लाल-काले रंग के बैल बने नलवाड़ की शान

राज्य स्तरीय मेले में दूसरे दिन पहुंचीं 60 से अधिक बैलों की जोडिय़ां बनी आकर्षण का केंद्र

स्टाफ रिपोर्टर-सुंदरनगर
जहां एक ओर राज्य स्तरीय नलवाड़ मेले के आयोजन को लेकर नगौण खड्ड का चप्पा-चप्पा बैलों से भरा होता था। वहां मेले के दूसरे दिन महज 60 के तकरीबन बैलों की जोडिय़ां मेल स्थल पर पहुंची हैं। इस बार नलवाड़ मेले में बैलों का आगमन बाहरी राज्यों से ना के बराबर है। दूसरी ओर स्थानीय पहाड़ी इलाकों से ही छोटे-छोटे कद काठी के बैल शिरकत करने पहुंचे हैं। यह छोटी प्रजाति के लाल और काले चितरे रंग के बैल भले ही नलवाड़ मेले की शोभा बढ़ा रहे हैं। तो वहीं दूसरी ओर लोगों को भी संदेश दे रहे हैं कि जहां एक ओर सरकार जैविक खेती और प्राकृतिक खेती के साथ ही काम को किसानी और बागवानी स्तर पर काम करने का संदेश दे रही है। तो दूसरी ओर इस तरह के मेले के आयोजनों में बैलों की संख्या और बाहरी राज्यों से आगमन ना होने से पशु प्रेमी कहीं ना कहीं अवश्य आहत नजर आए हैं। इतना ही नहीं बल्कि नलवाड़ मेला सुंदरनगर में जहां सडक़ किनारे दोनों ओर बाहरी राज्यों से व्यापारी भी बैलों को सजाने के लिए साज सज्जा का सामान लेकर कारोबार करते थे।

इस बार वह कारोबारी भी कहीं दूर दूर तक नजर नहीं आए हैं, तो दूसरी ओर मिला प्रबंधन समिति ने भी तमाम तरह की औपचारिकताएं खुली कर दी है। जिसमें चाहे पशुओं के आने जाने से लेकर पंजीकरण करने सहित अन्य जो प्रावधान पहले की जाते थे। वर्तमान में धरातल पर कहीं पर भी नजर नहीं आए हैं। जो भी पशुपालक अपने बैलों को लेकर मेले में खरीद-फरोख्त के लिए पहुंचे हैं। उनके पशुधन अवश्य ही टैग सहित मेले में पहुंचे हैं। तो दूसरी ओर मेला प्रबंध समिति की ओर से उनकी देखरेख और उचित व्यवस्था के लिए पशुपालन विभाग की एक विशेष टीम तैनात की गई है। जोकि पशुओं से संबंधित और बीमारी सहित अन्य तमाम तरह की बीमारियों के ऊपर जांच पर करने में पशुओं की निगरानी रखने में जुटे हुए हैं। उन्हें पशुपालन विभाग की टीम से आग्रह किया है कि वह पशुपालकों को तमाम तरह की सुविधाएं मुहैया करवाएं। किसी भी पशु में किसी भी प्रकार का कोई संक्रमण रोग या फिर मुंह खुर रोग पाया जाता है। उनकी समय रहते उचित देखभाल और रखरखाव करके पशुपालकों को राहत प्रदान की जाए। इस बारे में पशुपालन विभाग के प्रभारी डॉक्टर घनश्याम का कहना है कि यहां पर स्थानीय प्रजाति के पशु मेले में आए हैं। अभी तक किसी भी पशु में कोई भी संक्रमण बीमारी के लक्षण नजर नहीं आए हैं।