बड़े आईनों में छोटी छवि

By: Mar 30th, 2023 12:05 am

बड़े आईने में छोटी तस्वीर की शिकायत न हो, तो छोटे हस्ताक्षर को कौन पढ़ेगा। हिमाचल विधानसभा में स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर हुई बहस का एक अर्थ तो यही कि पिछले काफी समय से हिमाचल ने आईने तो बड़े कर लिए, लेकिन इनके भीतर अपनी छोटी होती छवि पर गौर नहीं किया। पूर्व में स्वास्थ्य मंत्री रहे विपिन सिंह परमार ने चिकित्सा संस्थानों में आवश्यक पदों की रिक्तियों को भरने की आवश्यकता पर बल देते हुए यहां तक कहा कि सारा तकनीकी विकास गौण हो जाएगा अगर मानव संसाधन रेखांकित नहीं हुए। यह दीगर है कि सुक्खू सरकार कुछ मेडिकल कालेजों का हुलिया बदलने के लिए रोबोटिक सर्जरी का तमगा पेश कर चुकी है और यह भी कि हर विधानसभा क्षेत्र के किसी एक चिकित्सा संस्थान को ‘आदर्श’ बनाने के लिए सुविधाओं, उपकरणों व आवश्यक पदों में विस्तार करना चाहती है। एमर्जेंसी सेवाओं की नई व्याख्या भी हो रही है, लेकिन चिकित्सा विभाग की अब तक की दौड़ अपनी न तो मंजिल, न उपलब्धि और न ही गुणवत्ता पेश कर सकी। प्रदेश में ओपीडी की भीड़ एक संस्थान से दूसरे तक ट्रांसफर जरूर हो रही है, लेकिन अतीत के जिला अस्पताल अब निरर्थक हो चुके हैं, जबकि मेडिकल कालेज पूरे प्रदेश के विश्वास को अर्जित करने में पूरी तरह सफल नहीं हुए हैं। ऐसे में मेडिकल संस्थानों के विस्तार ने केवल पद, प्रोमोशन और सियासी पदवियां ही पैदा की हैं,जबकि तरक्की तो संस्थानों में कार्य संस्कृति की होनी चाहिए थी। यह इसलिए भी कि मेडिकल सेवाओं का विस्तार केवल मेडिकल कालेजों की संख्या को बढ़ाते-बढ़ाते विभाग के आधारभूत ढांचे को नंगा व कमजोर कर गया। हिमाचल की चिकित्सकीय सेवाओं में जब तक ‘रिस्पांस सिस्टम’ विकसित नहीं होता, मरीजों की देखभाल के बजाय सियासी देखभाल में नए संस्थान यूं ही जन्म लेते रहेंगे।

आईजीएमसी के बाद टीएमसी के वजूद में जान डालने के लिए न केवल धर्मशाला का जोनल अस्पताल कुर्बान हुआ, बल्कि आसपास के दायरे में कई अन्य चिकित्सा संस्थान भी शहीद हो गए। इसके बाद हर तरह की सियासत और सत्ता को चिकित्सा क्षेत्र में मेडिकल कालेज के नाम पर जमूरा चाहिए था, तो फिर वह नए मेडिकल कालेजों की खेती में नेरचौक मेडिकल कालेज ने सर्वप्रथम मंडी के जोनल अस्पताल से फेफड़े छीन लिए और फिर यह परिक्रमा नाहन, हमीरपुर और चंबा के मेडिकल कालेजों से होते हुए बिलासपुर के एम्स और ऊना के पीजीआई सेटेलाइट सेंटर तक जा पहुंची। टीएमसी से छीने गए डाक्टर चंबा को ताकत नहीं दे पाए, तो भी यह कारवां आगे बढ़ कर नेरचौक, हमीरपुर और नाहन को सीने से लगाने लगा और अब यही आजमाइश एम्स की रिक्तियां भरने लगी है। यानी एक परिसर को विकसित करने की कीमत अदा करते हुए न जाने कितने चिकित्सा संस्थान दफन हो गए। इससे एक बुरी परिपाटी यह भी सामने आई कि प्रदेश में सरकारी चिकित्सा का पूरा ढांचा केवल ‘रैफरल मोड’ पर रहता है। धर्मशाला में कभी जिला स्तर का अस्पताल चंबा, हमीरपुर व ऊना के अलावा मंडी के कुछ क्षेत्रों को संतोषजनक सुविधाएं प्रदान करता था, लेकिन आज की तारीख में यह घोर निराशा का प्रतीक है। मंडी का जोनल अस्पताल अगर कमजोर हुआ तो इसकी मुख्य वजह नेरचौक में मेडिकल कालेज की स्थापना है। इसी तरह कितने ही सिविल अस्पताल, सीएचसी, पीएचसी या डिस्पेंसरियां गैर जिम्मेदाराना ढंग से चल रही हैं, जिसे हम मेडिकल कालेजों के शोर में नहीं दबा सकते। आज की तारीख में अगर हर छोटा बड़ा शहर या कस्बा अगर निजी अस्पतालों की शरण में खुद को सुरक्षित मान रहा है, तो सरकारी चिकित्सा सेवाओं का ढर्रा बदलने की आवश्यकता है। हर शहर को एक उन्नत व सुविधा संपन्न अस्पताल की जरूरत है, जहां आवश्यक स्टॉफ उपलब्ध हो। जाहिर है सुक्खू सरकार के ‘आदर्श अस्पताल’ इस दिशा में जनता का विश्वास अर्जित करते हुए इस मांग को पूरा कर सकते हैं, बशर्ते आवश्यक सेवाओं के लिए आवश्यक स्टॉफ चौबीस घंटे सेवा दे सके। इसी के साथ सरकार को शिमला, मंडी व धर्मशाला के जोनल अस्पतालों के साथ-साथ तमाम क्षेत्रीय अस्पतालों में अतिरिक्त पदों का सृजन करते हुए इन्हें किसी न किसी रोग विशेष के राज्य स्तरीय अस्पताल का दर्जा देना चाहिए। हिमाचल में बहुत योग्य डाक्टर व तमाम मेडिकल स्टॉफ उपलब्ध है, लेकिन स्थानांतरण नीति या राजनीतिक दखल से ऐसे व्यक्तियों के कौशल की अनदेखी हो रही है। जिस तरह दो साल के भीतर अध्यापकों की ट्रांसफर पर प्रतिबंध लगाने का सरकार सोच रही है, उसी तरह डाक्टरों व अन्य मेडिकल स्टॉफ को भी कम से कम पांच साल तक एक ही स्थाप पर अपनी क्षमता व समर्पण साबित करने की गारंटी मिलनी चाहिए।


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