गगरेट में दुकानों से रेट लिस्ट गायब

ग्राहकों को करना पड़ रहा दिक्कतों का सामना, दुकानदार वसूल रहे मनमाने दाम

अजय ठाकुर- गगरेट
फल, सब्जी या किराना विक्रेता की दुकान पर अगर रेट लिस्ट प्रदर्शित नहीं की गई है तो क्या दुकानदार से ऐसा न करने की वजह पूछ सकते हैं। आप तो क्या अब खाद्य आपूर्ति विभाग या फिर प्रशासनिक अधिकारी तक ऐसा नहीं कर सकते। पूर्व प्रदेश सरकार ने आवश्यक वस्तु अधिनियम को ही प्रदेश में निरस्त कर दिया है। हालांकि इस अधिनियम के रहते मुनाफाखोरी करने वालों या फिर रेट लिस्ट प्रदर्शित न करने वालों के विरुद्ध कार्रवाई का अधिकार था लेकिन इस अधिनियम के निरस्त होते ही मुनाफाखोरी करने वाले बेलगाम हो गए हैं। यही वजह है कि किसान से औने-पौने दाम में खरीदी जाने वाली सब्जी व अन्य खाद्य पदार्थ खुदरा बाजार में पहुंचते ही आम आदमी की पहुंच से बाहर होने लगते हैं। प्रदेश में जब तक आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 लागू था तब तक फल, सब्जी व किराना विक्रेताओं के लिए दुकान में रेट लिस्ट लगाना अनिवार्य था। जाहिर है कि रेट लिस्ट लगी होने के कारण दुकानदार भी ग्राहकों से मनमर्जी नहीं कर पाते थे। समय-समय पर खाद्य आपूर्ति विभाग के अधिकारी व प्रशासनिक अधिकारी भी दुकानों में जाकर यह सुनिश्चित करते थे कि दुकानदार द्वारा रेट लिस्ट लगाई गई है या नहीं।

अगर कोई दुकानदार नियमों का अवहेलना करता था तो उसका चालान करने की शक्तियां भी अधिकारियों को प्रदान थी। चालान का डर ही कहें कि दुकानदार अपनी दुकानों पर रेट लिस्ट प्रदर्शित करते थे, जिसका सीधा लाभ उपभोक्ता को होता था। इस अधिनियम को निरस्त करने के पीछे दलील यह बी दी गई कि यह सिर्फ और सिर्फ इसी प्रदेश में लागू है लेकिन इसे निरस्त करने के बाद मुनाफाखोरी पर कौन नजर रखेगा शायद ही इस पर विचार किया गया। नतीजतन जो सब्जी किसान से औने-पौने दाम में खरीदी जाती है वह बाजार में पहुंचते-पहुंचते ऐसी खास हो जाती है कि कई लोग चाहकर भी उसका स्वाद नहीं चख पाते। क्या प्रदेश में व्यवस्था परिवर्तन का नारा देने वाली सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार उपभोक्ता के हित में आवश्यक वस्तु अधिनियम को फिर से लागू करेगी। वहीं, जिला खाद्य आपूर्ति नियंत्रक राजीव शर्मा का कहना है कि पूर्व सरकार में आवश्यक वस्तु अधिनियम निरस्त हो जाने के कारण अब विभाग को खाद्य वस्तुओं की दुकानों पर रेट लिस्ट चैक करने का अधिकार नहीं है। (एचडीएम)