पालमपुर के ट्यूलिप

By: Mar 21st, 2023 12:05 am

चाय से ट्यूलिप नगरी की आभा में पालमपुर के सीएसआईआर के हिमालयन बायोरिसोर्स टेक्नोलॉजी संस्थान ने न केवल अपने आंचल में फूलों का एक न•ाारा पेश किया है, बल्कि हिमाचल में फूलों के जरिए पर्यटन की खेती भी उगा दी है। यही वजह है कि मात्र बीस दिनों में पच्चास हजार के करीब सैलानी सीएसआईआर के प्रांगण में, बारह किस्म के 45 हजार से अधिक ट्यूलिप पौधों की बहार में हिमाचल की छटा को निहार रहे हैं। बेशक अपने अनुसंधान, तकनीक व प्रसार सेवाओं के कारण इस संस्थान ने फूलों की आर्थिकी से लबालब कई बागीचे या पॉलीहाउस तैयार किए हैं, लेकिन पिछले साल से ट्यूलिप की खेती ने इसके मुख्य परिसर की रंगत बदल दी है। यह एग्रो टूरिज्म की बुनियाद पर लिखी गई ऐसी संभावना है, जिसे प्रदेश के कृषि व बागबानी विश्वविद्यालय के साथ वन तथा बागबानी विभाग को भी अंगीकार कर लेना चाहिए। फूलों की खेती कई बार लौट-लौट कर हिमाचल के परिदृश्य में आर्थिकी के बीज उगाती रही है, लेकिन योजनाओं-परियोजनाओं के कसीदों से आगे स्थायी तौर पर हम फूल राज्य नहीं बन सके। घोषणाएं तो ये भी रहीं कि बिलासपुर से मंडी तक की सडक़ के किनारे ‘ब्लूमिंग हिमाचल’ की तस्वीर पेश होगी, मगर साहब के बदलते सरकार की प्राथमिकता भी बदल गई। हिमाचल में अब फूल बाजार तक आने और गुनगुनाने लगे हैं। निजी मेहनत के कारनामों में कुछ प्रगतिशील किसानों ने दिल्ली ही नहीं, देश की विभिन्न मंडियों में अपने फूलों की महक पहुंचा दी, लेकिन पालमपुर और नौणी विश्वविद्यालयों ने विज्ञान की इस शाखा और हिमाचली किसान-बागबान की प्रतिभा को लेकर ऐसा कोई गुल नहीं खिलाया।

इसके मुकाबले निजी नर्सरियों के माध्यम से पुष्प उत्पादन के क्षेत्र में सोच, समझ व तकनीक बदली है। बेशक कुछ हद तक पालमपुर के सीएसआईआर संस्थान ने गुलदाऊदी, जरबेरा, कारनेशन, गुलाब व लीलियम जैसे फूलों के प्रयोग किसान के खेत तक पहुंचाए, मगर न कृषि, न बागबानी और न ही वन विभाग ने इस क्षमता में प्रदेश को आगे बढ़ाया। हैरत तो यह कि एडीबी बैंक के खाते से निकले करोड़ों रुपए धर्मशाला के ट्यूलिप गार्डन को एक फूल भी नहीं दे पाए। एक बड़े भूखंड पर आधारित यह परियोजना तत्कालीन वीरभद्र सरकार के शहरी विकास मंत्री रहे सुधीर शर्मा की परिकल्पना से जमीन पर उकेरी तो गई, लेकिन पिछली सरकार ने पांच साल में पूरे ढांचे को कब्रिस्तान बना दिया। आश्चर्य यह कि फूल पर भी राजनीति के बीहड़ हावी हो गए और विडंबना यह कि करोड़ों की लागत पर भी किसी को तरस न आया। अब हो सकता है कि पालमपुर ट्यूलिप गार्डन से राजनीतिक कलियां चुरा-चुरा कर सियासत का नया क्षेत्रवाद पैदा कर दिया जाए, वरना संभावना तो यह है कि सोलन में बागबानी विश्वविद्यालय के परिसर में भी इसी तरह का ट्यूलिप गार्डन विकसित हो जाना चाहिए।

कमोबेश हिमाचल के हर महत्त्वपूर्ण शहर में फूलों से लदे गार्डन, सडक़ किनारे महकते फूल और जंगल की विरासत में फूलों से लदी झाडिय़ां मानवीय संपर्क में एक रौनक पैदा कर सकते हैं। लाहुल-स्पीति के परिवेश में सीबकथॉर्न अगर बागबानी से सैलानी तक जुड़ जाए, तो आर्थिक यात्रा की मंजिल खूबसूरत हो जाएगी। यदि किन्नौर के चिलगोजे, मंडी के काफल, प्रदेश के अनेक भागों के बुरांश तथा लुंगड़ू जैसे उत्पाद को पर्यटन की लत लग जाए या जंगल के तमाम औषधीय पौधे खिल उठें, तो सैलानियों को ऐसे पौधों की सोहबत मिल जाएगी। बेशक पर्यावरण के नाम पर जंगल और जनता की सुविधाओं पर जंगले लग रहे हैं, लेकिन हिमाचल के हर शहर को अपनी सारी दिशाओं में जंगल से कम से कम चार सामुदायिक मैदानों को भूमि चाहिए। इनमें से अगर एक में भी फूल उगते रहें, तो हिमाचल फूलों की मंडी के साथ-साथ फूलों का पर्यटन भी उगा सकता है। सीएसआईआर के प्रयत्न के साथ मिलकर शहरी विकास विभाग, प्रशासन, वन, कृषि एवं बागबानी तथा पर्यटन विभाग को पूरे हिमाचल में दर्जनों पुष्प वाटिकाएं या गार्डन स्थापित करने चाहिएं। बड़े मंदिरों के परिसर तथा उनकी संपत्ति में दर्ज जमीन पर भी ऐसी परिकल्पनाएं उगनी चाहिएं।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App