केरल स्टोरी की व्यथा और कथा

परिवार के प्रति वितृष्णा का यह भाव लड़कियों को परिवार से तोड़ता है तो लव जिहाद का खेल खेल रहा एजेंट उसको लपक लेता है। बाद में उनसे शादी का ड्रामा किया जाता था। उसके बाद उन्हें इस्लाम में मतांतरित किया जाता था। मामला इतने पर ही समाप्त नहीं होता था। कहा जाता है कि उसके बाद उन्हें अरबस्तान ले जाकर आईएस के आतंकवादी संगठन में काम करने के लिए विवश किया जाता था। केरल में यह खेल कई दशकों से चल रहा है। लेकिन स्मोक स्क्रीन के कारण दिखाई नहीं दे रहा था। परिवारों में से उठ रही चीत्कार नारी मुक्ति के ढोल ढमाकों में दब जाती थी। सरकारें यत्नपूर्वक स्मोक स्क्रीन को बनाए रखने और उसे सघन बनाए रखने में सहायता करती रहती थीं। दुर्भाग्य से केरल में सरकार चाहे सोनिया कांग्रेस की रही हो या सीपीएम की, स्मोक स्क्रीन की रक्षा में दोनों समान भाव से लगी रहती थीं। स्मोक स्क्रीन के बाहर मौलवी और पादरी सेक्यूलर तराने गाते रहते हैं। लेकिन इन तरानों का भाव एक ही रहता है कि भारत के ‘सेक्यूलर’ महापुरुष को भारत का हिंदू समाज तोडऩे की कोशिश करता रहता है…

आजकल पूरे हिन्दुस्तान में फिल्म दी केरल स्टोरी की सबसे ज्यादा चर्चा है। कश्मीर फाइल्स के बाद यदि कोई फिल्म सबसे ज्यादा विवाद और संवाद का माध्यम बनी है तो वह दी केरल स्टोरी ही है। आश्चर्य की बात यह है कि इस फिल्म का एक भी अभिनेता या अभिनेत्री ऐसी नहीं है जो फिल्म जगत में चर्चित रही हो। लेकिन इसके बावजूद यह फिल्म कमाई के रिकार्ड बना रही है और कई बड़ों को पटकनी दे रही है। कुछ सरकारें तो इस फिल्म से इतनी घबरा गई हैं कि उन्होंने फिल्म को अपने राज्य में दिखाए जाने को लेकर प्रतिबन्ध लगा दिया है। पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री इस विरोध में लीड रोल में नजर आ रही हैं। शरद पवार की पार्टी के एक नेता ने तो यहां तक कहा कि फिल्म बनाने वाले को सार्वजनिक रूप से फांसी दिए जाने की जरूरत है। केरल सरकार की चिन्ता समझ में आती है। उसने फिल्म पर प्रतिबन्ध तो नहीं लगाया लेकिन व्यवस्था इतनी चाकचौबन्द कर दी ताकि कोई फिल्म देख न सके। प्रश्न यह है कि इस फिल्म का इतना विरोध क्यों है।

इसको समझने के लिए अंग्रेजी भाषा के शब्द भंडार में घुसना होगा अंग्रेज और अंग्रेजी से हमारा वास्ता भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी के आने के बाद ही पड़ा। उस भाषा का एक शब्द ‘सेक्यूलर’ है, जो इस देश में कोरोना वायरस की तरह फैल गया है। पहले यह शब्द भारतीय संविधान में नहीं था। संविधान सभा के दिनों में जब संविधान बन रहा था, तब भी कुछ लोगों ने इस शब्द को वहां घुसाने की कोशिश की थी। लेकिन तब वहां बाबा साहिब अम्बेडकर ल_ लेकर बैठे थे। उन्होंने इस शब्द को वहां घुसने नहीं दिया। लेकिन इस वायरस के पक्षधर तब से ही मौके की तलाश में थे। उन्हें वह अवसर 1975 में मिला जब प्रधानमंत्री इंदिरा गान्धी ने तमाम मर्यादाओं को ताक पर रखते हुए संविधान की प्रस्तावना में ही इस शब्द की घुसपैठ करवा दी। प्रश्न है कि सेक्यूलर शब्द क्या है और इसका अर्थ क्या है। क्या भारतीय इसके अर्थ और अवधारणा को पकड़ पाए? मान लें किसी बाहरी देश से कोई व्यक्ति कोई फल लेकर आता है, हम उसको उलट-पलट कर देखते हैं। यदि वह फल हमारे देश में भी होता हो तो हम तुरन्त कह देंगे कि भाई, यह आम का फल है। लेकिन यदि वह फल हमारे देश में न होता हो तो हम उस नए फल का वर्णन कैसे करेंगे? कोई कहेगा यह नारंगी जैसा है। दूसरा कहेगा शक्ल चाहे नारंगी जैसी है लेकिन स्वाद तो तरबूज जैसा है।

