चंबा का साहित्य और साहित्यकार

By: Apr 1st, 2023 7:45 pm

साहित्य की निगाह और पनाह में परिवेश की व्याख्या सदा हुई, फिर भी लेखन की उर्वरता को किसी भूखंड तक सीमित नहीं किया जा सकता। पर्वतीय राज्य हिमाचल की लेखन परंपराओं ने ऐसे संदर्भ पुष्ट किए हैं, जहां चंद्रधर शर्मा गुलेरी, यशपाल, निर्मल वर्मा या रस्किन बांड सरीखे साहित्यकारों ने साहित्य के कैनवास को बड़ा किया है, तो राहुल सांकृत्यायन ने सांस्कृतिक लेखन की पगडंडियों पर चलते हुए प्रदेश को राष्ट्र की विशालता से जोड़ दिया। हिमाचल में रचित या हिमाचल के लिए रचित साहित्य की खुशबू, तड़प और ऊर्जा को छूने की एक कोशिश वर्तमान शृंाखला में कर रहे हैं। उम्मीद है पूर्व की तरह यह सीरीज भी छात्रों-शोधार्थियों के लिए लाभकारी होगी…

अतिथि संपादक, डा. सुशील कुमार फुल्ल, मो.-9418080088

हिमाचल रचित साहित्य -57

विमर्श के बिंदु
1. साहित्य सृजन की पृष्ठभूमि में हिमाचल
2. ब्रिटिश काल में शिमला ने पैदा किया साहित्य
3. रस्किन बांड के संदर्भों में कसौली ने लिखा
4. लेखक गृहों में रचा गया साहित्य
5. हिमाचल की यादों में रचे-बसे लेखक-साहित्यकार
6. हिमाचल पहुंचे लेखक यात्री
7. हिमाचल में रचित अंग्रेजी साहित्य
8. हिमाचल से जुड़े नामी साहित्यकार
9. यशपाल के साहित्य में हिमाचल के रिश्ते
10. हिमाचल में रचित पंजाबी साहित्य
11. चंद्रधर शर्मा गुलेरी की विरासत में

अशोक दर्द, मो.-8219575721

साहित्य समाज का दर्पण होता है, ऐसा कहा जाता है। समाज में जो भी अच्छा-बुरा घटता है, जो विसंगतियां-विद्रूपताएं, खूबियां-खामियां समाज में रहती हैं, एक सच्चा साहित्यकार उन सब का सूक्ष्म निरीक्षण करता है और उन खूबियों-खामियों को उजागर करते हुए कहीं समाज की पीठ थपथपाता है तो कहीं विसंगतियों का समाधान भी समाज को देता है। लडख़ड़ाती हुई राजनीति को संभालना, युवा पीढ़ी को उंगली पकडक़र सही दिशा की ओर ले जाना सच्ची साहित्यिकता की जिम्मेवारी है। इसी जिम्मेदारी को चंबा का साहित्यकार बखूबी निभा रहा है जिनमें कुछ नाम उभर कर सामने आते हैं। श्री कुलभूषण उपमन्यु जिला चंबा के वरिष्ठ साहित्यकार हैं। ये भटियात क्षेत्र से संबंधित हैं। विभिन्न प्रतिष्ठित समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में इनका साहित्य एवं लेख वर्षों से छपते आ रहे हैं। कुछ साझा संकलनों के अलावा इनका कविता संग्रह ‘द्वंद्व जारी है’ इनकी रचनात्मकता को तस्दीक करता है।

