श्रीमहातारा जयंती

By: Mar 25th, 2023 12:16 am

श्रीमहातारा जयंती पूरे देश में उत्साह के साथ मनाई जाती है। यह दुनियाभर में रहने वाले हिंदुओं के लिए महत्त्वपूर्ण अनुष्ठान व पर्व है। इस बार श्रीमहातारा जयंती 30 मार्च के दिन मनाई जाएगी। चैत्र माह की नवमी तिथि तथा शुक्ल पक्ष के दिन मां तारा की उपासना तंत्र साधकों के लिए सर्वसिद्धिकारक मानी जाती है। दस महाविद्याओं में से एक हैं भगवती तारा। देवी तारा को सूर्य प्रलय की अधिष्ठात्री देवी का उग्र रूप माना जाता है। जब चारों ओर निराशा ही व्याप्त हो तथा विपत्ति में कोई राह न दिखे, तब मां भगवती तारा के रूप में उपस्थित होती हैं। देवी तारा शक्ति स्वरूपा हैं इनकी साधना से साधक को सुख संपदा प्राप्त होती है। देवी तारा को तारिणी विद्या भी कहा जाता है। उग्र तारा, नील सरस्वती और एकजटा इन्हीं के रूप हैं। शत्रुओं का नाश करने वाली सौंदर्य और रूप ऐश्वर्य की देवी तारा आर्थिक उन्नति और भोग दान और मोक्ष की प्राप्ति के लिए सहायक मानी जाती हैं।

देवी महातारा उत्पत्ति- सृष्टि से पहले चारों ओर घोर अंधकार व्याप्त था न कोई तत्त्व था न ही कोई शक्ति थी, केवल एक अंतहीन अंधकार का साम्राज्य ही था और इसी अंधकार की देवी थी मां काली। तब इस घोर अंधकार से एक प्रकाश की किरण उत्पन्न होती है, जो तारा कही गई। यही तारा अक्षोभ्य नाम के ऋषि पुरुष की शक्ति है, ब्रह्मांड में जितने भी पिंड हैं सभी की स्वामिनी देवी तारा ही मानी जाती हैं। देवी तारा को महानीला या नील तारा भी कहा जाता है। इस नाम के पीछे एक कथा प्रचलित है जिसके अनुसार जब सागर मंथन हुआ, तो सागर से अनेक वस्तुएं निकलती हैं और जब विष निकला, तो तीनों लोक संकट में पड़ गए। देव-दानवों, ऋषि-मुनियों ने भगवान शिव से रक्षा की गुहार लगाई, तब भगवान शिव ने उस विष को पी लिया और विष को कंठ में ही रोक लिया, किंतु विष के प्रभाव से उनका शरीर भी नीला हो गया, जब देवी ने भगवान को इस संकट में देखा, तो भगवान शिव के भीतर प्रवेश करके विष को अपने प्रभाव से हीन कर देती हैं। किंतु विष के प्रभाव से देवी का शरीर भी नीला पड़ जाता है। तब भगवान शिव ने देवी को महानीला कह कर संबोधित किया, इस प्रकार देवी नीलतारा नाम से विराजमान हुईं। देवी की प्रमुख सात कलाएं हैं, जिनसे देवी, ब्रह्मांड सहित जीवों तथा देवताओं की रक्षा भी करती है।


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