मोदी सरकार के नौ वर्ष

मोदी सरकार की यात्रा बहुत सहज नहीं थी, क्योंकि इसे भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन, कृषि कानूनों को लागू करने, विमुद्रीकरण, नागरिकता संशोधन अधिनियम पर अपने फैसले के विरोध का सामना करना पड़ा था…

जब भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने मई 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सत्ता संभाली, तो भारत का सकल घरेलू उत्पाद 2.0 ट्रिलियन अमरीकी डालर के बराबर था, जो अब 3.73 ट्रिलियन अमरीकी डालर है, और प्रति व्यक्ति आय जो 2014 में 1573.9 अमरीकी डालर थी, अब है 2023 में 2601 अमरीकी डालर है। रुपयों में मौजूदा कीमतों पर यह जीडीपी 2013-14 में 104.73 लाख करोड़ रुपये से बढक़र 2022-23 में 272.04 लाख करोड़ रुपये हो गई है। यदि हम कीमतों में वृद्धि के लिए जीडीपी को समायोजित करते हैं तो भी महामारी के दौरान नकारात्मक वृद्धि के बावजूद जीडीपी में 9 वर्षों में 63 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जो सालाना 5.6 प्रतिशत है। जीडीपी के मामले में भारत 2014 में 10वें स्थान पर था और अब यह पांचवें स्थान पर है, जहां अब केवल संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, जापान और फ्रांस ही इससे ऊपर हैं। क्रय शक्ति समता (अर्थात भारतीय रुपये की क्रय शक्ति) के आधार पर विचार करें तो हमारी जीडीपी 13.03 ट्रिलियन डॉलर आंकी गई है, जिसके आधार पर भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। केवल संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन भारत से ऊपर स्थान पर हैं। माना जाता है कि प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि भी कुशलक्षेम की कोई गारंटी नहीं है। पिछले कुछ समय से देश में आय की असमानताओं में भी भारी वृद्धि हुई है। इसके अलावा वर्ष 2020-21 की कोरोना महामारी ने हालांकि सभी वर्गों को प्रभावित किया, उसकी सबसे ज्यादा मार मजदूरों एवं अन्य कामगारों (दिहाड़ीदार और वेतन भोगी दोनों) और व्यवसायियों, खासतौर पर छोटे व्यवसायियों पर पड़ी, जिसके कारण उनकी आमदनी और कुशलक्षेम दोनों प्रभावित हुए।

महामारी के दौरान सरकार के सामने लोगों के भोजन, दवाई और टीकाकरण आदि के माध्यम से महामारी से निपटने की चुनौती तो थी ही, साथ ही साथ बंद हुए व्यवसायों को भी पुन: शुरू कर अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की भी थी। 80 करोड़ लोगों को लगातार मुफ्त अनाज, इलाज और संपूर्ण जनसंख्या को कोविड निरोधी टीकाकरण करने में भारत दुनिया के मुल्कों में अग्रणी रहा। जबकि अमेरिका समेत अन्य मुल्क अपनी जनसंख्या का पूर्ण टीकाकरण नहीं कर पाए, भारत में सभी पात्र लोगों का टीकाकरण किया जा सका। खास बात यह है कि कोविड मामलों और कोविड से होने वाली मौतों के मामले में भारत का प्रदर्शन दुनिया से काफी बेहतर रहा। ग्रामीण बेरोजगारों के लिए चल रही मनरेगा योजना जो पहले से ही चल रही थी, उस पर भारी खर्च अनवरत चलता रहा। पिछले 9 सालों में लगभग मनरेगा पर 5.89 लाख करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा, रोजगार आदि के क्षेत्र में भी पिछली सरकारों की भी उपलब्धियां रही हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार हमारी साक्षरता 1951 के 16.7 प्रतिशत से बढक़र 2011 में 64.3 प्रतिशत हो गई। जीवन प्रत्याशा भी 1951 में मात्र 37.2 वर्ष से सुधर कर अब तक 68.2 वर्ष हो गई है। लेकिन कई मामलों में हम अपनी ही उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे। जुलाई 2008 और जून 2009 के बीच किए गए एनएसएसओ सर्वेक्षण के 65वें दौर के अनुसार देश में 17 प्रतिशत ग्रामीण परिवार और 2.1 प्रतिशत शहरी परिवार कच्चे घरों में रहते थे, जो 3.15 करोड़ परिवारों के बराबर था। इसके अलावा 21.3 प्रतिशत परिवार आधे-अधूरे पक्के मकानों में रहते थे। 2015 के बाद पक्के घरों के निर्माण में बड़ी प्रगति हुई है, जहां पीएम आवास योजना (ग्रामीण) और पीएम आवास योजना (शहरी) के तहत सरकारी सहायता से मकान बनाने के लिए 4.1 करोड़ परिवारों (ग्रामीण क्षेत्रों में 2.85 करोड़ घरों और शहरी क्षेत्रों में 1.23 करोड़ घरों) के लिए मंजूरी दी गई है, और 8 साल से भी कम समय में अब तक 2.87 करोड़ घर बनाए गए हैं।