ये वर्षों से हिमाचली व हिंदी में बराबर साधिकार निरंतर लिख व छप रहे हैं। चुराह के डुगली गांव से उषा मेहता ‘दीपा’ अदब की दुनिया में एक प्रतिष्ठित नाम है। वह साहित्य की मुख्य धारा में वर्षों से साहित्य की विभिन्न विधाओं में निरंतर लेखनरत रही हैं। इनकी कविताएं, कहानियां तथा लघुकथाएं देश की नामचीन पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर छपती रही हैं। इनका एक कहानी संग्रह ‘धारो की लाड़ी’ पहाड़ के जीवन का जीवंत दस्तावेज है। वरिष्ठ कवि शरत शर्मा साहित्य के क्षेत्र में चंबा का एक जाना-पहचाना नाम है। इन्होंने हांक पत्रिका का सह-संपादन किया है। इसके अलावा मुक्त अधरों के कारावास, नाकाबंदी की बगावत, मु_ी भर संसार इनके कविता संग्रह हैं। कुमार कृष्ण का कवि कर्म, कुमार कृष्ण की कविता में ग्रामीण बोध, आग और दाग के कवि कुमार कृष्ण इनकी आलोचना पुस्तकें हैं। इनके अलावा दर्जनों पत्र-पत्रिकाओं में इनके आलेख, कविताएं व कहानियां इत्यादि प्रकाशित होते रहे हैं। रमेश जसरोटिया भी एक उम्दा रचनाकार हैं। भाषा विभाग से सेवानिवृत्त रमेश जसरोटिया हिम भारती पत्रिका के संपादक रहे हैं। इसके साथ-साथ सोमसी पत्रिका में संपादन सहयोग किया है। जब गिरिराज साप्ताहिक में पहाड़ी परिशिष्ट शुरू हुआ था तो उसके प्रारंभिक दौर में इन्होंने संपादक की भूमिका निभाई। इसके साथ-साथ लगभग अस्सी पुस्तकों, जिनमें विभागीय एवं गैर विभागीय पुस्तकें शामिल हैं, में इन्होंने संपादन एवं प्रकाशन में सहयोग कार्य किया है। कई पत्र-पत्रिकाओं में इनके यात्रा संस्मरण, रिपोर्ताज, आलेख, शोध आलेख, कहानियां एवं कविताएं प्रकाशित होते रहे हैं। चंबा की ओर से साहित्यिक एवं सांस्कृतिक लेखन में इनका योगदान अतुलनीय है। भाषा, कला एवं संस्कृति अकादमी शिमला में सचिव के पद पर आसीन डॉक्टर कर्म सिंह आर्य भी बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। विभागीय पत्रिकाओं हिमभारती, सोमसी में इनका संपादन सहयोग एवं प्रकाशन उल्लेखनीय है।

हाल ही में इनकी पुस्तक ‘स्वामी दयानंद सरस्वती : जीवन एवं दर्शन’ प्रकाशित हुई है। और भी कई पुस्तकों के अलावा कविता, कहानी, आलेख, शोध आलेख इत्यादि इनकी रचनात्मकता में दर्ज हैं। चंबा के पांगी से संबंधित गणेश गनी, जो वर्तमान में कुल्लू में रहते हैं, कविता के क्षेत्र में एक जाना पहचाना नाम है। पिछले कुछ वर्षों में उनके कुछ चर्चित कविता संग्रह आए हैं, जिनकी चर्चा हिमाचल में ही नहीं अपितु पूरे देश में हुई है। चंबा के वरिष्ठ कवि एवं गीतकार चंचल सरोलवी वर्षों से साहित्य सृजन में लगे हैं। इनके लिखे कई गीत हिमाचल के कोने-कोने में गाए जाते हैं। हिमाचली तथा हिंदी में साधिकार लिखने वाले चंचल सरोलवी विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर छपते रहते हैं। चंबा जनपद के साहित्यिक एवं सांस्कृतिक लेखन में सरोलवी का कार्य अतुलनीय है। डलहौजी नगर से ही बलदेव मोहन खोसला एक खूबसूरत मंच संचालक के साथ-साथ खूबसूरत शायरी के मालिक हैं।