यही स्थिति सेक्यूलर शब्द की है। इसके बराबर का कोई शब्द भारतीय साहित्य में दिखाई नहीं दे रहा। यूरोप में घुसते हैं तो पता चलता है, कभी वहां स्टेट और चर्च का विवाद और संघर्ष चलता रहता था। जाहिर है विवाद व संघर्ष वर्चस्व को लेकर ही था। कहा जाता है इसी लड़ाई में से चर्च व स्टेट के संबंधों की लक्ष्मण रेखा तय करने के लिए सेक्यूलर शब्द का जन्म हुआ। जब अंग्रेजों के साथ यह सेक्यूलर शब्द भी यहां आ गया तो इस सेक्यूलर शब्द का क्या किया जाए? चर्च यहां था नहीं। मंदिर और स्टेट का संघर्ष कभी हुआ नहीं। इस स्थिति में अंग्रेजों ने सेक्यूलर शब्द का प्रयोग स्मोक स्क्रीन की तरह किया। स्मोक स्क्रीन वह पर्दा है जिसके पीछे हो रही हलचल किसी को दिखाई नहीं देती। भारत में इस स्मोक स्क्रीन के पीछे सैयद और पादरी अपना खेला खेल रहे हैं। केरल में तो जबरदस्त खेल हो रहा था। कहा जाता है एक पूरा गिरोह ही संगठित हो गया जो केरल की लड़कियों को लव जिहाद के माध्यम से पहले अपने चंगुल में फंसाता था। इसके लिए भी बाकायदा वातावरण तैयार किया जाता रहा। पिछले कुछ दशकों से कालेजों-विश्वविद्यालयों में नारी मुक्ति आन्दोलन के माध्यम से प्रचार किया जाने लगा कि परिवार बुर्जुयावादी संस्था है। लडक़ी/नारी को उसी से मुक्ति प्राप्त करनी है।

परिवार के प्रति वितृष्णा का यह भाव लड़कियों को परिवार से तोड़ता है तो लव जिहाद का खेल खेल रहा एजेन्ट उसको लपक लेता है। बाद में उनसे शादी का ड्रामा किया जाता था। उसके बाद उन्हें इस्लाम में मतान्तरित किया जाता था। मामला इतने पर ही समाप्त नहीं होता था। कहा जाता है कि उसके बाद उन्हें अरबस्तान ले जाकर आईएस के आतंकवादी संगठन में काम करने के लिए विवश किया जाता था। केरल में यह खेल कई दशकों से चल रहा है। लेकिन स्मोक स्क्रीन के कारण दिखाई नहीं दे रहा था। परिवारों में से उठ रही चीत्कार नारी मुक्ति के ढोल ढमाकों में दब जाती थी। सरकारें यत्नपूर्वक स्मोक स्क्रीन को बनाए रखने और उसे सघन बनाए रखने में सहायता करती रहती थीं। दुर्भाग्य से केरल में सरकार चाहे सोनिया कांग्रेस की रही हो या सीपीएम की, स्मोक स्क्रीन की रक्षा में दोनों समान भाव से लगी रहती थीं। स्मोक स्क्रीन के बाहर मौलवी और पादरी सेक्यूलर तराने गाते रहते हैं। लेकिन इन तरानों का भाव एक ही रहता है कि भारत के ‘सेक्यूलर’ महापुरुष को भारत का हिन्दू समाज तोडऩे की कोशिश करता रहता है। मौलवी और पादरी इसकी रक्षा में न लगे होते तो भारत रसातल को चला जाता। लेकिन आखिर कभी न कभी तो यह स्मोक स्क्रीन हटना ही था। जब रूस का आईरन कर्टन ज्यादा देर सुरक्षित न रह सका तो यह स्मोक स्क्रीन कितने साल सुरक्षित रहता! धुआं हटा तो सही, केरल स्टोरी को बाहर आना ही था। सारा देश केरल के भीतर को देख कर स्तब्ध है और मौलवी व पादरी उनको फांसी देने की मांग कर रहे हैं जिन्होंने यह फिल्म बनाई। जिन्होंने स्मोक स्क्रीन नष्ट कर दिया, उनको हराने के लिए पूरा विपक्ष हाथ-पैर मार रहा है। संविधान में सेक्यूलर शब्द डालकर इंदिरा गांधी ने तुष्टिकरण की नीति अपनाई थी। संप्रदाय विशेष के लोगों के वोट हथियाने के अलावा इस नीति का कोई और लक्ष्य दिखता नहीं है। इससे संप्रदाय विशेष का भी कल्याण नहीं हुआ। इसी कारण आज मुसलमान भी कांग्रेस से कटकर मोदी का समर्थन कर रहे हैं। अब समय बदल रहा है। कांग्रेस को समझ आने लगा है कि बहुसंख्यक वर्ग में उसकी पैठ कम हो रही है।

कुलदीप चंद अग्निहोत्री

वरिष्ठ स्तंभकार

ईमेल:kuldeepagnihotri@gmail.com


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