इसे ग्रामीण और शहरी गरीबों के जीवन स्तर को ऊपर उठाने का बड़ा प्रयास माना जा रहा है, जिस पर केंद्र सरकार द्वारा अब तक 5 लाख करोड़ रुपये का अनुदान दिया जा चुका है। एक मोटे अनुमान के मुताबिक, इन योजनाओं के तहत बने इन ग्रामीण और शहरी घरों में अब तक 20 लाख करोड़ रुपये का निवेश हो चुका है। मोदी सरकार के पहले वर्ष 2014-15 के दौरान 12 किलोमीटर प्रतिदिन से, 2022-23 में सडक़ निर्माण की गति 22.23 किमी प्रति दिन हो गई है। जब हम यूपीए सरकार से तुलना करते हैं तो केंद्र सरकार द्वारा सडक़ निर्माण पर सालाना 10000 करोड़ रुपये खर्च होता था, जो एनडीए के दौरान बढक़र 15000 रुपये हो गया है। सडक़ों के अलावा जलमार्ग, रेलवे का विस्तार और वन्दे भारत के नाम से स्वदेशी तीव्र गडिय़ों का विस्तार, 2014 में 74 एयरपोर्टों की तुलना में अब दुगने यानी 148 एयरपोर्ट हैं, और प्रतिदिन लगभग 4 से 5 लाख यात्रियों द्वारा हवाई यात्रा के साथ भारत की इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र में प्रगति पिछले 9 सालों में अद्वितीय रही है। हाल ही में सरकार द्वारा 550 विमानों के साथ कुल 1000 से ज्यादा विमानों के आर्डर ने दुनिया को चकित किया हुआ है। हवाई यात्रा की बढ़ती मांग और सुविधाओं के विस्तार के कारण यह संभव हो पाया है। इन्फ्रास्ट्रक्चर निवेश को कुशलतम तरीके से करने और सभी प्रकार के यातायात का समन्वित विकास करने हेतु ‘गतिशक्ति योजना’ विश्व में अद्वितीय मानी जा रही है। उसके परिणाम भी देखने को मिलेंगे। आयुष्मान भारत योजना के तहत गरीब परिवारों को 5 लाख तक के इलाज की सुविधाएं सभी के लिए शौचालय (इज्जत घर) की व्यवस्था, सूक्ष्म लागत पर दुर्घटना और जीवन बीमा योजना, महिलाओं के लिए धुंआमुक्त रसोई हेतु मुफ्त गैस सिलेंडर की उज्जवला योजना, 100 प्रतिशत गांवों तक बिजली, बिजली कटौती से निजात पाने हेतु परंपरागत और नवीकरणीय बिजली के अलावा एलईडी बल्ब के विस्तार से बिजली की खपत में कमी, कुछ ऐसे कार्यक्रम हैं जिन्होंने लोगों के जीवन में तो सुधार किया ही है, कुछ हद तक विकास के अवरोधों को भी कम किया है। 45 करोड़ से भी अधिक जीरो बैलेंस बैंक खातों के खुलने से न केवल वित्तीय समावेशन संभव हुआ है, भ्रष्टाचार कम हो जाने के कारण सरकारी खर्च का भी कुशलतम उपयोग संभव हुआ है।

हालांकि विकास की दौड़ में पिछड़ गये लोगों के कल्याण के लिए सहयोग की प्रवृत्ति हर सरकार में रही है, लेकिन जनधन बैंक खाते, आधार-मोबाईल बैंकिंग की तिगड़ी के चलते सरकारी मदद लाभार्थी तक सही ढंग से पहुंच जरूर रही है। मोदी सरकार के नौ साल भारत की अर्थव्यवस्था और लोगों के लिए बेहतरीन साल माने जा सकते हैं। सदी की सबसे खराब महामारी के बावजूद इन नौ वर्षों में भारत की अंतरराष्ट्रीय स्थिति में भी काफी सुधार हुआ है, न केवल जीडीपी में रैंकिंग के मामले में बल्कि अमीर और गरीब दोनों देशों के साथ सहयोग के मामले में भी। कोरोना काल में जब अमीर देश बेहद ख़ुदगजऱ् बनते जा रहे थे तब भारत ने सभी देशों के प्रति अपनी पूरी संवेदनशीलता का परिचय देते हुए दवा और वैक्सीन उपलब्ध कराई। रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद, रूस से तेल न खरीदने के भारी दबाव के बावजूद भारत मजबूती से खड़ा रहा। हमने न केवल रूस से सस्ता तेल खरीदना जारी रखा बल्कि अपनी तेल खरीद को लगभग 50 गुना तक बढ़ा दिया। मोदी सरकार की यात्रा बहुत सहज नहीं थी, क्योंकि इसे भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन, कृषि कानूनों को लागू करने, विमुद्रीकरण, नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) यानि पड़ोसी देशों के सताए गए गैर-मुस्लिम नागरिकों को नागरिकता देने का मार्ग प्रशस्त करने के अपने फैसले के विरोध का सामना करना पड़ा था। मोदी सरकार के फैसलों के विरोध के बावजूद कोई भी प्रधानमंत्री मोदी की किसी भी दुर्भावना को साबित नहीं कर सका।

डा. अश्वनी महाजन

कालेज प्रोफेसर


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