इस शायर की उपस्थिति साहित्यिक मंचों की शोभा को चार चांद लगा देती है। साहित्यिक मंचों पर इनकी रचनाएं खूब सराही जाती रही हैं। डलहौजी नगर से केएस भारती वर्षों से कविता लेखन में सक्रिय हैं। कई कविता संग्रहों में इनकी कविताएं दर्ज हैं। इसके साथ-साथ इनका निजी कविता संग्रह ‘मुझे देश से क्या लेना’ हाल ही में प्रकाशित हुआ है। मोनिका साहित्यिक जगत में उपासना पुष्प के नाम से लिख रही हंै। यह युवा कवयित्री मंचों पर कविता पाठ करती रही हैं। यह एक संभावनाशील रचनाकार हैं। नारी विमर्श की खूबसूरत रचनाएं इनके हिस्से दर्ज हैं। पत्रकार सोमी प्रकाश भुवेटा भी पत्रकारिता के साथ-साथ साहित्यिक क्षेत्र में अपना दखल रखते हैं। पत्र-पत्रिकाओं में इनकी कहानियां छपती रही हैं। कई नामचीन हस्तियों के इन्होंने साक्षात्कार भी किए हैं जिसे पुस्तक रूप में प्रकाशित किया गया है। एमआर भाटिया साहित्य के क्षेत्र में चंबा का एक जाना-पहचाना नाम है। इनके लिखे गीत कई एल्बमों में गाए जा चुके हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में भी इनकी कविताएं छपती रही हैं। टीसी सावन ईरा पब्लिकेशन के नाम से कविता लेखन के साथ-साथ साहित्यिक संपादन एवं प्रकाशन का कार्य भी कर रहे हैं। इनकी धर्मपत्नी दिव्या लंघियाल बदली भी कविता लेखन में अपनी सक्रिय भूमिका निभा रही हैं। शिक्षा के क्षेत्र में प्रधानाचार्य के पद पर तैनात चंबा के बलेरा गांव से जगजीत आजाद वर्तमान में साहित्य क्षेत्र में एक अलग पहचान रखते है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में इनकी कविताएं निरंतर प्रकाशित हो रही हैं तथा विभिन्न मंचों पर कविता पाठ करते रहे हैं।

श्री प्रभात राणा चंबा के वरिष्ठ साहित्यकार हैं। ‘वो आवाज किसकी थी’ बज़्म-ए-हिंद इत्यादि साझा संकलनों में इनकी रचनात्मकता दृष्टिगोचर होती है। भटियात क्षेत्र से ही युवा रचनाकार तपेश पुजारी हिमाचली, हिंदी व अंग्रेजी में रचनारत हैं। श्री तिलक राज भटियात के युवा रचनाकार हैं। इनकी रचनात्मकता साझा संग्रह ‘वो आवाज किसकी थी’ में दृष्टिगोचर होती है। आशीष बहल की रचनात्मकता काव्य कोकिला, बेटियां, वो आवाज़ किसकी थी साझा संग्रहों में दृष्टिगोचर होती है।

विकास गुप्ता भी भटियात क्षेत्र से संबंधित हैं। इनका लेखन साझा संग्रहों- काव्य विविधा, अनन्त आकांक्षाओं का आकाश, अनुभूतियों का एहसास, गरिमा इत्यादि में दर्ज है। विक्रम सिंह चंबा के भटियात से हैं। इनका लेखन साझा संकलनों- कसक बाकी है, वो आवाज़ किसकी थी, साहित्यांकुर, बज़्म-ए-हिन्द, कोरोना काव्य, संवेदना की वीथियों में, काव्य विविधा, गरिमा, हिमाचल की उत्कृष्ट कहानियां इत्यादि में दर्ज है। भटियात से ही विनोद ठाकुर भी यदा कदा अपनी रचनात्मकता के साथ मंचों पर दृष्टिगोचर होते हैं। चुराह घाटी से भी कई युवा रचनाकार वर्तमान में लिख रहे हैं जिनमें उत्तम सूर्यवंशी हिंदी व हिमाचली में कविता, लेख, कहानी, गीत इत्यादि निरंतर लिख रहे हैं। इनके प्रकाशित साझा संग्रहों में कई रचनाएं हैं। पर्यावरण संरक्षण में जुटे शिक्षक एवं कवि एचआर चिराग भी चुराह घाटी से संबंध रखते हैं। वर्षों से साहित्य साधना में रत चिराग निरंतर कविताएं लिख रहे हैं व छप रहे हैं। इनका कविता संग्रह ‘इस धरा पर’ इनके उम्दा लेखन को तस्दीक करता है। चुराह घाटी के ही केआर सोनी कवि, लेखक एवं यू-ट्यूबर हैं, जो निरंतर हिंदी व हिमाचली में कविताएं व गाने-भजन इत्यादि लिख रहे हैं। चुराह घाटी से ही नवोदित युवा रचनाकार उषा देवी निरंतर कविताएं लिख रही हैं तथा कई पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित भी हो रही हैं। चुराह घाटी से ही केहर सिंह राजौरिया निरंतर लिख व छप रहे हैं। चंबा की चुराह घाटी से ही युवा रचनाकार नेकराम ठाकुर परिहार अदब की दुनिया में अपना मुकाम हासिल करने की ओर बढ़ रहे हैं। इनकी रचनात्मकता में गीत लेखन व कविता लेखन दर्ज हैं। इनकी प्रकाशित कृतियों में ‘मन के पन्ने’, ‘मेरी मां मेरे एहसास’, ‘नया भारत’, ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ व देश का अभिमान इत्यादि साझा संकलन हैं।

