमाचल में पांव पर चलकर ही दूर हुई हैं। शिमला से कांगड़ा, हमीरपुर, ऊना, चंबा, मंडी या कुल्लू को ठीक-ठीक देखने के लिए हर मुख्यमंत्री को निचले क्षेत्रों में भ्रमण करना ही पड़ा है। इससे राजनीति की एक वास्तुकला विकसित हुई है। इसे हम भले ही किसी निगाह से देखें, लेकिन वीरभद्र सिंह द्वारा शुरू किया गया शीतकालीन प्रवास दरअसल निचले हिमाचल की संवेदना को मापने की एक अनिवार्यता पैदा कर चुका है।

तपोवन में विधानसभा परिसर उन कदमों को मापता है, जो शिमला की सत्ता से निकल कर निचले हिमाचल की तासीर को अनुभव करते हैं। इसी तरह के पैगाम वर्तमान मुख्यमंत्री की सुबह की सैर दे रही है, तो इसे समूचे हिमाचल की सैर में शृंगारित करना होगा। मुख्यमंत्री अगर हर महीने हिमाचल का कोई एक शहर या महत्त्वपूर्ण स्थल चुन कर उसे ‘सुबह की सैर’ के जरिए मापें, तो सारे विभागों की पड़ताल हो जाएगी। जनता सीधे अपने जनप्रतिनिधियों से बहुत कुछ कहना चाहती है, लेकिन प्रशासनिक ढर्रे की दीवारें या सियासी तबेलों के अंधेरे न तो सुनने और न ही देखने देते हैं। कायदे से अगर मुख्यमंत्री अपना एक दिन किसी मेडिकल कालेज में गुजारें, तो प्रथम जानकारी के रूप में पता चल जाएगा कि ऐसे संस्थानों की अंदरूनी व्यवस्था कितनी वीभत्स है। इस कॉलम के लेखक के सामने टांडा मेडिकल कालेज के अनेक किस्से आए हैं, जहां दायित्व निर्वहन के बजाय, मरीजों को इसलिए बाहर भेज दिया ताकि वे या तो घर लौट कर मर जाएं या पीजीआई के रास्ते पर प्राण त्यागते हुए टीएमसी को सफेदपोश बने रहने की खुशफहमी में बरकरार रखें। मुख्यमंत्री सुबह की सैर करते हिमाचल के किसी भी हिस्से में देख सकते हैं कि कितनी गाडिय़ां बाहरी राज्यों से दूध, ब्रेड, सब्जियां, पॉल्ट्री या मिनरल वाटर उठाकर आ रही हैं। हिमाचल की सुबह का असली आनंद तो पड़ोसी राज्य उठा रहे हैं और यही मांग-आपूर्ति का घाटा है, जिसके ऊपर बहस होनी चाहिए। बहस होनी चाहिए कि मिल्क फेडरेशन के निरंतर घाटे के बावजूद हमारी दुग्ध आपूर्ति की मांग पड़ोसी राज्य कैसे पूरी कर रहे हैं। सुबह ही तूड़ी से भरे ट्रक भी आयात करके हमारे पशुपालन विभाग की औकात दर्शा रहे होते हैं, तो खड्डों से तस्करी के मार्फत रेत-बजरी बाहर जा रही होती है। पूरा प्रदेश सुबह की सैर करते हुए ईमानदारी से सोचे कि हमारे आसपास, हमारे मार्फत ही कितने जख्म पैदा हो रहे हैं।


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