चुराह घाटी के बौंदेड़ी गांव से महाराज सिंह एक उभरता हुआ संभावनाशील युवा रचनाकार है। नूर ए गज़़ल, दिल की क़लम से, भाव रश्मियां व अनंत आकांक्षाओं का आकाश आदि साझा काव्य संग्रह इनकी रचनात्मकता को तस्दीक करते हैं। चुराह घाटी के बौंदेड़ी गांव से ही होशियार सिंह भी एक युवा नवोदित कवि के रूप में अपनी पहचान बना रहे हैं। चुराह घाटी से ही शिक्षिका एवं कवयित्री मंजू शर्मा भी कविता एवं कहानी लिखती हैं। बाल ज्ञान तरंग, काव्य कोकिला, स्यूल धारा साझा संग्रह इनकी रचनात्मकता को तस्दीक करते हैं। राष्ट्रीय शिक्षक सम्मान से सम्मानित शिक्षक एवं कवि युद्धवीर टंडन भी चंबा की चुराह घाटी से संबंधित हैं। कई साझा संग्रहों में इनकी रचनात्मकता दर्ज है। चुराह घाटी से ही यज्ञदत्त शास्त्री संस्कृत व हिंदी में निरंतर लेखनरत हैं। चुराह घाटी से ही खेमराज खन्ना लोक कवि के रूप में विख्यात हैं। हिमाचली (चुराही) में उनकी कविताएं मंचों पर खूब सराही जाती हैं। अजय यादव चंबा शहर के प्रतिष्ठित रचनाकार हैं। इनके लेखन में गज़़ल, गीत एवं भजन सम्मिलित हैं।

भूपेंद्र जसरोटिया चंबा जनपद के वरिष्ठ साहित्यकार हैं। कविता तथा लोक संस्कृति के संरक्षक समाज सेवक जसरोटिया जी की कई रचनाएं पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशित हो रही हैं। फिरोज कुमार रोज बनीखेत क्षेत्र से साहित्य की विभिन्न विधाओं के साथ-साथ एक मोटिवेशनल स्पीकर के तौर पर भी कार्य कर रहे हैं। साहित्यिक जगत में उनकी कुछ साझा कविता संग्रह व मोटिवेशनल किताबें अब तक आ चुकी हैं। वर्तमान में जिला भाषा अधिकारी चंबा तुकेश शर्मा भी सांस्कृतिक लेखन, समीक्षात्मक लेखन एवं कविता-कहानी में अपनी सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। बलेरा से सुभाष साहिल भी एक उभरता हुआ साहित्यिक नाम है, जिनकी रचनाएं कई साझा संग्रहों में दर्ज हैं। चंबा के रजेरा से कश्मीर सिंह हिंदी तथा हिमाचली में निरंतर कविता लेखन करते आ रहे हैं। उनकी रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं तथा कई साझा संकलनों में संग्रहीत हैं। चंबा के ही अशोक कुमार, जो व्यवसाय से दिल्ली के किसी विद्यालय में अध्यापक हैं, वर्तमान में हिंदी कविताएं लिख रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग से सेवानिवृत्त लीला ठाकुर बरसों से साहित्य सृजन में रत हैं। इनका एकांकी ‘चांदी के दाग’ प्रकाशित है। इनके साथ-साथ विमला देवी, एडवोकेट उमेश ठाकुर, गुलशन पाल, राजीव ठाकुर, शाम अजनबी, सुभाष कासव इत्यादि कई युवा रचनाकार साहित्य की विभिन्न विधाओं में निरंतर लिख-छप रहे हैं। अंत में इस आलेख के लेखक अशोक दर्द के भी अंजुरी भर शब्द, महकते पहाड़, मेरे पहाड़ में, संवेदना के फूल, धूप छांव तथा मु_ी भर आकाश व्यक्तिगत कविता संग्रह हैं। इसके अलावा लघुकथा संकलनों, कहानी संकलनों, लोककथा संकलनों इत्यादि में इनकी रचनाएं दर्ज हैं तथा साहित्य की विभिन्न विधाओं में निरंतर रचनाशील हैं। हिमाचल प्रदेश के बाकी जिलों की तरह चंबा के साहित्यिक लेखन के लिए भी कुछ चुनौतियां हैं जिनमें भौगोलिक परिस्थिति चंबा की कुछ इस तरह है कि लेखकों को एक मंच पर इक_ा करना थोड़ा मुश्किल हो जाता है और यहां साहित्यिक परिवेश भी थोड़ा कम है। यहां साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं की उपलब्धता भी नगण्य है। फिर भी मेरा मानना है कि प्रतिभा कभी साधनों और सुविधाओं की मोहताज नहीं रही है। बेशक चंबा दुर्गम क्षेत्र माना जाता है और सुविधाओं की दृष्टि से इसे सरकार ने पिछड़ा जिला भी घोषित किया है, परंतु मेरा मानना है कि चंबा अपनी प्रतिभा, जिजीविषा और संघर्ष के बूते कहीं भी उन्नीस नहीं है। चंबा अपनी स्वर्णिम संस्कृति, साहित्य एवं कला के लिए पूरे प्रदेश में अपना अलग स्थान रखता है। इन पंक्तियों के साथ मैं अपना आलेख सम्पन्न करता हूं : ‘सुंदर छैल़ हमारा चंबा/लगदा बड़ा प्यारा चंबा/गीत संगीत कला दियां दिक्खो/भरदा उच्चियां उडारां चंबा।’                                                                                -अशोक दर्द

चिंतन : विश्वविद्यालय में हिमाचली भाषा

प्रो. ओम प्रकाश शर्मा, मो.-9418480231

इन शब्दों का हिमाचल की सभ्यता, संस्कृति, इतिहास एवं भाषिक दृष्टि से विशेष महत्त्व है। ‘पहाड़’ हिमालय के पंच भौतिक तत्त्वों का अंतरंग हिस्सा है। हिमालय देवतात्मा है तथा सनातन सभ्यता व संस्कृति का आगार भी है। हिमाचल शब्द में भी ‘अचल’ शब्द का अर्थ पहाड़ ही है। अत: हिमाचल का व्युत्पत्तिलभ्यार्थ हुआ- ‘‘ऐसा पहाड़ जो हिम से ढका हो अथवा बर्फ से सदा ढका रहने वाला पहाड़।’’ वस्तुत: अचल शब्द में पहाड़ का अर्थनिहित है। ‘पहाड़ी’ शब्द जहां भौगोलिक स्तर पर पहाड़ की विभिन्न शृंखलाओं के स्वरूप को संकेतित करता है, वहीं इसमें ‘पहाड़ी जन’ अथवा समाज तथा पहाड़ी भाषा व उपभाषाओं (बोलियों) के अर्थ भी निहित हैं।

पहाड़ी अर्थात ऐसे लोग जो पहाड़ों से सम्बन्धित हों, जिनकी अपनी पृथक वेषभूषा, खान-पान, रहन-सहन व संस्कृति की सनातन परम्पराएं हों तथा जो अपनी मातृभाषा या लोकभाषा में बात करते हो, उसे ‘पहाड़ी’ शब्द के प्रयोग से समझा जा सकता है। पहाड़ों से सम्बन्ध रखने वाले पहाड़ी जनों की अपनी मातृभाषा पहाड़ी कहलाती है। पहाड़ तथा पहाड़ी शब्द पहाड़ी भाषा के स्वरूप को रेखांकित करने में सहायक हैं। इसमें निहित शाब्दिक अर्थों के आधार पर हम एक परिभाषा में पहाड़ी भाषा को बांधने का प्रयास कर सकते हैं। यह परिभाषा है- ‘‘पहाड़ी भारतीय आर्य भाषा परिवार की वह भाषा है जो वर्तमान हिमाचल प्रदेश तथा उसके कुछ सीमावर्ती क्षेत्रों में बोली जाती है। पहाड़ी भाषा को समृद्ध व पोषित करने वाली इसकी अपनी उपभाषाएं अथवा बोलियां हैं तथा इन उपभाषाओं अथवा बोलियों का अपना समृद्ध लोक साहित्य है।’’

मातृभाषा पहाड़ी की अनेकों उपभाषाएं अथवा बोलियां हैं जो व्यष्टि रूप में स्वतंत्र मातृभाषाओं अथवा लोकभाषाओं के स्वरूप को धारण किए हुए हैं। हिमाचली पहाड़ी भाषा के इसी स्वरूप में यहां का जन अथवा समाज आदिकाल से अपने भावों की अभिव्यक्ति करता आया है। मातृभाषा में ‘मातृ’ ऋकारान्त स्त्रीलिंग शब्दरूप है। मातृ शब्दरूप को जब भाषा शब्द के साथ जोडक़र देखा जाएगा तो इसका समासान्त अर्थ होगा- मातृभाषा अर्थात माता (मां) की भाषा। बालक जब मां की गोद में होता है तो उसका भाषिक परिवेश निर्मित होने लगता है। मां परिवार में अपने भावों को प्रकट करने के लिए जिन शब्दों का प्रयोग कर रही होती है, वही बालक के मन-मस्तिष्क में गहरा रच-बस जाता है। दूध व रोटी बाल मस्तिष्क शब्दकोश के पहले शब्द हैं। बालक का यह पैतृक भाषिक परिवेश भी कहलाता है। इस परिवेश में परिवार एक लघुतम इकाई के रूप में दिखाई देता है। संसार की सभी भाषाओं की मूल इकाई यही ‘मातृभाषा’ सिद्ध होती है।

भाषाविदों ने इसी मातृभाषा के आधार पर भाषाओं के सिद्धांत निर्मित किए। मातृभाषा का अगला चरण लोकभाषा होता है। लोगों का समूह जिस भौगोलिक परिवेश में अपनी मातृभाषा की ध्वनियों, वर्णों, शब्दों व वाक्यों का प्रयोग कुछ बृहद क्षेत्र में कर रहा होता है, वह लोकभाषा या बोली का स्वरूप कहलाता है। यद्यपि बोलियां भी हमारी स्वतंत्र भाषाएं हैं, परंतु भाषा के सिद्धांतकार बोलियों को उपभाषाओं की श्रेणी में रखते हैं। जब बोलियों के बृहत परिवेश को भाषिक दृष्टि से व्याकरण के सिद्धांतों की कसौटी पर भाषाविद नियमों में बांधना प्रारम्भ करते हंै तो ये उपभाषाएं अथवा बोलियां समष्टि रूप में भाषा का स्वरूप धारण करने लगती हैं।

वैदिक भाषा अनेकों उपभाषाओं अथवा बोलियों का समष्टि स्वरूप है जो आगे चलकर सभी भाषाओं को जन्मती है। अत: व्यष्टि रूप में भाषा की लघुतम इकाई मातृभाषा, उससे बड़ी इकाई लोकभाषा या बोली (उपभाषा) तथा अंत में उपभाषाओं या बोलियों का समष्टि स्वरूप भाषा कहलाता है। सभी भाषाओं के यही भाषिक चरण हैं। हिमाचल की नृवंशीय थाती पर भी कालक्रम से मातृभाषिक चरण स्थापित हुए। विभिन्न उपभाषाओं (बोलियों) के भाषिक परिवेश निर्मित हुए। भाषाविद डा. ग्रियर्सन ने हिमालय में बोली जाने वाली भाषाओं का आर्य भाषा परिवार की भीतरी उपशाखा में रखकर इसके 1. पूर्वी पहाड़ी, 2. मध्य पहाड़ी तथा 3. पश्चिमी पहाड़ी- ये तीन विभाग किए हैं। पश्चिमी पहाड़ी के अंतर्गत ‘हिमाचली पहाड़ी भाषा’ के भाषिक स्वरूप को उपर्युक्त पृष्ठभूमि में समझना अपेक्षित है। भाषाविद डा. ग्रियर्सन ने अपनी पुस्तक ‘भारतीय भाषा सर्वेक्षण’ में- जौंसारी, सिरमौरी, बघाटी, क्योंथली, सतलुज श्रेणी, कुल्लुई, मण्डयाली, चम्बयाली तथा भद्रवाही- इन 9 उपभाषाओं अथवा बोलियों को एक श्रेणी में रखा है और कांगड़ी व कहलूरी को पंजाबी भाषा की उपभाषाएं (बोलियां) घोषित किया। हिमाचल के प्रख्यात भाषाविद् डा. मौलूराम ठाकुर ने ‘पहाड़ी भाषा व्याकरण’ रचकर एक भगीरथ प्रयास किया है। उन्होंने पहाड़ी भाषा व्याकरण में- जौंसारी, सिरमौरी, बघाटी, क्योंथली, कुल्लूई, मण्डयाली, चम्बयाली, कांगड़ी, कहलूरी (बिलासपुरी) एवं भद्रवाही- इन दस उपभाषाओं (बोलियों) का भाषिक विश्लेषण प्रस्तुत किया है। इस विश्लेषण में कांगड़ी व कहलूरी (बिलासपुरी) भी हिमाचली पहाड़ी की विशिष्ट इकाइयां हैं। सन 1881 की जनगणना में भाषा वैज्ञानिक आधार पर जालंधर खंड के अंतर्गत हिमाचल के भू-भाग पर बसने वाले जनों ने अपनी मातृभाषा पहाड़ी लिखवाई थी। यह सारिणी 1983-84 के गज़ेटीयर भाग-1 में भी उद्घृत है। सन 1971 में जब हिमाचल को पूर्ण राज्यत्व का दर्जा मिला था, उसकी पृष्ठभूमि में पहाड़ी भाषा व इसके भाषा वैज्ञानिक स्वरूप विद्यमान थे।                                                        -(शेष भाग अगले अंक में)

पुस्तक समीक्षा : किताब के रूप में संस्कार गीत

भाषा एवं संस्कृति विभाग, हिमाचल प्रदेश ने ‘बिलासपुर की संस्कृति एवं संस्कार गीत’ नामक किताब काफी पहले प्रकाशित की है। अरुण कुमार शर्मा इसके मुख्य संपादक हैं, जबकि संकलन एवं संपादन डा. अनीता शर्मा ने किया है। 301 पृष्ठों की इस किताब की कीमत मात्र 100 रुपए है। इसमें पाठक पहले खंड में बिलासपुर की संस्कृति के बारे में पढ़ेंगे। इसके तहत भौगोलिक परिचय, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, रहन-सहन तथा वेशभूषा, मंदिर तथा ऐतिहासिक स्मारकों का परिचय दिया गया है। मंदिरों के तहत नयनादेवी, गुरु का लाहौर-बस्सी, शिवालय बच्छरेटु, बाबा बालकनाथ, हरि देवी, सोहणी देवी, सुन्हाणी का ठाकुरद्वारा, नेरसा देवी, गुग्गा गेहड़वीं, बड़ोल देवी, रुक्मणी कुंड, औहर का ठाकुरद्वारा, लखदाता पीर भ्याणु, मार्कंडेय तीर्थ, मंदिर सगीरठीं देवी तथा नाहरसिंह धौलरा आदि मंदिरों का चित्रण किया गया है। ऐतिहासिक किलों के तहत पाठक बच्छरेटू, बहादुरपुर, बसेह, झंज्यार, फतेहपुर, कोटकहलूर, रत्नपुर, सरयून, त्यून आदि किलों का अध्ययन करेंगे। जिला में मनाए जाने वाले मेलों, त्योहारों, लोक नृत्यों, वाद्य यंत्रों, चित्रकला के बार में भी पाठक अध्ययन करेंगे। स्वतंत्रता आंदोलन में बिलासपुर जिले की भूमिका के बारे में किताब में चंद शब्द लिखे गए हैं। दूसरे खंड में बिलासपुर जिले के संस्कार गीत चित्रित किए गए हैं। संस्कार गीतों के तहत पाठक शिशु जन्म गीत, वर पक्ष के विवाह गीत और कन्या पक्ष के विवाह गीतों के बारे में पढ़ेंगे। कुल मिला कर यह किताब बिलासपुर की संस्कृति के दर्शन बखूबी करवाती है।                                                  -फीचर डेस्क


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